Wednesday, 12 November 2014

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सारे शब्द द्रोपदी बन जाएंगे

कविता : डीके पुरोहित




शब्द जब द्रोपदी बन जाता है
तो कविता को
समय का दुस्शासन
वस्त्र समझकर उतारने लगता है
कवि हारा हुआ युधिष्ठिर है
जो शब्द का चीरहरण देखने को विवश है
कोई कृष्ण शब्द की लाज नहीं बचाता
वह अपनी लाज स्वयं ही बचा लेता है
असमय आत्महत्या कर
साहित्य कौरवसभा नहीं है
साहित्य कुरुक्षेत्र भी नहीं है
साहित्य कौरवसभा में शब्द को
द्रोपदी बना नहीं देख सकता
साहित्य सृष्टि है
शब्द ब्रह्म है
ब्रह्म है तो सृष्टि है
जब शब्द सृष्टि की रचना करने बैठता है
तो कलम गर्भवती हो जाती है
कागज की कोख सृष्टि को देती है पनाह
शब्द ब्रह्म
अपनी ही रचना को देता है
नए-नए रूप
कविता भी
शब्द ब्रह्म की बनाई एक रचना है
जिसे मरना है एक न एक दिन
जो कविता मरती नहीं समय के साथ
वह लीन हो जाती है शब्द ब्रह्म में
और तारा बनकर छा जाती है
युग के आसमान पर
सूरज शब्द है
चांद कविता
आसमान देता है कागज की छाती
कविता जब तारे सी टूटती है
तो समझो शब्द ब्रह्म ने
अपनी एक रचना को नष्ट कर दिया
यह सिलसिला जाने कब से चल रहा है
न कविता खत्म होती है
न तारे
एक दिन ऐसा आएगा
जब सारे शब्द द्रोपदी बन जाएंगे
और असमय कर लेंगे आत्महत्या
फिर केवल सूरज बचा रहेगा
जो छटपटाता रहेगा
नई रचना के लिए
शब्द ब्रह्म का सहारा लेकर।

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