भूख
आग से अधिक तेज
भूचाल से बड़ा जलजला
इससे बड़ा कोई सुनामी नहीं
सच्चाई यही है कि
सच की हत्या करके भी
अपना अस्तित्व बचाती है-
भूख।
जन्म के साथ
पैदा होती है
मांगती है खुराक
पेट को पापी यही बनाती है
इसकी लपटें
सदी की आत्मा को घायल कर देती है
जब यह करवट बदलती है
दफन हो जाते हैं
मानव, धर्म, साधना, शिवत्व
भूखा ऋषि
चबा डालता है कुत्ते की जांघ
एक भूख
भक्षण कर सकती है
दूसरे की भूख।
भूख जब पैदा हुई थी
उसने अपना अहं, अपना मान,
अपने संस्कार, अपनी चेतना,
अपनी अपणायत
सब कुछ पेट के हवाले कर दिया था
यही भूख
जब तब उभरती है
तो नारी अपना
जिस्म बेचने को होती है मजबूर
युवक पकड़ते हैं अपराध की राह
भूख अंतरआत्मा की नहीं सुनती आवाज
भूख की परिभाषा
लिख नहीं पाया ब्रह्मा
विधाता की चाक पर
भूख की मटकियां तोड़ देती हैं दम
भूख की भयानकता
भूख की हैवानियत
बयां नहीं की जा सकती शब्दों में
भूख का क्रंदन
नहीं सुनता कोई सुदामा और
चल पड़ता है कृष्ण के द्वार
भूख का सच यही है कि
भूख से लड़ नहीं सकता खुद सच
भूख के आगे सारे सच
हो जाते हैं स्वाहा
भूख की परिभाषा
दे सकता है कोई भूखा ही।
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