Monday, 10 November 2014

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वसुंधरा का जादू उतरा, मोदी मंत्र नहीं चलेगा, इस बार निकाय चुनाव में कांग्रेस को पसंद कर सकती है जनता

-अफसरों के पास भी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ नहीं। अफसर तो पूंछ हिलाऊ होते हैं, जोड़-जाड़ कर उपलब्धियां गिना देंगे, मगर जनता पूंछ हिलाऊ नहीं होती, वह खार खाए बैठी है और इस बार भाजपा या कहें वसुंधरा को सबक सिखाकर रहेंगी

वर्ल्ड स्ट्रीट ब्यूरो. जयपुर

जनता की प्रतिक्रिया स्वाभाविक होती है। उसे क्षणिक रूप से भरमाया जा सकता है, मगर हर बार झूठ और दिखावा नहीं चलता। आगामी 22 नवंबर को राज्य में 46 निकायों के चुनाव हो रहे हैं। यहां चुनाव का फैसला तो जनता करेगी, मगर इन चुनावों से पहले एक मुक्कमल तस्वीर जनता के सामने है।

अगले माह सरकार का एक साल पूरा होना है। इसको देखते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और बाद में मुख्य सचिव सीएस राजन ने सोमवार को सभी विभागों की समीक्षा की। लेकिन दो बैठकों के बावजूद सरकार की उपलब्धियां ढूंढ़ने में अफसरों के पसीने आ गए। सीएस राजन ने करीब 25 विभागों के अधिकारियों के साथ विभिन्न घोषणाओं और योजनाओं की तीन घंटे रिव्यू किया। अफसरों के अनुसार 11 माह में सरकार के स्तर पर केवल रिव्यू बैठकें चलने और कंपनियों के प्रेजेंटेशन ही देखे जाने के कारण उपलब्धि के नाम पर कुछ खास निकल कर नहीं आया। कुछ कंपनियों के साथ एमओयू के अलावा आधारभूत संरचना विकास व जनसुविधा के क्षेत्र में कोई बड़ा काम सामने नहीं आया।

बैठकों में बड़ी उपलब्धि यही सामने आई कि सरकार ने तीन संभागों का दौरा किया और उसमें सीएम और मंत्री के पास जनता की तीन लाख अर्जिया आईं। मुख्यमंत्री ने अपने स्तर पर सरकार के कामकाज और विभागों का रिव्यू किया।

ये स्थिति कड़वा सच है। चौंकाने वाला भी। जनता भी यह बात जानती है। उसे हर बार बरगलाया नहीं जा सकता। और उसकी प्रतिक्रिया भी जल्दी ही सामने आएंगी। अभी तक 46 निकायों में सबसे ज्यादा 29 निकायों में कांग्रेस का कब्जा है और भाजपा केवल दस शहरों में अपना बोर्ड बनाने में सफल रही। इस बार चुनाव पूरी तरह से बदली परिस्थितियों में हो रहे हैं। मेयर, नगर परिषद चेयरमैन और पालिका अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित पार्षद ही करेंगे। इस लिहाज से टिकट को लेकर दोनों ही पार्टियों में बड़ी मारामारी चल रही हैं। प्रदेश में 6 नगर निगम, 18 नगर परिषद और 22 नगरपालिका में चुनाव हो रहे हैं। 6 में से नगर निगमों में जयपुर, जोधपुर, कोटा व बीकानेर में कांग्रेस के मेयर चुने गए थे, जबकि भाजपा केवल उदयपुर में ही अपना मेयर बनाने में कामयाब रही थी। भरतपुर में अब नगर निगम बना दिया गया है, जहां मेयर निर्दलीय है।

फिर कांग्रेस ही विकल्प

ऐसे में जनता के पास फिर कांग्रेस ही विकल्प है। इस बार के चुनाव में न तो मोदी का मंत्र चलेगा और न ही वसुंधरा की होशियारी और दादागिरी। एक बार फिर लोग कांग्रेस को मौका देने की फिराक में हैं। जनता निश्चय भी कर चुकी है। लोग उस दिन को कोस रहें हैं, जब मोदी के नाम पर वसुंधरा को पूर्ण बहुत दे दिया। इसका पछतावा जनता को भी है। खुद वसुंधरा के पास भी ऐसा कोई तर्क नहीं है, जो चल सके।

बड़े नाम के सहारे भाजपा, पुराने नेता याद आए

विधानसभा चुनावों में वसुंधरा ने जिन बड़े नेताओं की अनदेखी कर दी थी, उन्हें इस बार पार्षद का टिकट और मेयर के दावेदार के रूप में उतारा जा रहा है। गौर करें जोधपुर पर, यहां पूर्व मंत्री राजेंद्र गहलोत, राजसिको के पूर्व अध्यक्ष मेघराज लोहिया, प्रसन्नचंद मेहता पर वसुंधरा दांव खेल रही हैं। देखना यह है कि जनता इन नामों को चुनती है, या काम को। अशोक गहलोत ने इस बार पूरी रणनीति से टिकटें दी हैं। टिकट बंटवारे में उनकी खूब चली है। जोधपुर में कांग्रेस को फिर उम्मीदे हैं। कांग्रेस के पास मौजूदा मैयर और सीटें बचाने की चुनौती है तो भाजपा की स्थिति खास अच्छी नहीं है।

वसुंधरा नकारा सरकार, उम्मीदें की धूमिल

लोगों ने मोदी के नाम पर वसुंधरा को समर्थन दिया। लेकिन वसुंधरा फेल हो गई। सारी उम्मीदें धूमिल हो गई। महारानी ने काम के नाम पर ढोल पीटे। मोदी का चेहरा भी अब लोगों के सामने चौड़ा हो गया है। मोदी ने अपने कार्यकाल के दौरान विदेशी यात्राएं, बड़े-बड़े वादे और राजनीतिक दांव ही खेले। यह बात अलग है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में उनकी चल गई, मगर जनता कब जाग जाए, कहा नहीं जा सकता। इस बार वसुंधरा का जादू निश्चित तौर पर नहीं चलेगा। लोगों की सहनशीलता की परीक्षा नहीं ली जा सकती। अभी मौका है, लोग अपना गुस्सा उतार सकते हैं। लोग इस बात को जानते हैं कि अशोक गहलोत ने खूब काम किए। केवल मोदी लहर और सत्ता विरोधी वोट की वजह से वसुंधरा आ गई। अब वसुंधरा को आत्ममंथन करने की जरूरत है। इसलिए भी कि उनकी सरकार के अफसरों के पास भी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ नहीं। अफसर तो पूंछ हिलाऊ होते हैं, जोड़-जाड़ कर उपलब्धियां गिना देंगे, मगर जनता पूंछ हिलाऊ नहीं होती, वह खार खाए बैठी है और इस बार भाजपा या कहें वसुंधरा को सबक सिखाकर रहेंगी।

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