गीत: डी.के. पुरोहित
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।
इस रूप को कोई छलिया कहे तो
यह भी मुझे गवारा नहीं
मेरी फितरत को यारों मैंने
किसी आइने में संवारा नहीं
जहर की सब जुबां जानता हूं
वो सयाना सपेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।
जानता हूं इशारों की भाषा
कोई इशारा करता नहीं हूं
तोप तलवारों को देख सामने
मर्दानगी का दम भरता नहीं हूं
शाम से नित समझौता करता
ऐसा सुहाना सवेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं
कोई पगला कहे तो ऐसा ही सही
अगला कदम तो न समझ पाएगा
जीवन की गूढ़ पहेलियों को
शायद ही कोई बूझ पाएगा
भौरों पर नहीं भरोसा मुझे
कीचड़ में कमल का डेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं
दोस्तों की दुनिया पर यकीं नहीं
साथी फिर भी बनाता हूं
हर सुर में राग मिलाता सही
अपनी भी राग गुनगुनाता हूं
यूं तो हर साज पसंद है मुझे
पर हमराज बस मेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।
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