गीत: डी.के. पुरोहित
कल जब हम न होंगे इस दुनिया में
कोई हमारे गीत गुनगुनाएगा
इन गीतों के आइने में दोस्तों
हमारा ही चेहरा नजर आएगा
उन लम्हों की याद में आंख बहेगी
रह-रह कर हमारी कहानी कहेगी
तुम्हारी बेवफाई पर तुम ही हंसोगी
यह पीर अकेली जवानी सहेगी
चांद की खामोशियां सहेगा आसमां
टूटा तारा राह में बिखर जाएगा
कल जब हम न होंगे इस दुनिया में
कोई हमारे गीत गुनगुनाएगा
इन गीतों के आइने में दोस्तों
हमारा ही चेहरा नजर आएगा
प्यार के बदले मैंने प्यार ही मांगा
मगर प्रिये तुमने दौलत को चाहा
तुमने वही किया जीवन में
जो तुम्हारे खुदगर्ज मन को भाया
बिखर जाएगा सब जवानी का मेला
सागर में सूरज सांझ सजाएगा
कल जब हम न होंगे इस दुनिया में
कोई हमारे गीत गुनगुनाएगा
इन गीतों के आइने में दोस्तों
हमारा ही चेहरा नजर आएगा।
Geet
गीत: डी.के. पुरोहित
मतलब के सब रिश्ते नाते
मतलब का संसार है
पैसों का सब मोल लगाते
धन-माया से प्यार है
दूर कहीं छूटा नारायण
कपट का सब व्यापार है
मतलब के सब रिश्ते नाते
मतलब का संसार है
आंख खोलकर देख ले बंदे
अच्छे नहीं ये गोरखधंधे
लालच के क्यों बुनता फंदे
प्रभु नाम में सार है
मतलब के सब रिश्ते नाते
मतलब का संसार है
आना-जाना लगा यहां है
मोह-माया में ठगा यहां है
ईश्वर ही बस सगा यहां हैं
बाकी सब कुछ बेकार है
मतलब के सब रिश्ते नाते
मतलब का संसार है
जीवन पर कब किसका दावा
जाने कब आ जाए बुलावा
दुनिया है बस एक छलावा
देह पलभर का शृंगार है
मतलब के सब रिश्ते नाते
मतलब का संसार है।
गीत: डी.के. पुरोहित
कल जो तेरा था
आज वो मेरा है
कल किसी और का हो जाएगा
बस इतनी सी बात
समझ लेना प्राणी
तेरा हो जाएगा बेड़ा पार तू सुन ले ओ नादां
हमने तोल-मोल में गिन-गिन
गुजारे जीवन के दिन चार
फिर एक दिन आ गया
बुलावा मालिक का
जो आया है वो निश्चित जाएगा
बस इतनी सी बात
समझ लेना प्राणी
तेरा हो जाएगा बेड़ा पार तू सुन ले ओ नादां
सदा न चलता रूप का जादू
रख ले तू भावों पर काबू
यहां सब खिलौने माटी के
वो मनचला है कुंभकार
अपनी मर्जी खूब चलाएगा
बस इतनी सी बात
समझ लेना प्राणी
तेरा हो जाएगा बेड़ा पार तू सुन ले ओ नादां
मंजिल का किनारा ढूंढ़
समंदर का नहीं कोई छोर
उजाले की आशा में यहां
छली जाती है नित भोर
आनी-जानी है शाम, जीवन डूब जाएगा
बस इतनी सी बात
समझ लेना प्राणी
तेरा हो जाएगा बेड़ा पार तू सुन ले ओ नादां।
गीत: डी.के. पुरोहित
हम आए हैं दुनिया में
जाएंगे कब कैसे कहां
इस बात को सोच-सोच के
परेशां हो घूमे न कहां-कहां
मिला न उत्तर मौन रहा आसमां
मिट्टी में मिला जीवनहार
बंद मुट्ठी आए थे, चले गए हाथ पसार
जीवन भर लादे रहे
पापों की गठरी कांधे पर
बदलते रहे चेहरे
ढूंढ़ते रहे घर किराए के
मोल भाव में उम्र गुजारी
रास न आया व्यापार
बंद मुट्ठी आए थे चले गए हाथ पसार
सपने हमने खूब बुने
बगिया से फूल खूब चुने
सुगंध का सार न समझ सके
भटकते रहे अंधेरी गलियों में
मचलते रहे रंग-रलियों में
समझ न सके अपना आधार
बंद मुट्ठी आए थे चले गए हाथ पसार
इससे रूठे, उससे रूठे
बदले जाने कितने खूंटे
कुछ थे सच्चे, कुछ थे झूठे
ये रिश्ते नाते भी है अनूठे
जितने आए इनके करीब
दूरियां बढ़ती गई हर बार
बंद मुट्ठी आए थे चले गए हाथ पसार।
गीत: डी.के. पुरोहित
धर्म को न देखो
मजहब को न देखो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
मंदिर तो मन में बसा
मस्जिद भी दिलों में हैं
मीरा-रसखान का देश
आज फिर मुश्किलों में है
भारत के भरत वीर तुम
देखो शांति न बेचो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
आजादी के लिए कल
हम मिलकर लड़े थे
फिरंगियों के सामने
हम डटके खड़े थे
देश चौराहे पर खड़ा
नफरत से ना सींचो
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
उस रब के लिए तुम
यूं ही रखो रोजा
हम भगवान के लिए
करें उपवास औ पूजा
अल्लाह ईश्वर के बेटों
यह भेद उतार फेंको
इंसानियत के दुश्मनों
इनसान को देखो
(यह गीत तब लिखा था जब राम मंदिर व बाबरी मस्जिद मुकदमे का अदालत से फैसला आने वाला था।)
गीत: डी.के. पुरोहित
खुदा तुम्हारे दिल में है
और मेरे भीतर राम है
मंदिर मस्जिद के झगड़ों में
देश आज बदनाम है
राम न देता रोटी मुझको
काम से चलती गाड़ी है
कुर्सी पर बैठा वो नेता
सबसे बड़ा खिलाड़ी है
ऐसे में वो जहर फूंकता
मरती यहां अवाम है
मंदिर मस्जिद के झगड़ों में
देश आज बदनाम है
आओ गीत अमन के गाएं
न्याय करें अपने घर का
लिए तराजू अंधी आंखें
क्यों करै फैसला उसके दर का
सबकी पूरी करें मुरादें
वो रामदेव का धाम है
मंदिर मस्जिद के झगड़ों में
देश आज बदनाम है
इन पेड़ों की रचना में
एक बीज का गलना है
अल्लाह ईश्वर के बेटों को
आखिर इक दिन मरना है
जन्नत की बातें बेकार
स्वर्ग वसुधा नाम है
मंदिर मस्जिद के झगड़ों में
देश आज बदनाम है
सूरज का तो धर्म यही
पर उपकार में जलना है
आसमां के आंगन में
तारों संग चांद को रहना है
कायनात की कोख कहां
किस मां ने दिया इनाम है
मंदिर मस्जिद के झगड़ों में
देश आज बदनाम है।
(यह गीत तब लिखा था जब राम मंदिर व बाबरी मस्जिद मुकदमे का अदालत से फैसला आने वाला था।)
गीत: डी.के. पुरोहित
कुरान में खुदा ढूंढ़ा
गीता में कन्हैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया
ये पौथियां पढ़-पढ़
सब लोग मर गए
कुछ खुदा की जन्नत
कुछ प्रभु के घर गए
सागर में जा मिले
सब ताल-तलैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया
प्रेम तो किया नहीं
किसी प्रेमसिंह ने
खोटे सिक्के खूब कमाए
हर हेमसिंह ने
अंत समय आया तो
सुधारी भूल-भुलैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया
कुर्सियों का झगड़ा
चढ़ा मंदिर की सीढि़यां
इस आग में जल रही
हमारी कई पीढि़यां
नफरत जहर फैला रहे
ले-लेकर रुपया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढंढ़ते भैया
मीरा के इस देश में
कबीर की साखियां
हिन्दू मुसलमां हमारी
यह हैं दो आंखियां
नजरों से गिर ना पाए
कोई रहमान रमैया
अपने-अपने दिलों में
इसे क्यों न ढूंढ़ते भैया।
(यह गीत तब लिखा था जब राम मंदिर व बाबरी मस्जिद मुकदमे का अदालत से फैसला आने वाला था।)
गीत: डी.के. पुरोहित
तेरे होंठ ना छुए तो
मेरा हर गीत अधूरा है
मेरा हर गीत अधूरा है
यह भावों की दुनिया है
मैं बाती तुम दीया हो
इसी जगत से ऊर्जा पाते
इस नाव के तुम्ही खिवैया हो
तेरे होंठ ना छुए तो
मेरा हर गीत अधूरा है
मेरा हर गीत अधूरा है
तेरी मरजी से ये सपने
तुझसे चलता ये संसार
तुम्ही से चंद सांसे लेकर
मैने लिया जीवन उधार
तेरे होंठ ना छुए तो
मेरा हर गीत अधूरा है
मेरा हर गीत अधूरा है
तुम गाती हो तब ही
मैं लिख पाता हूं गीत
जीवन की इस रणभूमि में
तुमसे ही है मेरी जीत
तेरे होंठ ना छुए तो
मेरा हर गीत अधूरा है
मेरा हर गीत अधूरा है।
गीत: डी.के. पुरोहित
जिन राहों पर फूल हो
उन राहों पर सब चलते हैं
सिर्फ परवाने हैं जिगर वाले
जो हमेशा समां संग जलते हैं
साहस का संबंध जो होता
आदमी के शरीर से
क्यों फिरते सलमान मलखान
बने यूं अधीर से
सागर है कितना भरा हुआ
फिर भी धारे हाथ से फिसलते हैं
सिर्फ परवाने हैं जिगर वाले
जो हमेशा समां संग जलते हैं
यह दुनिया नाम परेशानी का
हल खुद ही तलाशना होगा
अगर धरती पर जगह नहीं
हमें चांद पर जा बसना होगा
कोई दौड़ते महलों के पीछे
कोई बस दो गज ढूंढ़ते हैं
सिर्फ परवाने हैं जिगर वाले
जो हमेशा समां संग जलते हैं
इतिहास को बदलना हो तो
वक्त को पकड़ना होगा
जान को हथेली पर लेकर
जिंदगी का दांव खेलना होगा
मौत से घबराने वाले ही
यहां जीत से हाथ मलते हैं
सिर्फ परवाने है जिगर वाले
जो हमेशा समां संग जलते हैं
कर्म पर करें विश्वास
भाग्य नाम है निराशा का
भगवान से सफलता मांगना
प्रतीक है हताशा का
ना गीता उद्वेलित करतीं
ना पुराण सदा फलते हैं
सिर्फ परवाने हैं जिगर वाले
जो हमेशा समां संग जलते हैं।
गीत: डी.के. पुरोहित
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।
इस रूप को कोई छलिया कहे तो
यह भी मुझे गवारा नहीं
मेरी फितरत को यारों मैंने
किसी आइने में संवारा नहीं
जहर की सब जुबां जानता हूं
वो सयाना सपेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।
जानता हूं इशारों की भाषा
कोई इशारा करता नहीं हूं
तोप तलवारों को देख सामने
मर्दानगी का दम भरता नहीं हूं
शाम से नित समझौता करता
ऐसा सुहाना सवेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं
कोई पगला कहे तो ऐसा ही सही
अगला कदम तो न समझ पाएगा
जीवन की गूढ़ पहेलियों को
शायद ही कोई बूझ पाएगा
भौरों पर नहीं भरोसा मुझे
कीचड़ में कमल का डेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं
दोस्तों की दुनिया पर यकीं नहीं
साथी फिर भी बनाता हूं
हर सुर में राग मिलाता सही
अपनी भी राग गुनगुनाता हूं
यूं तो हर साज पसंद है मुझे
पर हमराज बस मेरा हूं मैं
मेरे गीत मेरी कहानी नहीं है
जो दिखता नहीं वो अंधेरा हूं मैं
आसमां में जैसे सूरज को ढंकता
कोई बादलों का घेरा हूं मैं।