Saturday, 28 December 2013

गीत - आओ मिलो मेरे गीतों से

आओ मिलो मेरे गीतों से

आओ मिलो मेरे गीतों से
इनसे आंखें चार करो।
खुद से जो खुद को मिला दे
उन गीतों से प्यार करो।
मेरे गीत तो धवल चांदनी
रातों का श्रंगार है।
प्यासी धरती पर जैसे
बादल की मल्हार है।
मंद पवन का झोंका बन
उनका तुम दीदार करो।
सौ-सौ फूल गुलाबों के
यह बांहों का गलहार है।
हर मौसम में मुस्काते
यह तो सदाबहार है।
दिल जजबातों को समझे,
इनसे तुम इकरार करो।

Wednesday, 25 December 2013

प्राचीन विरासत के संरक्षण की इंटैक पर भारी जिम्मेदारी

-प्रदेश की कला-संस्कृति व ऐतिहासिक संपदा व हेरिटेज को बचाने और संरक्षण की ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज’ (इंटैक) पर भारी जिम्मेदारी है। प्रदेश में विरासत व पुरा संपदा तार-तार हो रही है। सरकारी संरक्षण नहीं मिलने से उसकी निरंतर उपेक्षा हो रही है, इंटैक ने इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर विरासत का संरक्षण किया है, आगे भी इंटैक से बड़ी अपेक्षा है...

-डी.के. पुरोहित-

जोधपुर. प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्राचीन ऐतिहासिक हवेलियां, किले, छतरियां व स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण इमारतें जर्जर हो रही है। इनकी सार-संभाल नहीं हो रही है। यही नहीं प्राचीन तालाब, झालरे व पुरा संपदा का क्षरण हो रहा है। पर्यटन की दृष्टि से यह संपदा काफी महत्वपूर्ण है और इसके संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसे में पिछले दो दशक में इंटैक ने महत्वपूर्ण कार्य कर स्थापत्य और कला को बचाने की दिशा में अच्छी पहल की है। हालांकि इंटैक की राशि का पूरी तरह सदुपयोग नहीं हो पाया है, लेकिन फिर भी इस दिशा में अच्छी पहल की गई है और प्राचीन धरोहर की सार-संभाल हो पाई है।

हजारों साल पुरानी संपदा प्रदेश में यत्र-तत्र बिखरी हुई है। प्रदेश के गांव-ढाणियों से लेकर शहर के गली-चैबारों में कला का दिग्दर्शन हो जाता है। यह विरासत हमारे पूर्वजों की है। इसे सार-संभालने की जिम्मेदारी हमारी है। लेकिन इसकी हम कद्र नहीं कर रहे। यही वजह है कि पुरानी संपदा लुप्त होती जा रही है। प्राचीन परकोटों पर अतिक्रमण हो गए हैं। यही नहीं रियासत काल से चले आ रहे परकोटे अब कहीं नजर ही नहीं आ रहे। राजाओं के समय में पूरा शहर परकोटे के भीतर सुरक्षित रहता था। आजादी के बाद रियासतों का विलय हो गया। धीरे-धीरे आबादी बढ़ने लगी और परकोटे तोड़कर लोगों ने अतिक्रमण कर लिए। हालत यह है कि कई शहरों में परकोटे दिखाई नहीं दे रहे या फिर निशान ही बाकी है। भक्त शिरोमणि मीरांबाई से संबंधित धरोहर भी उपेक्षा की शिकार है। लबोलुआब यह है कि प्रदेश में सांस्कृतिक, कला व स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण धरोहर को बचाने की जरूरत है। इस संबंध में पिछले दिनों जोधपुर की होटल चंद्रा इन में दो दिवसीय सेमिनार आयोजित हुआ। इंटैक के इस सम्मेलन में हेरिटेल को बचाने की दिशा में व्यापक चर्चा हुई। साथ ही कई प्रस्ताव भी पास किए गए। इस सेमिनार में यह बात उभर कर सामने आई कि प्राचीन धरोहर और विरासत को बचाने की जिम्मेदारी इंटैक पर है। लोगों की अपेक्षा भी इंटैक से है।

लुप्त हो रही हेरिटेज संपदा सूचीबद्ध हो

इस सेमिनार में पूर्व नरेश गजसिंह ने कहा कि प्रदेश की लुप्त हो रही हेरिटेज संपदा को सूचीबद्ध करना होगा। संपदा कोने-कोने में बिखरी हुई है। इसकी उपेक्षा होने से यह संपदा का क्षरण हो रहा है। इन किलों, हवेलियों, छतरियों और महत्वपूर्ण इमारतों तथा मंदिरों के पत्थर झूल रहे हैं। छतरियां ध्वस्त हो रही है। गुंबज तार-तार हो रहे हैं। कई संपदा तो ऐसी है कि उनके बारे में लोगों को मालूमात भी नहीं है। ऐसे में पुरा संपदा को सूचीबद्ध करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हेरिटेज इंटैक की आत्मा है। इंटैक इस दिशा में अपने प्रयास जारी रखेगा। सरकारी स्तर पर भी संरक्षण के लिए इन धरोहरों का सूचीबद्ध होना जरूरी है।

लोंगटर्म टूरिज्म के लिए विरासत का संरक्षण जरूरी

इंटैक के राष्ट्रीय संयोजक मेजर जनरल एलके गुप्ता ने इस सेमिनार में कहा कि लोंगटर्म टूरिज्म के लिए विरासत का संरक्षण जरूरी है। प्रदेश में बिखरी हुई धरोहर को सहेजने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जैसलमेर और जोधपुर में प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते हैं। अगर हमें लोंगटर्म टूरिज्म बचाना है तो प्राचीन धरोहर का संरक्षण करना ही होगा। जैसलमेर व जोधपुर के गांव-ढाणियों में कला बिखरी हुई है। इनका डाॅक्यूमेंटशन कर संरक्षण करना होगा।

आज नहीं जागे तो कहीं देर न हो जाए

इंटैक के डिविजनल निदेशक कर्नल एमपीएस भाटिया ने कहा कि आज नहीं जागे तो कहीं देर न हो जाए। हमारे आस-पास जितनी भी संपदा बिखरी हुई है, उसकी लिस्ट बनानी होगी और एक-एक कर उसका संरक्षण व जीर्णोद्धार करना होगा। इसके लिए विभिन्न एनजीओ की मदद ली जा सकती है। अगर सरकार का सहयोग मिले तो अच्छी बात है और अगर नहीं मिलता है तो हमें एनजीओ के माध्यम से यह बीड़ा उठाना होगा।

युवा पीढ़ी पर भारी जिम्मेदारी

राज्य के सह संयोजक रणवीर सिंह, धर्मेन्द्र कंवर व जोधपुर चैप्टर के संयोजक डाॅ. महेंद्रसिंह नगर ने भी संपदा के संरक्षण की बात कही। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी पर जिम्मेदारी अधिक है। युवाओं को अपने पूर्वजों की विरासत को बचाने के प्रति जागरूक होना होगा। युवा अगर विरासत के प्रति जागरूक होंगे तो इस दिशा में अच्छा कार्य हो सकता है। हमारे हेरिटेज भवनों, नजूल संपत्तियों, जलाशयों व पार्कों को बचाना जरूरी है। इसलिए इंटैक से युवाओं को अधिक से अधिक जोड़ा जाएगा और उनके विजन का उपयोग लिया जाएगा।

बाॅयलाज नहीं बनने से दिक्कत आती है

इस मौके पर इंटैक के जोधपुर चैप्टर संयोजक डाॅ. महेंद्रसिंह नगर ने कहा कि स्थानीय स्तर पर हेरिटेज संरक्षण के लिए कोई बाॅयलाज नहीं होने की वजह से दिक्कत आती है और आगे कार्रवाई हो नहीं पाती। उन्होंने कहा कि हेरिटेज साइट्स के 50 मीटर के क्षेत्र को साइलेंस जोन घोषित किया जाना चाहिए ताकि उनको कोई नुकसान न हो सके। उन्होंने कहा कि जोधपुर के तालाब, झालरे भी हेरिटेज की श्रेणी में आते हैं, उनका सही संरक्षण करके इन धरोहरों को बचाया जा सकता है। अजमेर संयोजक महेंद्र विक्रमसिंह, कोटा संयोजक हरीसिंह पालकिया ने भी हेरिटेज संरक्षण के लिए लोगों की जागरूकता पर जोर दिया। सेमिनार में प्रो. कल्याणसिंह शेखावत, जेएम बूब, चंद्रा बूब, हिम्मतसिंह राठौड़, प्रदीप सोनी, रघुवीर सिंह भाटी, हेमंत राजसिंह, विक्रमसिंह भाटी, महेंद्रसिंह तंवर, जगतसिंह रावटी, हिमांशु बोहरा, भागीरथ वैष्णव ने भी सुझाव दिए।

Sunday, 22 December 2013

अभिनंदन नववर्ष 2014

12 महीने 12 संकल्प

-डी.के. पुरोहित-

समय बीत रहा है। जो आज है वह कल बन रहा है और जो कल होना है वो आज बन रहा है। वक्त किसी के रुके रुकता नहीं है। समय के आइने में हर तस्वीर इतिहास बन जाती है। बेशक़, हम आगे बढ़ रहे हैं, मगर पीछे कदमों के निशान छोड़ कर जा रहे हैं। फिर कैलेंडर में एक नया साल दस्तक दे रहा है। 2013 बीत रहा है। 2014 आ रहा है। सच यही है कि हम बीते हुए समय को याद नहीं करते और नए का स्वागत करने लग जाते हैं। यदि हम बीते हुए समय से सबक लें तो नया वर्ष भी हर्ष का प्रतीक बन सकता है। हमें अपनी भूलों और कमजोरियों को दूर कर नए वर्ष का स्वागत करना चाहिए। साथ ही संकल्प लेना चाहिए-कुछ नया करने का। कुछ ऐसा करने का कि नया वर्ष हमें निराश न करे। हमारे सामने बहुत सारे क्षेत्र हैं। बहुत बड़ा मैदान है। पूरा आसमां है उड़ान भरने के लिए। अनंत अभिलाषाएं हैं। हम अपनी संकल्प शक्ति से मुकाम पा सकते हैं। तो आइए हम नए साल 2014 के 12 महीनों में 12 संकल्प लें। ये 12 संकल्प हमें नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। हम अपने लक्ष्य में सफल होंगे। हमें इन संकल्पों के साथ आगे बढ़ना है। अपना मुकाम बनाना है। तो आएं हम इन 12 संकल्पों के साथ अपनी उड़ान शुरू करें।

1. ईमानदारी: राजनीति 

जब हम यह पंक्तियां लिख रहे हैं तब तक अन्ना का अनशन पूरा हो चुका है और लोकपाल बिल पास हो चुका है। इस बीच ‘आप’ सरकार बनाने के लिए मंथन कर रहा है। अन्ना का आंदोलन हमें यह संकेत दे रहा है कि बदलाव हो रहा है। आम आदमी पार्टी का उदय भारतीय राजनीति के इतिहास में बदलाव की कड़ी का आगाज है। केजरीवाल के रूप में एक व्यक्ति ने ऐसा संकल्प लिया कि राजनीति के मायने ही बदल गए। दिल्ली की जनता ने ‘आप’ को स्वीकार किया, उसके पीछे उसकी इच्छाशक्ति और राजनीति की गंदगी को दूर करना भी है। ‘आप’ का भविष्य क्या है, वह आने वाले समय में सामने आ ही जाएगा, लेकिन एक संकल्प ने एक इतिहास बना लिया। ऐसे में नया साल चुनौतियों का साल है। राजनीति को साफ-सुथरी बनाने और उसे जनता के लिए उपयोगी बनाने के लिए हमारे नेताओं को नववर्ष पर संकल्प लेना होगा। ऐसा संकल्प कि राजनीति के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, अनैतिकता, चारित्रिक कमजोरियों को दूर कर जिम्मेदार लीडरशिप देना हमारी प्राथमिकता हो।

2. संवेदना: पुलिस

नए साल में पुलिस का चेहरा भी बदलना चाहिए। हमारे आईपीएस अधिकारियों को अपने विभाग को संवेदनशील बनाने का संकल्प लेना होगा। वक्त बदला, लेकिन पुलिस नहीं बदली। आज भी संवेदनहीनता उसकी प्रवृत्ति बन चुकी है। आम आदमी का भरोसा पुलिस नहीं जीत पाई है। एक जिम्मेदार विभाग की साफ-सुथरी और स्वच्छ छवि बनाने की जिम्मेदारी पुलिस महकमे की है। अपराधों पर रोक लगाने और गुनहगारों को सजा दिलाने के लिए पुलिस को अपना रवैया बदलना होगा। यह कैसे करना है, इस पर मंथन करना होगा। खासकर आम आदमी के साथ अच्छा व्यवहार और अपराधियों व गुनहगारों के खिलाफ सख्त रवैया अपना होगा। संवेदनशील होकर कानून की पालना करना पुलिस का दायित्व होगा। आजादी के बाद से अब तक पुलिस की छवि बदल नहीं पाई है। अंग्रेजों के बनाए कानून आज भी जारी है। इन कानून की आड़ में पुलिस महकमा निरकुंश हो गया है। संवेदनाएं तो जैसे खत्म ही हो गई है। ऐसे में इस महकमे में बदलाव की जरूरत है। आम आदमी का मित्र बनकर ही पुलिस महकमा अपने उद्देश्यों में सफल हो सकता है। यदि डंडे के जोर पर ही कार्रवाई होती रही तो संवेदनाएं खत्म हो जाएगी। इसलिए पुलिस को बदलने के लिए तैयार होना होगा।

3. नई सोच: ब्यूरोक्रेसी

विधानसभा और संसद कानून बनाती है। लेकिन इन कानूनों को चलाने की जिम्मेदारी ब्यूरोक्रेसी की है। नौकरशाह समय के साथ निरकुंश हो रहे हैं। अधिकारी भ्रष्ट हो गए हैं। चपरासी-बाबू से लेकर कलेक्टर और कमिश्नर तक भ्रष्ट हो गए हैं। हमारी व्यवस्था में रिश्वत दाग बनकर सामने आया है। ऐसे में आम आदमी कहां जाए? किसका दरवाजा खटखटाए। छोटे-बड़े काम के लिए पैसे मांगे जाते हैं। ब्यूरोक्रेसी को अपना रवैया बदलना होगा। नया साल नई सोच का है। ब्यूरोक्रेसी को नई सोच से काम करना होगा। अगर ब्यूरोक्रेसी नई सोच के साथ काम करेगी तो देश की सूरत अवश्य बदलेगी। हमारे सामने कई क्षेत्र हैं-पर्यटन, कला, संस्कृति, समाज, रोजगार, न्याय और विभिन्न मसलों पर ब्यूरोक्रेट जागरूक होकर, राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन कर हमारी सूरत बदल सकते हैं।

4. नव ऊर्जा: युवा

देश की असली ताकत युवा है। युवा ही भारत का भविष्य है। अब युवाओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। राहुल गांधी के रूप में देश के युवाओं को अच्छा नेतृत्व मिल सकता है। राहुल गांधी में अभी क्षमताएं हैं। नई सोच है। जागरण की अलख जगाने में वे सक्षम है। राहुल गांधी युवाओं की हमेशा पैरवी करते रहे हैं। वे जहां भी जाते हैं युवाओं को राजनीति में आने और राजनीति को स्वच्छ बनाने की बात कहते हैं। अब जिम्मेदारी युवाओं पर है कि वह देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। युवा अवस्था ऐसी अवस्था होती है, जब व्यक्ति का दिमाग, व्यक्ति का विजन, बड़े-बड़े कार्य करवाने में समक्ष हो सकती है। हमारे युवाओं को केवल देष का उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए सोचना होगा। सारा दारोमदार युवाओं पर हे। हमें पीछे नहीं हटना है। अपने दायित्वों, अपनी जिम्मेदारियों को निभाना है। युवाओं को अपने समर्पण से देश को निखारना होगा। देश के विकास में, देश को ताकतवर बनाने में युवाओं की शक्ति मायने रखती है। हर क्षेत्र में युवाओं को अपनी ऊर्जा लगानी होगी।

5. कर्मशीलता: किसान

देश की बड़ी आबादी गांवों में बसती है। किसान उनका नेतृत्व करता है। कृषि प्रधान देश में किसान भूखा सोए, यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है। हमारे नेतृत्व को किसानों की ओर देखना होगा, साथ ही किसान को भी सक्षम होना होगा। किसान को समृद्ध करने से ही देश समृद्ध होगा। जब किसान आर्थिक रूप से सक्षम होगा तभी देश विकास के डग भरेगा। हमारी भूख मिटाने के लिए किसान अन्न उपजाता है। मौसम की मार सहता है। गर्मी, सर्दी सहन करता है। दिन-रात मेहनत करता है। किसान की तपस्या से ही अन्न खेतों में लहराता है। ऐसे में कर्मशीलता के कदम भरते हुए हमें किसानों को समृद्ध बनाना होगा। यह कर्मशीलता किसानों के लिए ही नहीं हर व्यक्ति के लिए लागू होती है। गीता में भी निष्काम कर्म का संदेश दिया गया है। यदि हम कर्म को अपना धर्म बनाएंगे तो आने वाली तस्वीर अच्छी होगी। हम अपने आप पर गर्व कर सकेंगे।

6. चुनौतियां: शिक्षा, संविधान, पूंजीवाद

हमारा देश विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। नए साल में शिक्षा, संविधान और पूंजीवाद की चुनौतियों से लड़ना होगा। पूंजीवाद की संस्कृति ने मुट्ठी भर लोगों के हाथों में ताकत दे दी है। जिनके पास पूंजी है, वे राज कर रहे हैं। गरीब और गरीब हो रहा है। आम आदमी के बच्चे शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते। हाई एजुकेशन आम आदमी की पहुंच से दूर है। शिक्षा के ढांचे को बदलने की जरुरत है। यह तभी संभव होगा जब न्यायपालिका मजबूत होगी। पिछले कुछ वर्षों में न्याय पालिका ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। एक के बाद एक साफ फैसलों ने देश को आभास कराया है कि न्याय की ताकत भी होती है। हमारे सामने शिक्षा को बढ़ावा देने और संविधान के अनुसार देश चलाने की चुनौतियां हैं। यह तभी संभव है जब आम आदमी के पास शिक्षा का अधिकार हो और संविधान से हर आदमी को लाभ मिल सके।

7. राष्ट्रभक्ति: जय जवान

हर व्यक्ति को देश के प्रति वफादार होना होगा। राष्ट्रभक्ति हमारे खून में है। देश के प्रति हर आदमी के भीतर जज्बा है। हमें इस जज्बे को नए वर्ष में भी कायम रखना होगा। साथ ही देश के जवानों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। किसान के साथ जय जवान को भी जय के लिए तैयार होना होगा। वो देष हमेशा सुरक्षित रहता है, जिस देश का बच्चा-बच्चा देश के लिए सर्वस्व लुटाने को तत्पर रहता है। हमें अपनी देशभक्ति से देश को आगे बढ़ाना होगा। देश है तो सारे सुख है। देश की आजादी के लिए जो बलिदान हमारे पूर्वजों ने दिया है, उसे याद रखना होगा। देश को बचाने के लिए। देश को आगे बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति को जय जवान बनना होगा। हमारी सामरिक शक्ति बढ़ानी होगी। सामरिक शक्ति बढ़ाने के साथ ही सीमाओं की रक्षा में अपनी पूरी ताकत लगा देनी होगी। देश की सीमा अभेद होगी। सुरक्षा चक्र अभेद होगा, तभी देश विकास के बारे में सोच सकेगा। अगर देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं होंगी तो विकास के कदम डगमगा सकते हैं।

8. विजेता: जय विज्ञान, सामरिक

भारत अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। विजेता बनना उसकी आदत बन चुकी है। चाहे विज्ञान का क्षेत्र हो या कोई और। हर क्षेत्र में देश ने तरक्की की है। विजेता बनना हमारी आदत है। हमें नए-नए प्रयोग करने होंगे। हमारी सामरिक ताकत बढ़ानी होगी। देश को यह साबित करना होगा कि वह सोने की चिडि़या है और दुनिया को जीत सकता है। इसके लिए हमारे वैज्ञानिकों, हमारे डाॅक्टरों, हमारे इंजीनियरों, हमारे निर्माताओं को आसमां जैसा विराट बनना होगा। हाल ही में हमारे विदेष मंत्री ने कहा कि अब भारत बदल गया है। इसके मायने भी यह है कि कोई भी देश भारत को कमजोर न समझे। विज्ञान के क्षेत्र में हमारे देश ने गजब की तरक्की की है। हमारे वैज्ञानिक विदेशों में प्रतिभा दिखा रहे हैं। ऐसे वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे देश के लिए काम करे। प्रतिभा का उपयोग अपने देश के विकास और नई ताकत बनाने में करे। पैसा ही अंतिम लक्ष्य नहीं है। देश का विकास, देश की रक्षा-सुरक्षा और देश के खातिर कार्य करेंगे, यही जज्बा हमे विश्व विजेता बनाएगा।

9. प्रेम व सरलता: नारी सशक्तिकरण, पारिवारिक जिम्मेदारी

जीवन में प्रेम व सरलता भी जरूरी है। नारी सशक्तिकरण की बातें तो खूब होती है, मगर नारी शक्ति को महत्व देना होगा। हमारी महिलाओं को खुद सक्षम होना होगा। यह साबित करना होगा कि वे अबला नहीं है और हर क्षेत्र में सक्षम है। इसके लिए नारी को दोहरी भूमिका निभानी होगी। एक तरफ पारिवारिक जिम्मेदारी निभानी होगी, दूसरी तरफ सामाजिक क्षेत्र में। प्रेम के विभिन्न रूपों में नारी को अपना योगदान देना होगा। संतान के लिए ममत्व, पति के प्रति समर्पण और परिवार के प्रजि सहजता, सरलता व जागरूकता निभानी होगी। साथ ही दुनिया के हर क्षेत्र में उन्हें अपने आपको साबित करना होगा। हमारे देश में नारी को देवी का दर्जा प्राप्त है। कहा भी गया है-यत्र नारियस्तु पूजयते, रमंते तत्रदेवता...यह बात अपनी जगह सही है। लेकिन मौजूदा दौर में नारी के साथ पूरी तरह न्याय नहीं हो पाता। अब नारी को कठपुतली बनने से बचना होगा और हर क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

10 विकास: उन्नत राष्ट्र, सूचना-प्रौद्योगिकी व खेल

देश आगे बढ़ रहा है। सही मायने में विकास तब होगा जब भारत में हर तरह की तकनीक का विकास हो। सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तरक्की करनी होगी। उन्नत राष्ट्र के लिए जो जरूरी है, वह सब देश के लोगों को करना होगा। अभी हम हर क्षेत्र में विदेशों की ओर तकते हैं। ये सारी उपलब्धियां देश में ही मौजूद रहेंगी तभी सही मायने में देश का विकास होगा। चाहे अनाज हो, चाहे चिकित्सा हो, चाहे विज्ञान हो और चाहे कोई और क्षेत्र, हर किसी में देश के लोग आगे बढ़ेंगे तभी देश के लोग गर्व कर सकेंगे। इसके लिए हर व्यक्ति को अपने तुच्छ स्वार्थ छोड़ने होंगे। हमारे देश की आबादी दुनिया में सर्वाधिक है, मगर खेल के विभिन्न क्षेत्रों में हम पिछड़े जा रहे है। ऐसे में देश की प्रतिभा को निखारना होगा। देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। लेकिन उन्हें मंच देने की जरूरत है। इसके लिए राजनीतिक और भाई-भतीजावाद की नीति को दूर कर प्रतिभाओं को तराशने का कार्य करना होगा।

11  आस्था: सकारात्मक सोच, आत्मविश्वास

आस्था जरूरी है। भगवान में भी और अपने धर्म के प्रति। धर्म से आशय मजहब से नहीं है। जो सत्य और ईमानदारी की राह पर चले वही धर्म है। व्यक्ति को अपनी सोच बदलनी होगी। जब अपने आप पर भरोसा होगा। आत्मविश्वास होगा तभी आस्था कायम रह सकेगी। जब आस्था डगमगा जाएगी तो विकास का ढांचा ही डगमगा जाएगा। इसलिए हमेशा ऊंची सोच रखनी होगी। हमें अपने आप पर जब यह भरोसा हो जाएगा कि हम जो कर रहे हैं वह उचित है। वह देश और अपने समाज के लिए उपयोगी है, तो फिर गलत कदम नहीं उठेंगें। हमारे समस्त ऊर्जा का सदुपयोग होना चाहिए। जब हम अपनी ताकत का गलत उपयोग करेंगे या निगेटिव प्रयोग करेंगे तो देश का सही मायने में विकास नहीं हो पाएगा। समाज को भी सुखी-समृद्ध और खुशहाल बनाने के लिए आत्मविश्वास व आस्था के बल पर निर्णय लेने होंगे।

12 सदव्यवहार: हर क्षेत्र में आचार संहिता

जीवन में हमें सद्व्यवहार करना होगा। अपने आप के लिए आचार संहिता बनानी होगी। जो व्यवहार हम अपने लिए पसंद नहीं करते, उसे दूसरों के लिए भी उपयोग में नहीं लेना होगा। अगर हम अपने व्यवहार को बदल लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। व्यवहार ही हमारे विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए हमें सद्व्यवहार की राह पर चलना होगा। अच्छा व्यवहार दुश्मन को भी मित्र बना देता है और बुरा व्यवहार दोस्त को भी दुश्मन बना देता है। हमें अपने पड़ौसी देशों के साथ भी अच्छा व्यवहार रखना होगा। पड़ौसी दुश्मन नहीं होगा तो हमारा आंतरिक विकास भी अच्छा होगा। अगर देश की सीमाओं के पार पड़ौसी से अच्छे व्यवहार नहीं होंगे, तो देश हमेशा संशय में रहेगा और विकास कार्य नहीं हो पाएंगे। आचार्य चाणक्य ने भी कहा है व्यवहार के बल पर ही सत्ता बदल जाती है। मगध के राजा ने चाणक्य के साथ दुव्र्यवहार किया तो चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर सत्ता ही बदल दी। इसलिए अपने व्यवहार को हमेशा अच्छा रखना चाहिए।  


Friday, 20 December 2013

नगर परिषद की जवाहरलाल नेहरू आवासीय योजना कोमा में

-40 हजार से अधिक लोगों ने फॉर्म भरे, लेकिन एक साल बीत गया अभी तक लॉटरी नहीं निकाली, यहां सुविधाएं भी नहीं है, लोगों में नगर परिषद के खिलाफ आक्रोश भड़का, कोर्ट जाने की चेतावनी

संजय पुरोहित. जैसलमेर

नगर परिषद की जवाहरलाल नेहरू योजना कोमा में चली गई है। आज से करीब साल भर पहले परिषद ने योजना लांच की थी, मगर तब से लेकर अब तक 13 महीने बीत गए हैं, न तो परिषद ने लॉटरी निकाली और न ही यहां सुविधाएं मुहैया करवाई। हालत यह है कि लोग अपने प्लॉट का इंतजार कर रहे हैं और परिषद लोगों को संतुष्ट नहीं कर पाई है।

आज से 13 महीने पहले कॉलोनी लांच की गई थी। लोगों ने फॉर्म के साथ ही राशि जमा करवा दी थी, लेकिन उन्हें न तो रुपए वापिस दिए और न ही प्लॉट के लिए लॉटरी ही निकाली। लोगों के सब्र का बांध भी टूट रहा है। कुछ लोगों ने कोर्ट में जाने की भी चेतावनी दी है।

करोड़ों रुपए लिए, ब्याज कौन देगा

जवाहरलाल नेहरू कॉलोनी में अपने नाम प्लॉट निकले, इस उम्मीद से 40 हजार से अधिक लोगों ने प्रारंभिक राशि फॉर्म के साथ भर दी थी। इन फॉर्मों से नगर परिषद को करोड़ों रुपए का राजस्व मिला, लेकिन न तो परिषद ने लॉटरी निकाली और न ही राशि लौटाई । और तो और इन करोड़ों रुपयों का ब्याज भी नगर परिषद हजम कर गई।

लोगों के साथ धोखा हो रहा है

नगर परिषद ने लोगों को सब्जबाग तो दिखाए मगर लॉटरी अभी तक नहीं निकाली गई है। लोगों का कहना है कि उनके साथ धोखा हो रहा है। 13 माह बीत गए परिषद जवाब ही नहीं दे रही है। लोग नगर परिषद के चेयरमैन व आयुक्त से कॉलोनी के बारे में पूछते हैं, लेकिन कोई संतोषप्रद जवाब नहीं दे रहे।

कोर्ट में जाएंगे 

लोगों का कहना है कि एक महीने के भीतर अगर परिषद प्लॉट के लिए लॉटरी नहीं निकाल पाई तो मजबूरन कोर्ट की शरण लेनी पड़ेगी।

साहूकर से व लोन लेकर जमा करवाई थी राशि

लोगों का कहना है कि अपने आशियाने के ख्वाब के चलते साहूकार से राशि उधार लेकर और लोन लेकर राशि नगर परिषद में जमा करवाई थी। मगर अभी तक परिषद द्वारा लॉटरी निकालने की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है।

अब सब्र का बांध टूट रहा है

लोगों के सब्र का बांध अब टूट रहा है। उनका कहना है कि नगर परिषद उनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर रही है। उन्होंने जैसे-तैसे राशि जमा करवाई थी, मगर 13 महीनों में परिषद ने उन्हें संतुष्ट नहीं किया।

कॉलोनी में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं

नगर परिषद ने इससे पहले लक्ष्मीचंद सांवल आवासीय कॉलोनी काटी थी, जिसमें सालों बीत गए, मूलभूत सुविधाएं विकसित नहीं की गई है। वहां पर कई मकान भी बन गए, लेकिन बिजली-पानी की सुविधा नहीं है। सड़कें भी क्षतिग्रस्त है। इसी तरह जवाहर लाल नेहरू आवासीय कॉलोनी में भी मूलभूत सुविधा मुहैया नहीं करवाई गई है। नियमानुसार कॉलोनी में बिजली-पानी की सुविधाएं मुहैया करवानी चाहिए, मगर परिषद इसमें विफल रही है। परिषद के पास अभियंताओं की कमी है। जो है भी तो वह नौ सिखिए हैं। यहां पर रोड बनी है लेकिन पूरी उधड़ गई है।

बोर्ड नाकाम, जन आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतारा

कांग्रेस का बोर्ड नाकारा साबित हुआ है। बोर्ड जनता की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरा है। अधिकारी मौन है। जनता परेशान है। अगर यही रवैया रहा तो अगले चुनाव में जनता सबक सिखाएगी। परिषद ने जगह-जगह होर्डिंग्स लगाकर अपनी उपलब्धियों का बखान किया है, लेकिन वस्तुस्थिति यह है परिषद के बोर्ड ने केवल बड़े-बड़े वादे ही किए हैं, धरातल पर कोई काम नहीं हुआ है। 

Sunday, 15 December 2013

बिना जरूरत कर देते हैं प्रसव के दौरान सीजेरियन

-निजी अस्पतालों में डॉक्टर प्रसव के दौरान बिना जरूरत के ही सीजेरियन कर देते हैं, इसके पीछे दो बातें हैं-एक तो निजी अस्पतालों को आय अधिक होती है और दूसरा कारण है खुद महिला और उसके पति भी सीजेरियन पसंद करते हैं ताकि सेक्स में प्रॉब्लम न हो, कई विशेष संयोग की वजह से भी सीजेरियन को महत्व दिया जाता है

-डी.के. पुरोहित-

केस-एक :  11.12.13 का संयोग। रमा और उसके पति राहुल चाहते थे कि इस संयोग पर ही उनके घर मेहमान आए। फिर क्या था उन्होंने डॉक्टर से कह दिया कि निर्धारित डेट से पहले ही इस संयोग पर सीजेरियन कर दें।

केस-दो :  श्वेता और शनि के पहली संतान होने वाली थी। शनि चाहता था कि संतान के बाद उनका दांपत्य जीवन खासकर सेक्स में प्रॉब्लम न आए, इसलिए सीजेरियन से ही डिलीवरी हो।

जोधपुर। अब प्रसव के दौरान सीजेरियन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसके पीछे निजी अस्पतालों की अधिक आय अर्जित करने का कारण तो है ही, साथ ही महिला व उनके परिजनों की इच्छा भी मायने रखती है। कई लोगों का मानना है कि प्रसव के बाद सेक्स में आनंद नहीं आता, इसलिए सीजेरियन करवा देते हैं। इसके साथ ही निजी अस्पतालों में सीजेरियन की मोटी फीस और खर्चे को देखते हुए भी डॉक्टर बिना जरूरत के ही सीजेरियन कर देते हैं।

‘नेचुरल डिलीवरी एंड सीजेरियन’ नामक एनजीओ के शोध में सामने आया है कि जोधपुर में सीजेरियन के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पिछले एक दशक में 80 प्रतिशत मामले में सीजेरियन कर दी जाती है। इस एनजीओ ने पिछले एक दशक में स्थिति पर नजर रखी और यह बात सामने आई कि बिना जरूरत ही डॉक्टर सीजेरियन कर देते हैं।

सहज सेक्स भी बड़ा कारण

इस एनजीओ की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रसव के बाद सेक्स में आनंद नहीं आता। इसलिए भी पति की इच्छा रहती है कि सीजेरियन करवाया जाए। आधुनिक युवा और शिक्षित लोग सीजेरियन पर जोर देते हैं। शहर में प्रसव के 70 प्रतिशत मामलों में पति सीजेरियन को महत्व देते हैं। पिछले एक दशक में 80 प्रतिशत मामले सीजेरियन के पाए गए हैं।

निजी अस्पताल आय के लिए करतें हैं सीजेरियन

रिपोर्ट में बताया गया है कि निजी अस्पतालों में आय अधिक हो, इसके लिए सीजेरियन की जाती है। अकेले जोधपुर की बात करें तो यहां के वसुंधरा अस्पताल और राजदादीसा अस्पताल में होने वाले प्रसव के 60 प्रतिशत मामलों में सीजेरियन की जाती है। राजदादीसा अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ कोषल्या माहेश्वरी का मानना है कि डिलीवरी के मामले में जरूरत होने पर ही सीजेरियन की जाती है। कई बार मामला गंभीर होता है तो भी सीजेरियन की जाती है। वे इस बात इत्तेफाक नहीं रखती कि बिना जरूरत के सीजेरियन की जाती है। हां, वे यह बात अवश्य स्वीकार करती है कि कभी संयोग की वजह से पति की इच्छा पर सीजेरियन एक-दो दिन पहले या बाद में अवश्य की जाती है।

गंभीर मामलों में तो सीजेरियन होती है

वसुंधरा अस्पताल के विशेषज्ञ बताते हैं कि गंभीर मामलों में तो सीजेरियन करना जरूरी हो जाता है। उनका मानना है कि आज-कल महिलाओं में प्रसव के दौरान प्रॉब्लम अधिक होती है। कई बार गर्भस्थ शिशु की स्थिति को लेकर तो कई बार अन्य कारणों की वजह से सीजेरियन जरूरी हो जाती है। इसलिए यह कहना कि अस्पताल आय के लिए सीजेरियन पर जोर देते हैं, पूरी तरह सही नहीं हैं।

बीमारियों का घर है घरों पर लगे टॉवर


-जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर में लोगों के घरों व काॅलोनियों में लगे हैं मोबाइल टॉवर । इन टॉवर  से निकलने वाले घातक विकिरणों से कैंसर सहित कई बीमारियां हो सकती है, हाईकोर्ट ने हटाने के आदेश दिए हैं, लेकिन बावजूद टॉवर  हटाने में कंपनियां रुचि नहीं दिखा रही...

-डी.के. पुरोहित-

जोधपुर.जैसलमेर.बाड़मेर। पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर जिलों में मोबाइल कंपनियों के टॉवर  लोगों के घरों व आवासीय काॅलोनियों में लगे हुए हैं। पैसों के लालच में आकर लोग टाॅवर तो लगा रहे हैं, लेकिन ये टॉवर  बीमारियों को आमंत्रण दे रहे हैं।

जोधपुर में तो हाईकोर्ट ने इन टॉवरों को हटाने के आदेश भी दिए थे, लेकिन मोबाइल कंपनियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अभी तक काॅलोनियों व घरों पर टॉवर लगे हुए हैं। लोग भी आर्थिक लाभ को देखते हुए इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

कैंसर व अन्य बीमारियां हो सकती है

विशेषज्ञों का मानना है कि इन टॉवर से निकलने वाले विकिरणों से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। इससे कैंसर रोग भी हो सकता है। यही नहीं इन विकिरणों के प्रभाव से लोग नपुंषक भी हो सकते हैं। इनसे नाजुक अंगों पर विपरीत असर पड़ सकता है। यही नहीं एलर्जी होना आम बात है। लोग आर्थिक लाभ को देखते हुए इसके हानिकारक प्रभाव की अनदेखी कर रहे हैं, लेकिन इसका दूरगामी असर स्वास्थ्य पर घातक हो सकता है।

नियमों की भी अनदेखी हो रही है

मोबाइल कंपनियां नियमों की अनदेखी कर रही हैं । नियमानुसार आबादी वाली काॅलोनियों व घरों पर टॉवर नहीं लगाए जा सकते हैं। लेकिन न तो मोबाइल कंपनियां इन नियमों को फाॅलो कर रही हैं, न ही लोग ध्यान दे रहे हैं। इसके चलते आबादी वाली काॅलोनियों व घरों पर टॉवर बिना रोक-टोक लग रहे हैं। काॅलोनी में बसने वाले दूसरे लोग भी इन टाॅवरों के लगने का विरोध नहीं करते हैं, जिससे मोबाइल कंपनियां फायदा उठा रही है।

सौ से अधिक टॉवर आबादी क्षेत्रों में लगे हैं

जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर की स्थिति पर गौर करें तो सौ से अधिक टॉवर आबादी क्षेत्र में लगे हुए हैं। हाईकोर्ट ने इन टॉवरों को हटाने के आदेश दिए थे, लेकिन कुछ टॉवर हटाए गए, बाकी टॉवर अभी तक लगे हुए हैं। इन टॉवरों को हटाने में न तो लोग रुचि दिखा रहे हैं, न ही मोबाइल कंपनियां ही ध्यान दे रही।

कुछ लोगों के स्वार्थ का दूसरे लोग उठा रहे नुकसान

जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर में जगह-जगह टॉवर लगे हुए हैं। कुछ लोगों के स्वार्थ का असर दूसरे लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए अन्य लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। लोगों को अभी पूरी तरह इन विकिरणों के हानिकारक प्रभावों की जानकारी भी नहीं है, यही वजह है कि टॉवर लगने का विरोध नहीं होता।

क्या कहते हैं लोग:---

प्रशासन कार्रवाई करे

डाॅ. दीनदयाल ओझा का कहना है कि प्रशासन को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए और इन टाॅवरों को हटाना चाहिए। ये टॉवर लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से घातक है। अतः तुरंत ही आदेष जारी कर इन टाॅवरों को हटाना चाहिए।

टॉवर भविष्य में न लगने दें

डाॅ. जेके पुरोहित का कहना है कि भविष्य में टॉवर आबादी क्षेत्रों व लोगों के घरों पर न लगे, इसके लिए प्रशासन को कड़ा रुख अपनाना चाहिए। इस ओर ध्यान नहीं देने का नतीजा है कि आबादी क्षेत्रों में निरंतर टॉवर लग रहे हैं।

लोगों में जागरूकता जरूरी

सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश कुमार ने बताया कि इन टॉवरों को हटाने के लिए प्रशासन की सख्ती के साथ ही लोगों में जागरूकता जरुरी है। लोग जागरूक होंगे तो इस प्रकार के टॉवर नहीं लगाए जा सकेंगे।
थोड़े से लाभ के लिए स्वास्थ्य की अनदेखी बंद हो

मेडिकल व्यवसायी सुरेश वासु ने बताया कि स्वास्थ्य की दृष्टि से ये टॉवर लोगों के लिए घातक हैं। थोड़े से लाभ के लिए स्वास्थ्य से खिलवाड़ बंद होनी चाहिए। अगर लोग यह सोच लें कि काॅलोनियों में मोबाइल टॉवर नहीं लगने देंगे तो मोबाइल कंपनियां लाख कोशिश करके भी टॉवर नहीं लगा पाएगी।

जनचेतना से ही लग पाएगी रोग

एडवोकेट मुकुंद व्यास ने बताया कि टॉवर लगना तभी बंद होगा जब लोगों में चेतना आए। जनचेतना से ही इस दिशा में कार्रवाई हो सकती है। लोग ये सोच ले कि बीमारियों के घर इप टॉवरों को घरों पर नहीं लगने देंगे तो मोबाइल कंपनियां चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएंगी।

Friday, 13 December 2013

गोल्डन सिटी व सनसिटी में होगा क्रिसमस व नववर्ष का धमाल

-होटलों व रेस्टहाउस में नो रूम, सिलिबे्रशन की तैयारियां पूरी, जैसलमेर में सम व खुहड़ी के धोरों में कैमल फायर में जमेगा लोक संगीत का रंग, जोधपुर में भव्य आयोजन में शरीक होंगे देशी-विदेशी सैलानी....

-डी.के. पुरोहित-

जोधपुर. जैसलमेर। सनसिटी व गोल्डन सिटी में देशी-विदेशी सैलानी इस बार बड़ी संख्या में मनाएंगे क्रिसमस व न्यू ईयर का जश्न। जश्न के चलते होटलों, गेस्ट हाउस व रिसोर्ट में तैयारियां पूरी कर ली गई है। विदेशी सैलानी क्रिसमस का जश्न मनाने बड़ी संख्या में जैसलमेर व जोधपुर आते हैं। जोधपुर में जहां इस बार कई अनूठे आयोजन होंगे वहीं जैसलमेर में भी सैलानियों को लुभाने के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है। हालत यह है कि अग्रिम बुकिंग होने के बाद जोधपुर व जैसलमेर में होटलों, गेस्ट हाउस व रिसोर्ट में कोई रूम खाली नहीं है। ऐसे में सैलानियों के लिए अलग से टैंट लगाकर व्यवस्था की जा रही है।

जैसलमेर में सम व खुहड़ी के धोरों में धमाल होगा। कैंप फायर आयोजन के दौरान राजस्थानी लोक संगीत की प्रस्तुति से सैलानियों का मनोरंजन किया जाएगा। क्रिसमस को लेकर इस बार होटलों में सांता क्लॉजविशेष उपहार लेकर आएगा। बच्चों से लेकर बड़ों तक सांता क्लॉज उपहार देगा। क्रिसमस ईव पर भी जश्न मनाया जाएगा।

राजस्थानी भोजन रहेगा आकर्षक

जोधपुर व जैसलमेर की होटलों में राजस्थानी भोजन विशेष आकर्षण का केंद्र रहेगा। कैर-सांगरी की सब्जी, कैर-सांगरी की कढ़ी, बाजरी की रोटी, छाछ, काचरा-फली की सब्जी और सांगरी का आचार सैलानियों को खूब अच्छा लगता है। इसके लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है।

क्रिसमस ट्री सजने लगे

क्रिसमस को देखते हुए क्रिसमय ट्री सजने लगे हैं। साथ ही होटलों पर लाइटिंग, रौशनी व दीपमालिका की जा रही है। जोधपुर में उम्मेद भवन पैलेस, होटल ताज हरि, श्रीराम इंटरनेशनल, विवांता सहित विभिन्न होटलों में तैयारियां पूरी कर ली गई है। अब यहां आने वाले सैलानियों के लिए अलग से टैंट लगाने की व्यवस्था की जा रही है। जैसलमेर के सम के धोरों पर टैंट लगाए जा रहे हैं। यहां बने रिसोर्ट ऑलरेडी बुक है। होटलों में कमरे खाली नहीं मिल रहे। यहां तक कि धर्मशालाओं में भी कमरे खाली नहीं है।

सूर्यास्त का नजारा धोरों में लुभाएगा

जैसलमेर के सम व खुहड़ी में सूर्यास्त का नजारा देखने के लिए सैलानी लालायित रहते हैं। इस बार भी सैलानियों के लिए विशेष बंदोबस्त किए गए हैं। सम व खुहड़ी में सैलानियों के लिए केमल सफारी की व्यवस्था भी की गई है। यहां कई रिसोर्ट भी बने हुए हैं, जिसमें बुकिंग हो चुकी है।

जोधपुर में सिलिब्रिटीज का आना शुरू

इस बीच जोधपुर में सिलिब्रिटीज का आना शुरू हो गया है। विभिन्न फिल्मी कलाकार पिछले कई दिनों से आ-जा रहे हैं। कुछ दिन पहले ही देश के सबसे अमीर मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी का जन्म भी यहां मनाया जा चुका है। इसी कड़ी में कई व्यापारिक घरानों के लोग यहां आ रहे हैं। जोधपुर अब देश में पर्यटन व जन्म दिन व शादियों के आयोजन के लिए विशिष्ट पहचान बना चुका है।

जैसलमेर में फिल्मों की शूटिंग के अवसर बढ़े

पर्यटन की दृष्टि से जैसलमेर सिरमौर है ही, अब यहां फिल्मों की शूटिंग भी अधिक होने लगी है। अब तक सौ से अधिक फिल्मों की शूटिंग जैसलमेर में हो चुकी है। इससे यहां के लोगों को आय भी हो रही है। पिछले दो-तीन महीनों में ही आधा दर्जन फिल्मों की शूटिंग जैसलमेर में की जा चुकी है।

आतिशबाजी भी लुभाएगी

नववर्ष पर आतिशबाजी भी सैलानियों को लुभाएगी। गोरबंध पैलेस, रंग महल, ढोला मारु, देवकीनिवास, नारायण निवास, सर्किट हाउस, मूमल टूरिस्ट बंगलो, डाक बंगलो सहित विभिन्न होटलों में सैलानियों को लुभाने की विशेष व्यवस्था की गई है। रात्रि में आतिशबाजी भी की जाएगी। इसके साथ ही नववर्ष का धमाल होगा।

वन टू थ्री फॉर, गेट ऑन दी डांस फ्लोर

चेन्नई एक्सप्रेस का प्रसिद्ध सांग वन टू थ्री फॉर, गेट ऑन दी डांस फ्लोर.....यह गाना इस बार नववर्ष की पार्टियों का आकर्षण का केंद्र रहेगा। डांस की विशेष व्यवस्था की गई है। इस गाने पर आधी रात तक सैलानी थिरकते रहेंगे। इसके साथ ही लुंगी डांस लुंगी डांस भी सैलानियों को लुभाएगा।

लोक संगीत पर थिरकेंगे विदेशी

विदेशी सैलानियों के बीच यहां का लोक संगीत विशेष आकर्षण का केंद्र रहेगा। शहर के कई कलाकार विदेशों में अपनी गायकी का रंग जमा चुके हैं। ये गायक कलाकार अब होटलों व रिसोर्ट में नववर्ष व क्रिसमस पर सैलानियों का मनोरंजन करेंगे। निंबुडा-निंबुडा...पधारो म्हारे देस....उड़ जाना हंस अकेला रे...ऐसे कई लोक गीत सैलानियों को लुभाएंगे। इसके साथ ही डेजर्ट सिंफनी की विशेष प्रस्तुति भी रहेगी।

Thursday, 12 December 2013

पैसे वाले पी रहे आरओ वॉटर, आम आदमी को सरकार क्यों नहीं पिलाती शुद्ध पानी

-एक अनुमान के अनुसार देश  में 45 प्रतिशत लोगों को पानी आसानी से उपलब्ध नहीं है, 30 प्रतिशत लोग अशद्ध पानी पीने को मजबूर है, 15 प्रतिशत लोग सामान्य पानी पीते हैं और 10 प्रतिशत लोग आरओ वॉटर पीते हैं, इन आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे आम पब्लिक को आरओ वॉटर तो दूर पानी भी आसानी से नहीं मिलता.....

-डी.के. पुरोहित-

आजादी के 65 साल बाद भी देश  के लोग शुद्ध पानी पीने से वंचित है। पैसे वाले लोग आरओ वॉटर पी रहे हैं, जबकि आम आदमी को आरओ वॉटर तो दूर पानी भी आसानी से नसीब नहीं होता। एक अनुमान के अनुसार देश  में 45 प्रतिशत लोगों को पानी आसानी से उपलब्ध नहीं है। 30 प्रतिशत लोग अशुद्ध पानी पीने को मजबूर हैं। 15 प्रतिशत लोग सामान्य पानी पीते हैं और 10 प्रतिशत लोग आरओ वॉटर पीते हैं। हमारे देश  की 85 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है। गांवों में आम पब्लिक को पीने का पानी भी आसानी से नसीब नहीं होता। जो पानी मिल रहा है वह भी प्रदूषित है।

देश  में आजादी के बाद विकास के दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि हमारे नेता जनता को शुद्ध पानी तक उपलब्ध नहीं करवा पाए हैं। देश  के सरकारी अस्पतालों तक का पानी पीने योग्य नहीं है। स्कूलों में बच्चों को दूषित पानी पीना पड़ता है। बचपन से ही यदि प्रदूषित पानी पीते आ रहे हों बच्चे तो उनके अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना ही कैसे की जा सकती है। गांवों में तालाबों, कुओं, बावड़ियों का पानी पीकर लोग गुजारा करते हैं। नहर का पानी आने के बाद कई प्रदेशों में जनता को राहत मिली है, लेकिन ऐसे गांव व शहर चुनिंदा ही है। आम आदमी को तो दूषित पानी ही पीना पड़ता है। अब सवाल यह है कि पैसे वाले लोग आरओ का वॉटर पीते हैं तो आम पब्लिक को भी ऐसा पानी क्यों नहीं मिलता है।

सबको मिले आरओ वोटर

हिन्दुस्तान का वास्तविक विकास तभी होगा जब आम आदमी को भी आरओ वॉटर मिले। देश की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ बंद हो और उन्हें पीने को शुद्ध पानी मिले। लेकिन यहां आम आदमी तो क्या सरकारी अस्पतालों तक में आरओ वॉटर नहीं मिलता। इन अस्पतालों में लोग चंदे और दान के पैसों से बनी प्याउ का पानी पी रहे हैं। इससे बीमारियां ठीक होने की बजाय लोग और अधिक बीमार पड़ जाते हैं। अगर हमारे भाग्य विधाता और हमारे सत्ता के कर्णधार देश की जनता को शुद्ध पानी ही नहीं पिला सकते तो उनका नेतृत्व सफल नहीं कहा जा सकता।

पानी महंगा कर दें, मगर हो शुद्ध पानी

एक बहस इस दिशा में हो रही है कि देश की जनता को शुद्ध पानी पीने को मिले। पानी का बिल प्रतिमाह सौ रुपए के करीब आता है, अगर इसकी कीमत 250 रुपए तक कर दी जाए तो भी लोग खुशी से बिल भरेंगे, मगर शर्त यह है कि वह आरओ वॉटर हो। सरकारों को सोचना होगा कि पानी की कीमत बढ़ाकर भी शुद्ध पानी जनता तक पहुंचे। इस धरती पर पानी की मात्रा सीमित है। ऐसे में इसका सदुपयोग हो और लोगों को जो पानी मिले, उसकी क्वालिटी भी शुद्ध हो। ऐसा किया जा सकता है कि नहाने, कपड़े धोने और निर्माण कार्यों आदि के लिए अलग से पानी सप्लाई किया जाए और पीने के लिए शुद्ध पानी वितरित किया जाए। अभी तो यह कल्पना लगती है, लेकिन जिस दिन ऐसा हुआ तभी देश का असली विकास कहा जाएगा।

सरकारी स्कूलों व अस्पतालों में शुद्ध पानी मिले

देश की जनता को तुरंत शुद्ध पानी मिले, यह अगर एकदम संभव न हो तो कम से कम स्कूलों व अस्पतालों में तो शुद्ध पानी सप्लाई किया ही जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्य से 60 फीसदी स्कूलों में बच्चे अशुद्ध पानी पीने को मजबूर है। सरकारी अस्पतालों में भी पानी पीने योग्य नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षाविद जगदीश कुमार पुरोहित का कहना है कि सरकारों की सफलता तभी कही जाएगी जब स्कूलों व अस्पतालों में शुद्ध पानी मिले।

स्वच्छ पानी मिलेगा तभी लोग स्वस्थ रहेंगे

हमारे देश में आयु प्रत्याशा विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। इसका मोटे तौर पर कारण अशुद्ध पानी भी एक कारण है। अगर हमारे नेता देश की जनता को शुद्ध पानी उपलब्ध करवा दे तो आयु प्रत्याशा बढ़ सकती है। बचपन से ही अशुद्ध पानी पीने से कई तरह की बीमारियां घेर लेती है और इसका असर हमारी जीवन क्षमता पर भी पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि सबको स्वच्छ पानी मिले, ताकि स्वस्थ रहा जा सके।

बिन पानी सब सुन

एक तरफ सबको आरओ वॉटर की बहस चल रही है, दूसरी ओर लोगों को पानी ही नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश की जनता को पानी उपलब्ध करवाया जाए या आरओ वॉटर। सरकारों की प्राथमिकता यह रहती है कि पहले गांव के लोगों को पानी मिले। लेकिन यह पानी शुद्ध हो यह जरूरी नहीं। ऐसे में ग्रामीणों के अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना कैसे की जा सकती है। देष की पश्चिमी सीमा पर बसे मरुस्थलीय जिलों की बात करें तो यहां बाॅर्डर पर बसे गांवों को पीने का पानी ही नसीब नहीं है। पानी के लिए रोज अभियान चलाना पड़ता है। पैदल चलकर महिलाओं को पांच-दस किलोमीटर दूर से पानी ढोना पड़ता है। गांवों के तालाब और कुएं कब तक लोगों की प्यास बुझाएंगे? ऐसे में आरओ वॉटर की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती।

शुद्ध पानी मिलेगा तभी लोकतंत्र सफल होगा

हमारे देश के लोगों को शुद्ध पानी मिलेगा, तभी सही मायने में लोकतंत्र सफल होगा। अभी हम विकास के कितने ही दावें कर लें। परमाणु संपन्न हो जाए। चांद पर पहुंच जाएं। लेकिन जब तक जनता को शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं करवा सकते, विकास के सब दावे खोखले होंगे। सबसे पहले देश की जनता को शुद्ध पानी दिया जाए। 

Tuesday, 10 December 2013

कंप्यूटर क्रांति ने लाइब्रेरी का महत्व घटाया

-अब लाइब्रेरी जाकर पुस्तकें पढ़ने का चलन घट रहा है, इंटरनेट पर उपलब्ध है हर तरह का साहित्य, पुस्तकों का महत्व घट रहा है

-डी.के. पुरोहित-

जोधपुर. देश में लगने वाले पुस्तक मेले फ्लाॅप हो रहे हैं, क्यों? ऐसा नहीं है कि साहित्य की गुणवत्ता खत्म हो गई हो, बल्कि कंप्यूटर व इंटरनेट क्रांति ने पुस्तकों का महत्व कम कर दिया है। एक उपन्यास की कीमत 500 रुपए हो वही उपन्यास इंटरनेट पर उपलब्ध है। यही नहीं दुनिया में किसी भी विषय से संबंधित जानकारी चाहिए, इंटरनेट पर चंद सैकंड में उपलब्ध है। ऐसे में लोग पुस्तकें क्यों खरीदें?

अब कंप्यूटर और इंटरनेट हमारी जिंदगी का हिस्सा हो गया है। युवा घंटों तक कंप्यूटर का उपयोग करते हैं। इंटरनेट पर जो जानकारी चाहिए उपलब्ध है और युवाओं का इसके प्रति क्रेज भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में लाइब्रेरी जाकर पुस्तकों को लाना कौन पसंद करेगा। बड़े-बड़े शहरों में लाइब्रेरी भी दूर-दराज क्षेत्रों में होती है, ऐसे में समय निकाल कर लाइब्रेरी जाना और पुस्तकें इश्यू करवाने की बजाय लोग साइबर कैफे जाकर 10-20 रुपए में मनचाहा साहित्य पढ़ सकते हैं। अब तो घर-घर में इंटरनेट है, फिर लाइब्रेरी क्यों जाएं?

पुस्तकें धूल फांक रही है

पिछले पांच साल में एक अनुमान के अनुसार 45 प्रतिशत पाठकों की लाइब्रेरी में कमी आई है। यहां तक कि काॅलेजों और स्कूलों की लाइब्रेरी में भी स्टूडेंटृस का रुझान घटने लगा है। ऐसे में लाइब्रेरी में पुस्तकें धूल फांक रही है। जोधपुर की ही बात करें तो यहां के सार्वजनिक लाइब्रेरी में पाठक घटे हैं। यही नहीं अब लाइब्रेरी के सदस्य भी घट रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में नए सदस्य बहुत कम बने हैं।

लाइब्रेरी में निशुल्क इंटरनेट की डिमांड

एक तरफ कंप्यूटर व मोबाइल क्रांति से लाइब्रेरी में पुस्तकों के पाठक कम हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ युवाओं की मांग है कि लाइब्रेरी में ही कंप्यूटर सैट लगा दिए जाएं और इंटरनेट की निशुल्क सुविधा हो, ताकि लोग पुस्तकों के साथ-साथ आॅन लाइन जानकारी प्राप्त कर सकें। फिलहाल ऐसा प्रयोग लाइब्रेरी में नहीं हुआ है, लेकिन आने वाले समय में पाठकों के लिए लाइब्रेरी में ही इंटरनेट सुविधा मिल सकती है। हां, मौजूदा दौर में लाइब्रेरी की सभी पुस्तकों की सूची कंप्यूटर पर उपलब्ध है। लेकिन इससे पाठकों को सीधे तौर पर कोई फायदा नहीं मिला है।

वाचनालय से भी पाठक हुए दूर

लाइब्रेरी के साथ ही वाचनालय भी होता है। यहां भी पाठक घट रहे हैं। हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अखबार और पत्र-पत्रिकाएं आॅन लाइन उपलब्ध है, फिर वाचनालय में क्यों जाएं? अब वाचनालय में उम्रदराज लोग ही अधिकतर जाते हैं। सेवानिवृत्त लोगों को ही वाचनालय में देखा जाता है।

क्या है लोगों की प्रतिक्रिया---

समय की बर्बादी है लाइब्रेरी जाना

साहित्यकार लक्ष्मीनारायण खत्री का कहना है कि अब इंटरनेट का जमाना है। लाइब्रेरी अब समय का सदुपयोग नहीं रहा। अब तो हर तरह की जानकारी आॅन लाइन उपलब्ध है, फिर लाइब्रेरी जाकर समय बर्बाद क्यों किया जाए।

विकास का पर्याय है इंटरनेट

शिक्षक विनोद व्यास का मानना है कि इंटरनेट विकास का पर्याय है। लाइब्रेरी बीते जमाने की बात हो गई। अब तो कंप्यूटर क्रांति ने जीवन का अंदाज ही बदल दिया है। ऐसे में लोगों का रुझान इंटरनेट की तरफ बढ़ा है।

इंटरनेट युवाओं की पसंद

बैंक कर्मचारी चंद्रमोहन सिंघवी बताते हैं कि युवाओं की पसंद इंटरनेट है। अब तो मोबाइल भी एक से बढ़कर एक आ गए हैं। इन मोबाइल पर इंटरनेट सहित कई तरह की सुविधा उपलब्ध है, फिर युवा लाइब्रेरी में जाकर क्यों समय बर्बाद करना चाहेंगे।

अब तो इंटरनेट का ही जमाना

पत्रकार संजय पुरोहित का कहना है कि अब तो इंटरनेट का ही जमाना है। लाइब्रेरी जाने की बजाय इंटरनेट खंगालें तो हर तरह की जानकारी मौजूद है। इंटरनेट ने हमारे जीवन की दिशा ही बदल दी है।