Friday, 7 November 2014

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उर्दू विद्वानों ने दिया उर्दू को डिजिटल दुनियां से जोड़ने पर बल

Posted by: Pressvarta Posted date: 11/01/2014 11:30:00 AM / comment : 0

नई दिल्ली(शुक्ला)। राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के तत्वावधान में विश्व उर्दू सम्मेलन के दूसरे दिन शुक्रवार को उर्दू के देश विदेश से आए विद्वानों ने उर्दू के प्रचार एवं प्रसार पर विचार-विमर्श किया और उर्दू को डिजिटल दुनियां से जोड़ने पर बल दिया। पहले सत्र की अध्यक्षता प्रो. अबुल कलाम क़ासमी (अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी) ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि आज के इस सत्र की विशेषता यह है कि हमें उर्दू भाषा विज्ञान, उर्दू के बुनियादी ढांचे और उर्दू संस्कृति का सोचने और चिंतन करने पर विवश किया। सैयद अमीन हैदर (अमेरिका) जो अमेरिका में उर्दू इंस्टीट्यूट चलाते है ने बताया कि अमेरिका में उर्दू के संबंध में देखा जाए तो रचनात्मक कार्य अत्यधिक हो रहा है। रचनात्मक पुस्तकें खूब निकाल जा रही है और उर्दू को आधुनिक तकनीक से जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है। उन्होनें कहा कि उर्दू को डिजीटल दुनिया से जोड़ने की जरूरत है। डा. सैयद तकी आबिदी (कनाडा) ने कहा कि राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद एक ऐसा आंदोलन चलाये जिससे उर्दू को यू.एन.ओ. में और उच्चस्थान मिल सके। प्रो. अतीकुल्लाह (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने अपनी बात रखते हुए कहा कि भाषा का अपना मनोविज्ञान होता है जो उसकी संस्कृति में निहित होता है। जमील असगर (पाकिस्तान) ने इकबाल की शायरी का इक्कीसवीं शताब्दी के संदर्भ में जायजा लिया। नासिर अब्बास नैयर (पाकिस्तान) ने कहा कि इक्कीसवीं सदी में समय की कल्पना ने जो रूप धरा है उससेे हमारे जीवन के सभी आयामों और विभागों पर असर पड़ा है। प्रो. वफा यजदां (ईरान) ने इस बात पर बल दिया कि उर्दू वालों को ईरान वालों के साथ और अधिक संपर्क बनाना चाहिए। सैयद फैसल अली ग्रुप एडिटर सहारा उर्दू ने कहा कि अगर हमें अपनी जब़ान को बचाना है तो उर्दू को डिजिटल इंटरवेनशन से जोड़ना होगा। डा. सीमा सगीर, असलम जमशेदपुरी, प्रो. अब्दुस सत्तार दल्वी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। चाय के अंतराल के बाद प्रो. फरजाना आजम लुत्फी (ईरान), प्रो. अली ब्यात (ताशकंद), प्रो. अली अहमद फातमी (इलाबाद) और नाजिमुद्दीन मकबूल आदि ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए अंत में आयुक्त आयकर विभाग सैयद मो. अशरफ ने इस सत्र में पढे़ गए तमाम पेपरों का विशलेषण किया और एन.सी.पी.यू.एल कि उर्दू के विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। 

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