Sunday, 9 November 2014

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बारूद के ढेर पर सोशल साइट, चिंगारी लगा सकती है आग

-डमी और काल्पनिक नाम से हो रहा है साइट का दुरुपयोग, पांच साल के बच्चे तक संचालित करते हैं, जरा सी नादानी और सिरफिरों की मनमानी मचा सकती है गदर

वर्ल्ड स्ट्रीट ब्यूरो. नई दिल्ली

सावधान! शोसल साइट जितनी अहम है, उतने ही इसके साइड इफैक्ट भी हैं। यह एक ऐसी मचान है जो बारूद की ढेर पर टिकी है। एक छोटी-सी चिंगारी आग लगाने को काफी है। पिछले कुछ समय से इसका दुरुपयोग हो रहा है। एक तरफ सूचना के आदान-प्रदान, ज्ञान की बातों से परस्पर जुड़ाव और एक ही स्थान पर देश-दुनिया से जुड़ाव हो जाता है, वहीं यह एक ऐसी स्थिति को जन्म दे सकता है जो विध्वंश की कहानी लिख सकता है।
गौर कीजिए हाल ही के छह महीनों में कितनी बार दंगा होते-होते बचा। एक बार किसी ने फेसबुक पर नंगे आमीरखान की फोटो के साथ कुरान लगा दी। कुछ सिरफिरों ने अल्लाह की तस्वीर पोस्ट कर दी तो कुछ लोगों ने देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें पोस्ट कर दी। ऐसे कई मौके आए जब आग लगते-लगते बची। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस तरह की साइट, चाहे फेसबुक हो, ट्वीटर हो या वॉट्स-एप खतरनाक साबित हो सकते हैं।

कंट्रोलिंग की व्यवस्था हो

सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मीनारायण खत्री का कहना है कि फेसबुक, ट्वीटर और वॉट्स-एप का दुरुपयोग न हो, इसके लिए कंट्रोलर होने चाहिए। लेकिन इसका वृहद स्तर पर होने से यह आसान भी नहीं है। विशेषज्ञों को इस दिशा में सोचना होगा। तकनीकी इंजीनियरों को चाहिए कि इसका तोड़ निकाले, ताकि साइट का दुरुपयोग न हो। आजकल हर हाथ में मोबाइल है। इंटरनेट है। ऐसे में छोटी सी चिंगारी आग लगा सकती है।

सख्त नियम हो

जब सिरफिरे शोसल साइट का दुरुपयोग करते हैं तो उन्हें इसकी सजा भी मिलनी चाहिए। लेकिन कई बार यह पता नहीं चल पाता कि मामला शुरू कहां से हुआ। अंजाम बुरा हो जाता है। आए दिन वॉट्स-एप पर गलत सूचनाएं, अफवाहें और मिक्स फोटो वायरल या पोस्ट किए जाते हैं। इससे कई बार अखबार के दफ्तरों में परेशानी खड़ी हो जाती है। अगर गलत मैसेज या फोटो पर विश्वास कर लिया जाए और वह अखबार में छप जाए तो हंगामा मच सकता है।

कहीं विश्वयुद्ध न करवा दे

हालांकि ऐसा संभव नहीं है, मगर तकनीकी विशेषज्ञ आरएस नवसंभवानी का मानना है कि इससे विश्वयुद्ध तक की नौबत आ सकती है। ऐसे में सोशल साइट का दुरुपयोग रोकना होगा। सिरफिरे कुछ भी करवा सकते हैं। इससे समाज का ढांचा बिगड़ जाएगा। यही नहीं शांत सरोवर में कंकर फेंकने से जैसे हलचल होती है, वैसे ही शांत शहर में आग फैल सकती है। ऐसा नहीं हो कि सोशल साइट के दुरुपयोग से सांप्रदायिक झगड़ों की नौबत आ जाए। खुफिया एजेंसियों की सोशल साइट पर नजर रहती है। सूत्रों का कहना है कि आज के दौर में कहीं भी आग लगाना चंद सैकंडों की बात है। भारत जैसे देश में जहां कुछ राज्यों में दंगे आम बात है, ऐसी साइट का साइड इफैक्ट सामने आ सकता है।

बच्चों को दूर रखा जाए

यह कहना गलत नहीं होगा कि सोशल साइट से बच्चों को दूर रखा जाए। मगर ऐसा है नहीं। पांच से लेकर पंद्रह साल तक के बच्चे भी आजकल सोशल साइट पर हैं। ऐसे में जरा सी नादानी बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। सोशल साइट के उपयोग से संबंधित कुछ नियम होने चाहिए। आयु सीमा तय होनी चाहिए। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखना होगा कि लोग डमी और काल्पनिक नाम से साइट न बन जाए। हालांकि ऐसा अभी तक संभव नहीं हो पाया है। सिरफिरे लोग तरह-तरह के नाम से सोशल साइट संचालित कर रहे हैं। ऐसे में तकनीकी विशेषज्ञों को कुछ नियम और कानून बनाना होगा। तभी इस समस्या से निजात मिल सकती है। 

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