Wednesday, 12 March 2014

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दर्द जब आंखों से छलकता है

गीत : डी.के. पुरोहित



दर्द जब आंखों से छलकता है
आंसू का दरिया बहता है
मेरे सीने में है जो गुबार
वह बाहर आने का मचलता है

कोर्इ इसे पागलपन कहता है
कोर्इ हंसकर निकलता है
मुझे क्या दुनिया से गिला
ना शिकवा कब कौन बदलता है
चंद शब्दों को हमदम बनाया है
फिर चाहे जमाना छलता है
दर्द जब आंखों से छलकता है
आंसू का दरिया बहता है
मेरे सीने में है जो गुबार
वह बाहर आने को मचलता है

कितनी खुशनसीब हो सुबह भले
इक दिन सूरज ढलता है
प्यार की बातें करने वाला ही
आस्तीन का सांप निकलता है
दो नावों में जो सवार है यहां
वही इक दिन डूब के मरता है
दुश्मन  से सावधान रहते हैं सभी
आदमी अपनेपन में ही मरता है
दर्द जब आंखों से छलकता है
आंसू का दरिया बहता है
मेरे सीने में जो गुबार भरा
वह बाहर आने को मचलता है।

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