गीत: डी.के. पुरोहित
धर्म को न देखो
मजहब को न देखो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
मंदिर तो मन में बसा
मस्जिद भी दिलों में हैं
मीरा-रसखान का देश
आज फिर मुश्किलों में है
भारत के भरत वीर तुम
देखो शांति न बेचो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
आजादी के लिए कल
हम मिलकर लड़े थे
फिरंगियों के सामने
हम डटके खड़े थे
देश चौराहे पर खड़ा
नफरत से ना सींचो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
उस रब के लिए तुम
यूं ही रखो रोजा
हम भगवान के लिए
करें उपवास औ पूजा
अल्लाह ईश्वर के बेटों
यह भेद उतार फेंको
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
(यह गीत तब लिखा था जब राम मंदिर व बाबरी मस्जिद मुकदमे का अदालत से फैसला आने वाला था।)
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