-राखी पुरोहित युवा पीढ़ी की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने चंद शब्दों में भावों को इस तरह पिरोया है कि कविता की माला बन गई। मंचीय कविताओं को आपने नई दिशा दी है।
एक
दोस्त
दोस्तों करो दोस्ती
अच्छी बात है
यह उनके लिए अच्छा
जो समझे दिल-ए-जज्बात है
पर उनको क्या कहें
जो नाम के यार हैं
बुरे वक्त में कहे
तेरा साथ बेकार है
इसलिए कहते हैं
कभी दोस्ती न करना
हमने तो ठोकर खाई
मगर आप न फिसलना।
दो
हमदम
जो चीज अपनी नहीं
उसका कैसा गम
क्यों पराई आस में
होती हैं आंखें नम
अपना है अगर कोई
ऐ-दिल मिल जाता है
हो भी जाए गर सहर
जोडि़यां बनती है
ऊपर ही कहीं
लाखों की भीड़ में
मिल जाता है हमदम।
तीन
तेरी जिंदगी में
तेरी जिंदगी में कभी गम न आए
मेरे हिस्से की खुशी भी
तुझे मिल जाए
बदनाम भी हो जाएं तेरी चाहत में डर नहीं
इन होंठों पर तेरा बस तेरा नाम आए
हम आंसू पीकर भी जी लेंगे ऐ दोस्त
तेरे होंठ सदा मुस्कराएं
हम चले जाएं वक्त से पहले ही सही
अपनी उम्र तेरे नाम कर जाएं
हमें तो गम सहने की आदत सी पड़ गई
पर जिंदगी के सफर में तू सदा मुस्कराए
तेरी जिंदगी में कभी गम न आए
मेरे हिस्से की खुशी भी तुझे मिल जाए।
चार
गहराई कम है
सागर की गहराई कम है
आसमां की ऊंचाई कम है
इतनी मोहब्बत है तुमसे
कहने को अल्फाज भी कम है
दिल की बात जुबां तक न आए
ये एहसास कहां तुझे सनम है
चाहे तुझको हासिल न करें
तेरी यादों के हकदार तो हम हैं
दीद की हसरत चाहे पूरी नहीं हो
दिल में तेरी तस्वीर सनम है।
पांच
स्वार्थ
इस भरी दुनिया में स्वार्थ सिवा
कोई बात नहीं
दिल को समझकर खिलौना
तोड़ गिराते हैं यहां
समझता कोई जज्बात नहीं
मजबूरी को समझते हैं बहाना
ये दिखावा ही है तो प्यार नहीं।
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