मुझे मुक्त होना है
प्यासी रात ने
भूखे दिन से कहा
आओ हम समय को खाएं और पीएं
ताकि जीवन बना रहे
समय ने अपना दामन समेटा
और हवा बन गया
हवा अब वहसी हो गई और
रात व दिन को निगल गई
इतने में एक गर्जना हुई
जिसने चांद को अपने आगोश में ले लिया
मैं अभी भी वह भयानक स्वप्न
भूल नहीं पाता
जब मां ने मुझे जन्म दिया
मेरा जन्मना इस धरती पर भार है
ठीक वैसे ही
जैसे दिन और रात का होना
न रात और दिन का अंत होता है
न ही मेरे जन्मने का
मैं कितनी ही बार
पैदा हुआ और मरा हूं
लेकिन न मां हारी है और न मैं
अब मुझे कुछ विश्राम करना है
मैं आसमां के अनंत आंचल का
दूध पीने को व्याकुल हूं
ब्रह्मांड में सूरज की
लोरी सुनने को अधीर हूं
कोई आए और मुझे
मुक्त करे पृथ्वी के कर्ज से।
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