डी.के. पुरोहित
आस्तीन में सांप पलते रहे
नफरत के सांचों में ढलते रहे
जितना अमृत बांटना चाहा
खुदगर्ज जहर उगलते रहे
हादसे दर हादसे होते रहे
ये नेता पैंतरे बदलते रहे
हमने मांगी थी बस रोटी
वे दवाएं सस्ती करते रहे
जिन्होंने उठाया अपना सिर
वे मुकदमों से कुचलते रहे
यहां अपने हमाम में सब नंगे
रोज तोलिया ही बदलते रहे।
0 comments:
Post a Comment