Thursday, 19 June 2014

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अपने दिलों में क्यों न ढूढ़ते भैया


गीत: डी.के. पुरोहित


कुरान में खुदा ढूंढ़ा
गीता में कन्हैया
अपने-अपने दिलों में 
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया

ये पौथियां पढ़-पढ़
सब लोग मर गए
कुछ खुदा की जन्नत
कुछ प्रभु के घर गए
सागर में जा मिले
सब ताल-तलैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया

प्रेम तो किया नहीं
किसी प्रेमसिंह ने
खोटे सिक्के खूब कमाए
हर हेमसिंह ने
अंत समय आया तो
सुधारी भूल-भुलैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया

कुर्सियों का झगड़ा
चढ़ा मंदिर की सीढि़यां
इस आग में जल रही
हमारी कई पीढि़यां
नफरत जहर फैला रहे
ले-लेकर रुपया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढंढ़ते भैया

मीरा के इस देश में
कबीर की साखियां
हिन्दू मुसलमां हमारी
यह हैं दो आंखियां
नजरों से गिर ना पाए
कोई रहमान रमैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया।

(यह गीत तब लिखा था जब राम मंदिर व बाबरी मस्जिद मुकदमे का अदालत से फैसला आने वाला था।)


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