-राखी पुरोहित युवा पीढ़ी की सशक्त हस्ताक्षर है। आपने क्षणिकाओं के माध्यम से अपनी भावनाओं की गंभीरता को व्यक्त किया है। चाहे कोई विषय हो, शब्दों ने सुंदर अभिव्यक्ति के माध्यम से रचना को कालजयी बना दिया है। आप युवा पत्रकार भी हैं।
एक
शमां
कभी बन जाते हैं पागल
कभी बन जाते हैं सयाने
कभी बन जाते हैं शमां
देखे क्या जलते हैं परवाने।
दो
मंजिल
अकेले चल रहे हैं राहों में
हमें इसका गम नहीं
गम तो इस बात का है कि
हमारी कोई मंजिल नहीं।
तीन
क्या चाहते हो
कभी तुम मुस्कराते हो
कभी खयालों में आते हो
कभी तुम भूल जाते हो
कभी क्यों याद आते हो
कभी दिल तोड़ जाते हो
कभी हमें मनाते हो
कभी हंसाते हो हमको
कभी गम देकर जाते हो
पराया कर देते हो पल में
कभी अपना बनाते हो
फिर दूर करते हो हमको
कभी गले से लगाते हो
क्या चाहते हो हमसे
कभी ना ये बताते हो
सच तो यही है दोस्त
तुम हमें बहुत याद आते हो
तुम भी चाहते हो हमें बहुत
मगर ना ये बताते हो
कभी तुम मुस्कराते हो....
चार
रुसवा
कभी राहें हमें छोड़ देती है
कभी खुद राहों को छोड़ना पड़ता है
जब तकदीर ही हो जाए रुसवा
दिल को तोड़ना पड़ता है
पांच
खफा
खफा न हो ऐ जाने जिगर
खता क्या हुई कुछ तो बता मगर
कभी न तुझको तड़पाएंगे हम
रुठा न करो, हमसे इस कदर
छह
यादों का महल
तुम शाहजहां तो नहीं
जो मुमताज का वादा निभा सको
बाद मरने के
हम ही अपनी यादों का
महल छोड़ जाएंगे।
सात
बहाना
जी रहे हैं हम
बस तेरी याद के सहारे
ये बहाना ही न हो तो
जमाने में रहकर भी क्या करें?
आठ
मोहब्बत तो नहीं
तुझसे मिलना ही तो चाहते थे
बिछड़ने के बाद
और कोई हसरत न थी
तेरा दीदार ही तो करना चाहते थे
मोहब्बत तो नहीं।
नौ
तमन्ना
तमन्नाओं के फूलों से
इस दिल को सजाया है
सूना दिल था यह मेरा
इसमें कोई बहारे लाया है।
दस
खुद से ज्यादा
खुद से भी ज्यादा
तुम्हें प्यार करते हैं
खुदा से भी ज्यादा
तुम्हें याद करते हैं
आ जाओ कभी भूले से
हमारे घर
पलके बिछाए बस
यूं ही इंतजार करते हैं।
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