Friday, 7 November 2014

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जैसलमेर व बाड़मेर में पोस्टिंग अब काला पानी नहीं

-एक समय था जब धोरों की नगरी जैसलमेर बाड़मेर में पोस्टिंग सजा मानी जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है, कैसे-आइए जानें--

-डीके पुरोहित-

जैसलमेर। तेज गर्मी। सायं-सायं चलती आंधियां। उड़ती रेत। बूंद-बूंद पानी का संकट। रोजगार के नाम पर शून्यता....। यह स्थिति कभी जैसलमेर व बाड़मेर की रही है। लेकिन अब ना ये स्थिति रही और न ही धारणा। जो अधिकारी कभी जैसलमेर व बाड़मेर में पोस्टिंग को सजा समझते थे, वही अब इन शहरों में आने को आतुर हो रहे हैं।

जैसलमेर में पिछले तीन दशक में पर्यटन ने पैर पसारे। यहां टूरिज्म के नाम पर डालर बरस रहे हैं। होटल, पेइंग गेस्ट, हैंडीक्राफ्ट शोरूम, रेस्तरां, कैमल सफारी, विलेज सफारी और तेजी से बढ़ते पर्यटक। ऐसे में यहां के लोगों की लाइफ बन गई। रही सही कसर नहर ने पूरी कर दी। नहर आने के बाद जैसलमेर में फसलें लहलहाती नजर आ रही है। आस-पास के जिलों गंगानगर, हनुमानगढ़ और यूपी-बिहार के लोगों ने यहां मुरबे खरीद लिए हैं। या फिर दूसरों के मुरबों पर खेती कर रहे हैं। हालत यह है कि जैसलमेर में आना वाले अफसर जैसलमेर छोड़ना ही नहीं चाहते। कलेक्टर, एसपी, एडीएम, एसडीएम से लेकर विभिन्न विभागों में छोटे-बड़े अफसर जैसलमेर में ही बसना चाहते हैं। कई लोग यहां पोस्टिंग होकर आए और रिटायर्ड होकर यहीं बसकर रह गए।

यही स्थिति बाड़मेर की है। कभी काला पानी नाम से लोग यहां आते डरते थे। यहां पोस्टिंग का आशय सजा होती थी। मगर तेल और गैस के खेल ने यहां की जमीनों के भाव बढ़ा दिए। पचपदरा में यदि रिफाइनरी लग जाती है तो बाड़मेर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा जाएगा। बाड़मेर के साथ ही आस-पास के शहरों में भी आय के संसाधन बढ़ेंगे।

जैसलमेर यानी गोल्डन सिटी: दुनिया का चहेता

जैसलमेर में सोने से चमकते पीले पत्थरों की विरासत ने इसे गोल्डन सिटी का नाम दिया है। सत्यजीत रे की बंगला फिल्म सोनार बंगला के बाद जैसलमेर की विश्व स्तर पर पहचान बनी। अब दुर्गा पूजा के दौरान यहां बड़ी संख्या में बंगाली पर्यटक आते हैं। दुनिया सोनार किले को देखने आती है। प्रतिवर्ष दो से तीन लाख विदेशी सैलानी आते हैं। यहां पर्यटन को लेकर नई-नई योजनाएं बन रही है। मरु मेला ने यहां के टूरिज्म व्यवसाय को नई दिशा दी है। यहां स्पेन, जर्मनी, अमेरिका, इंग्लैंड, अफ्रीका, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड, आस्ट्रेलिया सहित विभिन्न देशों से सैलानी आते हैं। देश के कोने-कोने से सैलानी यहां आते हैं। यहां टूरिज्म का भविष्य उज्ज्वल है। शहर में 150 से अधिक होटलें व रेस्टोरेंट है। पर्यटकों को भी जैसलमेर रास आ गया है। यहां सम व खुहड़ी के धोरे सैलानियों को लुभाते हैं। ऐसे कई कारण है, जिसकी वजह से अब जैसलमेर काला पानी नहीं रहा। यहां एयरफोर्स है। आर्मी है। बीएसएफ है। ट्रेन सुविधा है। अच्छी एजुकेशन के साथ ही हर तरह की सुविधाएं मौजूद हैं। ऐसे में अधिकारी अगर एक बार जैसलमेर आता है तो फिर जाने का नाम नहीं लेता।

बाड़मेर यानी काला सोना, तेल-गैस का भंडार

बाड़मेर के बारे में भी अब धारणा बदल गई है। यहां तेल व गैस की प्रचुरता के चलते और रिफाइनरी लगने की संभावना को देखते हुए जमीन की कीमतें रातोरात बढ़ गई है। लोग एक कमरा किराया पर देते हैं और छह हजार रुपये वसूलते हैं। जोधपुर-जयपुर से भी महंगा बाड़मेर हो गया है। जमीनों के भाव आसमान छू रहे हैं। यहां कई कंपनियों की सक्रियता से स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिल रहा है। लोग टैक्सी व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं। प्रॉपर्टी डीलर निहाल हो रहे हैं। लोगों की जीवन की दिशा ही बदल गई है। अब बाड़मेर रेतीले धोरों से घिरा उबाऊ शहर नहीं रहा।

शिक्षा के मामले में अब भी डार्क जोन


यह विडंबना ही है कि जैसलमेर और बाड़मेर शिक्षा के मामले में अब भी डार्क जोन है। यहां किसी शिक्षक की एक बार पोस्टिंग हो जाती है तो ट्रांसफर होना मुश्किल है। ऐसे में कई शिक्षक तो यहीं रिटायर्ड होकर यहीं बस गए हैं।

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