Wednesday, 12 March 2014

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गीतों को पहनाएंगे कफन

गीत : डी.के. पुरोहित          




अपने हाथों से गीतों को
पहना कर कफन
मेहंदी को माटी में
सौ बार करेंगे दफन
तब कोर्इ कुर्सी रास्ता छोड़ेगी

शेखर-सुभाष की जमीं पर
भागांवाला राजगुरु बनेंगे
वतन को बचाना है फिर से
तो कसम से हम फिर तनेंगे
अपनी ही मौत को
खुद भेजेंगे समन
खुदगर्ज माली के भरोसे
न छोड़ेंगे ये चमन
तब कोर्इ डाली फूल से नाता जोड़ेगी

बातों ने रातों को रुलाया
मतों ने लोकतंत्र को बहलाया
दरिंदों ने दारू पीकर
दाग आंचल पर लगाया
दोजख और दावानल का
करेंगे हम दमन
अपने खूं से इस तिरंगे को करेंगे नमन
तब नर्इ इमारत नारियल फोड़ेगी

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