-मारवाड़ की परंपरा, संस्कृति व रहन-सहन को नजदीक से देखने के लिए सैलानी गुड़ा, कांकाणी, सालावास, लूणी व खेजड़ली पहुुुंचने लगे, खासकर विश्नोई विलेज सैलानियों को आ रहे हैं रास
-डी.के. पुरोहित-
विदेशी सैलानी मारवाड़ के रहन-सहन, परंपरा और संस्कृति को नजदीक से देखने के लिए अब विलेज सफारी पसंद कर रहे हैं। सैलानी आस-पास के गांवों में पहुंचते हैं और शांत वातावरण में ग्रामीणों के साथ कुछ पल सुकून से गुजारना पसंद कर रहे हैं। पिछले दो साल में इसका चयन बढ़ रहा है। एक सैलानी का तो यह कहना था कि आई वांट पीस...शांति की तलाश में पर्यटक ठेठ गांवों तक पहुंच रहे हैं।
पर्यटक खुली जीप में सवार होकर गांवों में पहुंचते हैं। रास्ते में विचरण करने वाले वन्य जीव जैसे हिरण, चिंकारा, मोर, कुरजां, माइग्रेट बर्ड्स, नील गाय व खरगोश को देखते हैं। कभी-कभार उन्हें जरख भी दिखाई देती है तो वे उसे कैमरे में उतारना नहीं भूलते। जीप में भ्रमण करने के दौरान रास्ते में हरे-भरे खेत देखकर भी वे रोमांचित होते हैं और गाइड को कहकर कुछ पल यहां भी गुजारना पसंद करते हैं।
झोपडिय़ां लुभाती है, मांडणे मन मोहते हैं
सैलानी विलेज सफारी इसलिए भी पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें गांवों में बनी झोपड़ियों की कलात्मकता भी रास आती है। झोंपड़ी में बने मांडणे, रंगोली और चित्रों को पर्यटक खूब पसंद करते हैं। घरों में अन्न-धान रखने के लिए पिंडारे बनाए जाते हैं, जिन्हें सैलानी खूब पसंद कर रहे हैं। पिंडारों से आशय अन्न-धान को एकत्रित कर उसे दरी से ढंक कर उस पर गोबर की परत जमाने से हैं। इन पिंडारों में वर्षों तक अन्न भंडार सुरक्षित रहता है।
फ्रिज सा ठंडा मटकी का पानी
गांवों में आज भी मटकी का ठंडा पानी पिया जाता है। सैलानियों को मटकी और घड़ों का पानी अच्छा लगता है। पानी पीने के साथ ही यहां परंपरागत रूप से कैर-सांगरी-कढ़ी-फली की सब्जियां और बाजरी के सोगरे खाकर उन्हें खूब सुकून मिलता है। अब यह भोजन ग्रामीणों को रोजगार भी दे रहा है। ग्रामीण एक थाली के पांच सौ से लेकर हजार रुपए तक लेते हैं और सैलानी यह भुगतान खुशी-खुशी करते हैं।
अफीम की मनुहार भी
गांवों में तो आज भी अफीम का हाका होता है। सुख-दुख जैसी भी परिस्थितियां हो अफीम की रियाण होती है। सैलानी भी ग्रामीणों से अफीम लेते हैं और उन्हें चखते हैं। अफीम का दूध भी सैलानियों को अच्छा लगता है। वे दही में भी अफीम डालकर सेवन करते हैं। यहां आज भी घट्टी चलाई जाती है। घट्टी चलती देखकर सैलानी रोमांचित हो जाते हैं और खुद भी अपने हाथ से चलाते देखते हैं।
तालाब पर प्रवासी पक्षी लुभाते हैं
गुड़ा के तालाब पर इन दिनों अच्छी खासी संख्या में कुरजां और प्रवासी पक्षी आए हुए हैं। इन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी पहुंच रहे हैं। पक्षियों की कलरव उन्हें खूब भाती है और वे घंटों तक यहां जमे रहते हैं। इसके बाद वे धोरों में अस्त होते सूरज को भी देखते हैं। कुम्हार के घर पर मटकी बनते देखना उन्हें अच्छा लगता है। ब्लॉक प्रिंटिंग व दरियों की बनावत व सजावट का काम भी उन्हें अच्छा लगता है।
इन गांवों में चलन बढ़ा
गुड़ा, कांकाणी, सालावास, लूणी व खेजड़ली में विलेज सफारी का चलन बढ़ रहा है। यहां प्रतिदिन सैकड़ों सैलानी पहुंच रहे हैं। इसके साथ ही जैसलमेर के सम, खुहड़ी व रामगढ़ में भी सैलानी विलेज सफारी पसंद कर रहे हैं। वहां तो इसका चलन दो दशक से हैं लेकिन जोधपुर के आस-पास के गांवों में कुछ समय से विलेज सफारी का ट्रेंड बढ़ रहा है।
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