Sunday, 19 July 2015

महामुकाबला या महाबेशर्मी!

-संसद का मानसून सत्र मंगलवार से शुरू हो रहा है, कांग्रेस का कहना है कि कम से कम तीन इस्तीफे चाहिए, तभी संसद चलने देंगे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साफ कह चुके हैं कि एक भी इस्तीफा नहीं देने देंगे, हम संसद में महामुकाबला करेंगे, अब देश की जनता को कौन बताए कि यह महामुकाबला है या महाबेशर्मी

-डीके पुरोहित-

हमारे देश की संसद में उसी तरह लड़ाई होती है जैसे गली-चौराहों पर झगड़े होते हैं। अब तक का अनुभव तो यही रहा है। मंगलवार से संसद का शीतकालीन सत्र क्या रूप लेगा, कोई नहीं जानता। कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में जोरदार लड़ाई लड़ने की तैयारी कर चुकी है तो भाजपा ने इसके बचाव की रणनीति बना ली है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, वसुंधरा राजे से मिल कर मुकाबले के तीर-तरकश तैयार कर लिए तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह देर शाम दिल्ली पहुंचे और उन्होंने भी शाह से भेंट की। शाह कह चुके हैं कि सुषमा स्वराज अपना बचाव खुद करेगी। बाकी मुख्यमंत्रियों का बचाव पार्टी करेगी। मानसून सत्र के लिए रणनीति बनाने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल के साथ बैठक की। वसुंधरा को खास तौर पर बुलाया गया था। आना तो चौहान को भी था। लेकिन वे शाम को दिल्ली पहुंच सके। तब उन्होंने शाह से मुलाकात की। शाम को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू और जेटली से मुलाकात की। शाह भी बैठक में मौजूद थे। सोमवार को स्पीकर सुमित्रा महाजन और संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सर्वदलीय बैठकें बुलाई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने घर पर एनडीए दलों के नेताओं से चर्चा करेंगे। फिर संसदीय बोर्ड की कार्यकारिणी से मिलेंगे।

राज्यसभा में कांगेस की ओर से विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि पूरे देश की भावना है कि ललित मोदी कांड में फंसी वसुंधरा राजे और व्यापमं घोटाले में आरोपों के घेरे में आए शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें। लेकिन ‘मोटी चमड़ी की मोदी सरकार’ किसी की भावना का आदर नहीं कर रही है। आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला है कि प्रधानमंत्री विपक्ष और जनभावना को इस कदर नजरअंदाज कर रहे हैं।
उधर, भाजपा मीडिया सेल इंचार्ज श्रीकांत शर्मा ने चेतावनी दी है कि अगर कांग्रेस ने होहुल्लड़ किया तो हम आक्रामक और प्रभावी तरीके से कांग्रेस के दुष्प्रचार का मुकाबला करेंगे। जहां तक ललित मोदी विवाद का सवाल है, कांग्रेस भ्रमित है। एक तरफ तो वह ललित मोदी के बयान के आधार पर हमारे नेताओं से इस्तीफा मांग रही है। वहीं प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा पर दिए ललित मोदी के बयानों पर उसके पास कोई जवाब नहीं है। हम उन पर जवाब मांगेंगे। गौरतलब है कि तीन हफ्ते के सत्र के लिए सरकार के एजेंडे में 24 विधेयक हैं। इनमें नौ राज्यसभा में और चार लोकसभा में लंबित हैं। 11 नए विधेयक लाना है। जमीन अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है। इसका टलना तय है। जीएसटी विधेयक दूसरा महत्वपूर्ण विधेयक है। कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से सहयोग की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए संसद में कामकाज होना जरूरी है। जो सियासी घमासान की भेंट चढ़ सकता है।

इस सबके बीच इधर स्वदेशी जागरण मंच ने जोधपुर में कहा है कि सरकार अगर जमीन अधिग्रहण विधेयक और अन्य ऐसे विधेयक जो देश के हित में नहीं हैं, लाएगी तो उसका विरोध किया जाएगा। आरएसएस के ललित शर्मा ने साफ कहा है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है, अगर राष्ट्र का मुद्दा होगा तो हम स्पष्ट विरोध करेंगे और आंदोलन किया जाएगा। आरएसएस द्वारा विरोध करने से साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार पर भारी दबाव है। आरएसएस राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पसंद नहीं करती है। ऐसे में शीतकालीन सत्र में सरकार पर अतिरिक्त दबाव रहेगा।

हालत यह है कि देश में संसद का तमाशा फिर जगजाहिर होने वाला है। एक तरफ मोदी विदेशों की यात्राएं कर देश की छवि विदेशों में मजबूत बनाने का राग अलाप रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संसद की गरिमा के लिए चिंतित नहीं है। उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि इस महामुकाबले का डटकर मुकाबला किया जाएगा। क्या संसद मुकाबले का अखाड़ा हो गई है। कुछ साल पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी कि संसद में हंगामा मचाने वालों में भाजपा के सांसद सबसे आगे रहे हैं। उस समय रिपोर्ट पर काफी बवाल बचा था, मगर यह साफ है सड़कों से लेकर संसद तक हुडदंग मचाने में भाजपाइयों का कोई मुकाबला नहीं है। तर्क बेतुके ही क्यों न हो, मामला कैसा भी हो, भाजपाई होहुल्लड़ करने में अपनी शान समझते हैं। भाजपा नेता गांव-शहरों में आग उगलते हैं। इस आग को अगर सकारात्मक रूप से बाहर आने दिया जाए तो देश का विकास हो सकता है, मगर इसी आग को जब नादानी से प्रज्वलित किया जाए तो देश जल भी सकता है। अगर विदेशों में देश की छवि बनानी है तो संसद को अपनी गरिमामय छवि बनानी होगी।

सरकार के एक बाद एक विधेयक ला रही है। मगर इसका जनता को क्या फायदा होगा, कोई नहीं जानता। अन्ना हजारे एक बार फिर भूमि अधिग्रहण बिल पर अनशन की चेतावनी दे चुके हैं। इसका चौतरफा हो रहा विरोध देखते हुए यह बिल संसद में शायद नहीं लाया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार किस तरह कांग्रेस का मुकाबला करेगी, यह समझ से परे है। जिसे वे महामुकाबला कर रहे हैं, उसे संसद में शांति से भी लड़ा जा सकता है। लेकिन आजादी के बाद लोकतंत्र में लाल बहादुर शास्त्री ने जिस तरह रेल हादसे के बाद इस्तीफा दिया था, वैसा साहस आज के नेता नहीं उठा रहे हैं। कितने रेल हादसे हुए, कितने मंत्रियों ने इस्तीफा दिया। घोटालों में सिर-पैर तब दबे होने के बाद भी किसी मंत्री या मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र नहीं दिया। यह लोकतंत्र की विडंबना है। जनता जिन्हें चुन कर भेजती है, वह जनता की भावना को ही नहीं समझते। ऐसे में लोकतंत्र की अपरिपक्वता सामने आती है। ऐसा कानून भी होना चाहिए जिसमें मंत्री, मुख्यमंत्री को वापस कॉल किया जा सके। अन्ना हजारे भी इस पर जोर दे रहे हैं, मगर राजनीति में ऐसा हो जाए तो सत्ता धूल में मिल जाएगी। यह डर भी नेताओं को सता रहा है। ऐसे में लोकतंत्र की भावनाओं को कोई नहीं समझ रहा है। चलो महामुकाबले की तैयारी करो, हम फिर दर्शक बन जाते हैं। लेकिन ध्यान रखो संसद के बाहर सड़क है, जब जनता जागेगी तो वहीं घूमते नजर आओगे। संसद से सड़क तक आने में अधिक देरी नहीं लगती।

Saturday, 18 July 2015

मारवाड़ी अश्व की दुनिया में कोई मिसाल नहीं : डाॅ. आरके भट्ट

वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
आॅल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसायटी के तत्वावधान में दो दिवसीय मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक कार्यशाला का शनिवार को सुबह बालसमंद लेक पैलेस में शुभारंभ हुआ। कार्यशाला में दिनभर अश्व विशेषज्ञों ने मारवाड़ी हाॅर्स के गुणों व कद-काठी सहित विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया। उन्होंने निर्णय करने के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी। अॉल इंडिया मारवाड़ी हाॅर्स सोसायटी के सचिव कर्नल उम्मेदसिंह राठौड़ ने बताया कि प्रथम दिन दो तकनीकी सत्र हुए। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि काजरी के निदेशक डाॅ. आरके भट्ट ने कहा कि मारवाड़ी अश्व की अपनी अलग पहचान है। इसके समान दुनिया में कोई मिसाल नहीं है। इस नस्ल को बचाए रखने के पूरे प्रयास होने चाहिए। उन्होंने मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक के आयोजन को सार्थक बताया।

कार्यशाला का समापन आज
रविवार को सुबह नौ बजे रावल देवेंद्रसिंह नवलगढ़ व डॉ. महेंद्रसिंह द्वारा जजिंग मारवाड़ी हार्स प्रेक्टिकल मार्किंग व टेस्ट कन्वीनर पर व्याख्यान होगा। तीसरा तकनीकी सत्र सुबह 11.30 बजे होगा। इसकी अध्यक्षता ब्रिगेडियर नरपतसिंह राजपुरोहित करेंगे। चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता सवाईसिंह रणसी करेंगे। शाम चार बजे समापन समारोह होगा। इस सत्र के मुख्य अतिथि जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह होंगे। अध्यक्षता सरदार पटेल पुलिस विवि के कुलपति एमएल कुमावत करेंगे।

मारवाड़ी अश्व के डीएनए पर भी हुई चर्चा
द्वितीय सत्र में आरडी सिंह झाला ने मारवाड़ी अश्व व काठियावाड़ी अश्वों के 22 शारीरिक गुणों की तुलनात्मक जानकारी दी। डाॅ. एके गुप्ता ने घोड़े के डीएनए के बारे में बताया। कार्यशाला में शाम को हाॅर्स शो के दौरान 7 नर व 5 मादा घोड़ों का 22 निर्णायकों के सामने प्रदर्शन किया गया। पूर्व महाराणा महिपेंद्रसिंह दाता ने कहा कि मारवाड़ी अश्व के संरक्षण के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने चाहिए। अश्व विशेषज्ञ व पूर्व राज्यसभा सदस्य डाॅ. नारायणसिंह माणकलाव ने मारवाड़ी हाॅर्स जजेज क्लिनिक के आयोजन की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रथम तकनीकी सत्र में कर्नल उम्मेदसिंह राठौड़ ने ‘जजिंग आॅफ हाॅर्सेज‘ विषय पर अपने व्याख्यान में बताया कि मारवाड़ हाॅर्स जजेज में क्या गुण होने चाहिए। निर्णायक अपनी पैनी निगाहों से सही निर्णय करें और बिना किसी प्रभाव के घोड़े के बारे में अपना निर्णय दें। प्रथम सत्र के द्वितीय व्याख्यान में सिद्धार्थसिंह रोहिट ने मारवाड़ अश्व के गुणों के बारे में विस्तार से बताया।

नमाज पढ़कर घर लौट रहे बाइक सवार दो किशोर की सड़क हादसे में मौत, दो की हालत गंभीर

-चारों किशोर 12 से 14 साल की उम्र के और आपस में चचेरे भाई
वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
 झंवर थाना क्षेत्र के  हिंगोला में चिराई की ढाणी में रहने वाले चार किशोर शनिवार सुबह क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद में नमाज पढ़कर घर लौट रहे थे। रास्ते में मोड़ पर बाइक अनियंत्रित होकर नीचे गिर गई। हादसे में दो किशोर की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं अन्य दो किशोर को एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया हैं। चारों की उम्र 12 से 14 साल की है और आपस में चचेरे भाई हैं।
 झंवर पुलिस ने बताया कि हिंगोला में चिराई की ढाणी निवासी आदम खां (12) पुत्र फिरोज खां, पहाड़ खां (14) पुत्र सुभान खां, धूड खां (13) पुत्र शेर खां, जागीर खां (14) पुत्र जब्बरुद्दीन शनिवार सुबह 11 बजे क्षेत्र में स्थित एक मस्जिद में नमाज अदा  कर बाइक पर घर लौट रहे थे। रास्ते में तेज रफ्तार में मोड़ पर बाइक अनियंत्रित होकर नीचे गिर गई। हादसे में आदम व पहाड़ खां की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं गंभीर रूप से घायल धूड़  खां व जागीर खां को एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया। डॉक्टर सुनील चांडक ने बताया कि धूड खां के सिर में गंभीर चोट लगने पर उसे वेंटिलेटर पर आईसीयू वार्ड में रखा है। वही जागीर खां की जांघ की हड्डी टूट गई। इस पर उसका ऑपरेशन किया गया। 

आज जानिए दिल का हाल डाॅ. बिमल छाजेड़ के साथ

वर्ल्ड स्ट्रीट। जोधपुर 
दैनिक भास्कर नाॅलेज सीरीज के तहत हेल्थ सेमिनार का आयोजन रविवार की शाम 4:30 बजे  ए-9 फर्स्ट एक्सटेंशन कमला नेहरू नगर प्रताप नगर बस स्टैंड के पास स्थित ऐश्वर्या काॅलेज में किया जाएगा। इसमें प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ बिना आॅपरेशन हृदय को स्वस्थ रखने और आहार से जुड़ी जानकारी देने के लिए जोधपुर की जनता से रूबरू होंगे।  आजकल दिल की बीमारी आम हो गई है तथा लोगों को इस बारे में अवेयर करना आज की आवश्यकता है। इस सेमिनार में बिना आॅपरेशन हृदय को स्वस्थ रखने और आहार से जुड़ी विशेष जानकारियां दी जाएगी। आज की भागदौड़ की जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी के चलते वे अपने आहार पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। वे अनजाने में दिल की बीमारी मोल ले लेते हैं। कार्यक्रम में ऐश्वर्या काॅलेज तथा होटल चंद्रा इंपीरियल का सहयोग रहेगा।



Friday, 17 July 2015

नरेंद्र मोदी करना क्या चाहते हैं कोई नहीं जानता

-जनता ने मोदीमैव जयते का उद्घोष करते हुए नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की। मोदी ने मुड़ कर भी जनता की ओर नहीं देखा... वे क्या कर रहे हैं, क्या करना चाहते हैं और उनका क्या एजेंडा है? उसे कोई नहीं जानता। वे कुछ करेंगे भी या बस ऐसे ही नारों से देश को भरमाते रहेंगे?
डीके पुरोहित 

एक साल बीता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करना चाहते हैं कोई नहीं जानता। फिलहाल करने के नाम पर सिर्फ विदेश यात्राएं की है। आम जनता को उन्होंने जो सपने दिखाए थे, उनमें से किसी पर कोई काम नहीं हुआ। विदेशों से कालाधन वापस लाने के मामले में अभी कुछ नहीं हुआ। हो भी कैसे जब पूंजीपतियों की ही सरकार हो। जिन पूंजीपतियों के सपोर्ट से मोदी ने देश में माहौल बनाया उसका असर अब दिखाई देने लगा है। आम आदमी अब मोदी से ऊब चुका है। हालांकि अभी तक उन्हें तारणहार नेता नहीं मिला है। केजरीवाल विकल्प बन सकते थे, मगर उनके पास न तो इतने संसाधन है, न कार्यकर्ताओं की लंबीचौड़ी फौज है और न ही त्वरित अवसर भी। अब पांच साल बाद चुनाव होंगे तब कौन नेता जनता के करीब होगा, यह कहना फिलहाल संभव नहीं है। जनता पुरानी बातें याद नहीं रखती। उन्हें वर्तमान में जो अच्छा लगता है, वही करती है। अगर ऐसा नहीं होता तो राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार वापस सत्ता में आती। चूंकि गहलोत ने जनता के लिए बहुत कुछ किया था, मगर जैसा की जनता वर्तमान पर अधिक ध्यान देती है। मोदी लहर में वसुंधरा के पाप धुल गए। वह वर्षों से विदेश में डेरा डाले बैठी थी और अचानक प्रकटी और सत्ता भी मिल गई। इसे वसुंधरा की गलती नहीं जनता की गलती माना जाना ही ठीक रहेगा। जनता कब क्या कर दे कोई नहीं जानता। आज भी अगर हम यह कहें कि हिन्दुस्तान की जनता लहरों के थपेड़ों पर चलती है तो गलत नहीं होगा।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव प्रधानमंत्री बने। राजीव की हत्या हुई तो फिर कांग्रेस सत्ता में आई। यह सब लहर का ही परिणाम था। पिछले चुनाव में मोदी की लहर देश भर में थी। इस लहर में कई दिग्गज हार गए। जनता ने बिना कुछ जाने-सोचे मोदी मैव जयते का नारा आत्मसात कर लिया। ऐसे लोग जीत कर आए जिन्हें जनता जानती तक नहीं थी। मोदी मोदी का जो नारा मीडिया ने हिंदुस्तान के घर-घर में उछाला, उसका असर यह रहा कि चाय की दुकानों, पानी की थडिय़ों, ढाबों से लेकर गली-गली तक मोदी मोदी हो गया। मोदी नाम की ऐसी लहर तो आज तक किसी और नेता की नहीं चली। कांग्रेस चित्त। अन्य पार्टियां धराशायी हो गई। जिस जनता ने मोदी को सत्ता सौंपी उन्होंने गादी संभालते ही कहा- अब कड़े निर्णय लेने पड़ेंगे। जनता समझ नहीं पाई कड़े निर्णय का अर्थ क्या है? आज तक कोई नहीं समझ पाया है मोदी क्या करना चाहते हैं? मोदी ने अब तक विदेशों की यात्राएं कर ली। अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न्यौता दिया। वे आए भी। मगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। आज जब यह संवाददाता यह लेख लिख रहा है कश्मीर में मोदी भाषण दे रहे थे और उधर प्रदर्शनकारी अपनी अलग ही राग अलाप रहे थे। पुलिस ने कार्रवाई की तो प्रदर्शनकारियों ने तीन पुलिसकर्मी घायल कर दिए। मोदी ने कोई टिप्पणी नहीं की। मोदी कश्मीर में क्या कार्रवाई करना चाहते हैं? इस संबंध में उनकी कोई मंशा सामने नहीं आ रही। एक बार फिर वे नवाज शरीफ से मिलने की तैयारी कर रहे हैं। आखिर वे करना क्या चाहते हैं। न तो मोदी की वजह से महंगाई कम हुई। बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिला। युवा पीढ़ी के सपने टूट रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार कम नहीं हुए। दलितों का उत्पीड़न जारी है। हर तरफ निराशा है। ऐसे में पता ही नहीं चल रहा कि साल भर से मोदी सत्ता में है। हर सरकारी विभागों को निजीकरण किया जा रहा है। आखिर मोदी देश में क्या करना चाहते हैं कोई समझ क्यों नहीं रहा। उनकी बातें देश की जनता के समझ में नहीं आ रही। ऐसा उलझा हुआ नेतृत्व आखिर कब चमत्कार दिखाएगा। दिखाएगा भी या हवाई भाषण ही देता रहेगा। रेडियो पर मन की बात। बात कुछ और करते हैं और फैसले कुछ और। जो सपने उन्होंने दिखाए थे उनका जनता पूरा होने का इंतजार ही कर रही है। आखिर सुख की हवा कब आएगी। न तो बलात्कारियों में भय है, न दलितों पर अत्याचार रुक रहे।...मुसलमान आशंकित है। स्कूलों में सूर्य नमस्कार और योग अनिवार्य करने की कार्रवाई की जा रही है। क्या ऐसे निर्णय लेने से बच्चों का भला होगा।...देश में लोकतंत्र है। ऐसा नहीं हो इसकी मूल भावनाओं का गला घोंट दिया जाए।

साल भर बीत गया। मोदी अभी भी मुदित है। देश को भाषणों से चला रहे हैं। कहते हैं कि मोदी ने विदेशों में देश का सम्मान बचाया है। यह वही मोदी है जिनका अमेरिका ने वीजा नहीं दिया था। अब कह रहे हैं मोदी को अमेरिका ने जख मार कर बुलाया। अमेरिका पूंजीपतियों का देश है। पूंजीपतियों का यानी पैसों का पैरोकार। भारत में सस्ता श्रम है, सस्ती उपज है और यहां के युवा प्रतिभा संपन्न है...ऐसे में अमेरिका हर उस प्रधानमंत्री को अपने देश में आने का न्यौता देगा जो उनकी पूंजीपति नीतियों को सह देगा। अमेरिका ने मोदी को नहीं अपने स्वार्थ को अमेरिका बुलाया। मोदी इसमें अपनी विजय मानते हैं तो उचित नहीं है। अब देश की जनता को समझ लेना चाहिए कि अपनी बातों और भाषणों से देश का भला नहीं होगा। कुछ करो या मैदान से हट जाओ। नहीं तो जनता को संकल्प लेना चाहिए ऐसे नेताओं को उनकी जमीन दिखाएं।


इन दिनों राहुल गांधी राजस्थान दौरे पर है। शुक्रवार को जयपुर में कार्यकर्ताओं की बैठक में उन्होंने कहा कि मोदी का 56 इंच का सीना जनता 5.6 इंच का कर देगी। राहुल युवाओं में अपनी पैठ जमा नहीं पाए हैं। उन्हें इतना समय भी नहीं मिला। कांग्रेस ने 10 साल लगातार शासन किया। इस बीच सुस्त मनमोहन सरकार से ऊबी जनता में राहुल जोश नहीं भर पाए। वे जब तक आए बहुत देर हो गई। अब भी वक्त है अगले चार साल में कांग्रेस की जमीन तैयार करें। राहुल ने ठीक ही कहा कि देश में मंत्री कोई है तो प्रधानमंत्री मोदी है, बाकी 60-65 मंत्री तो नाम के हैं। मोदी ने आडवाणी को भी चुप करा दिया है। ...अब भला कौन बाेले....जनता को ही बोलना होगा। जल्दी ही अपने लिए नहीं तो अपने सपनों के लिए...।

Wednesday, 15 July 2015

कुर्सी का मोह छोड़ेंगे तभी तो राष्ट्र के बारे में सोचेंगे

-इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति ने देश में नई बहस छेड़ी है, उनका कहना है कि नेहरू के बाद साठ साल में देश में ऐसा नेता नहीं हुआ है  जिसकी वजह से देश में कोई नया आविष्कार या खोज हुई हो, होगी भी कैसे आजादी के बाद नेहरू की पीढ़ियां ही शासन करती रही, कांग्रेस ने ही अधिक समय राज किया, बाकी दलों ने देश को बढ़ाने की बजाय तोड़ने वाली ही राजनीति की, प्रस्तुत है विश्लेषण:-
-डीके पुरोहित-
इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति चर्चा में है। खास कर उनका यह बयान की बीते 60 साल में एक भी ऐसी खोज नहीं हुई जो दुनिया भर में लोगों की जुबान पर हो। उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी है। उन्होंने नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी भी प्रधानमंत्री ने प्रभावशाली रिसर्च पर ध्यान नहीं दिया। वे बुधवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के दीक्षांत समारोह में बोल रहे थे। हालांकि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, मगर जब बात राष्ट्र के विकास और स्वाभिमान की आती है तो कोई बात व्यक्तिगत कैसे हो सकती है। नेहरू ने आजादी को प्राप्त होते देखा है। वे खुद आजादी के आंदोलन के सिपाही रहे हैं। लेकिन उनके बाद देश में कोई ऐसा नेता नहीं हुआ, जिसने देश का हित देखा हो। यह बात भी अपनी जगह सही है कि कांग्रेस ने ही लंबे समय तक देश पर राज किया। ऐसे में कांग्रेस की ही जिम्मेदारी रही कि वह रिसर्च और आविष्कार के प्रति वैज्ञानिकों को माहौल उत्पन्न कराए।

जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने तब देश के हालात विकट थे। विभाजन की आग लगी हुई थी। चारों तरफ हिंसा से घिरा माहौल था। वे हालांकि वैज्ञानिक और विकासपरक सोच के प्रधानमंत्री रहे और अपने कार्यकाल में उन्होंने देश की बेहतरी के लिए बहुत कुछ किया। विदेशों में देश की साख बढ़ाई। लेकिन आजादी के बाद की समस्याओं से वे इतना घिरे हुए थे कि अधिक ध्यान नहीं दे पाए। बाद के नेताओं ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने की बजाय कुर्सी से चिपके रहना ही पसंद किया। सच तो यह है कि कांग्रेस की बिरादरी ने अपनी परंपरागत और वंशानुगत राजनीति को ही बढ़ावा दिया। पहले जवाहरलाल नेहरू, फिर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और इस बीच कुछ अन्य नेता भी सत्ता में आए, मगर उन पर भी नेहरू परिवार की छाप रही। ऐसे में देश के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत महसूस नहीं की।

आजादी के बाद अगर कोई महान नेता सामने आया तो वह नेहरू के बाद अटलबिहारी वाजपेयी ही थे। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में देश को मजबूती प्रदान की। उन्होंने विदेश नीति के आधार पर देश को दुनिया में नई पहचान दिलाई। अटलबिहारी को भारत रत्न दिया गया, मगर इससे पहले राजीव गांधी जैसे नेता को भी भारत रत्न दिया गया, जिन्होंने 21वीं सदी का सपना जरूर दिखाया, मगर वे भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे। ऐसे में कांग्रेस संस्कृति ने अपने ही अपने बारे में सोचा। देश के प्रति उनकी सोच कभी नहीं उभरी। इंदिरा गांधी जैसी नेत्री ने तो आपातकाल लगा कर लोकतंत्र की ही हत्या कर दी। अब यह बात साफ है कि एनआर नारायणमूर्ति किसको दोष दे रहे हैं। अधिकतर राज तो नेहरू के वंशजों ने ही किया। फिर अन्य पार्टियों को किस हद तक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। वे मिस्टर क्लीन थे, मगर बोफोर्स दलाली में कलंक लगा तो ऐसा लगा कि वे संभल नहीं पाए। बाद में उनकी हत्या के बाद कांग्रेस की वंशानुगत राजनीति कुछ समय के लिए ठहर गई, मगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी प्रत्यक्ष रूप से सत्ता से बाहर ही रहे। कहा तो यही जाता रहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी ही संचालित करते थे। ये अपनी जगह अलग बात है। देखा जाए तो कांग्रेस ने इतने वर्षों तक राज करने के बाद भी देश के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित नहीं किया।
देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनने का दौर शुरू हुआ। खास कर अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के बाद भाजपा की ताकत बढ़ी। हालांकि उनके बाद फिर कांग्रेस सत्ता में आई, लेकिन राजनीतिक कुर्सी की लड़ाई की ओर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा रहा। ऐसे में देश में मजबूत सरकारें नहीं बनी। दिल्ली में कांग्रेस तो अन्य राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां हावी रही। इस वजह से देश का प्रधानमंत्री अपने बलबूते पर निर्णय लेने में सफल नहीं रहे। बात अटलबिहारी वाजपेयी के शासनकाल की करें तो उन्होंने परमाणु परीक्षण कर देश को नई पहचान दिलाई। हालांकि इंदिरा गांधी के काल भी पहला परमाणु परीक्षण हो चुका था। मगर नेतृत्व ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे देश में कोई नई रिसर्च या खोज हुई हो। आविष्कार के लिए वैज्ञानिक पैसों को तरसते रहे। इन वर्षों में नेता घोटाले करते रहे। देश काे आर्थिक नुकसान पहुंचाते रहे। भाई, भतीजों, रिश्तेदारों और परिजनों का कारोबार बढ़ता रहा। देश में राजनीतिक छवि दूषित होती गई। रक्षा और रिसर्च पर खर्चा बढ़ाने की बजाय नेता तिजोरियां भरते रहे। आज भी राजनीतिक छवि विदेशों में साफ नहीं है।


मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करें तो उनकी छवि सांप्रदायिक प्रधानमंत्री की है। क्योंकि उन्होंने गुजरात में जो कारनामे दिखाए उससे अल्पसंख्यकों के मन में भय व्याप्त हो गया। आज भी मोदी की छवि में कहीं न कहीं वह दाग है। गोधरा कांड के बाद गुजरात में जो नरसंहार हुआ उससे मोदी बेशक साफ निकल आए हों, मगर वो दाग अभी भी धुला नहीं है। न मोदी मुसलमानों को पसंद करते हैं और न ही मुसलमान मोदी को। ऐसे में अल्पसंख्यक वैज्ञानिक भी डरे हुए हैं। मोदी की छवि आतंक फैलाने वाले नेता के रूप में रही है। हालांकि भारतीय राजनीति में मोदी दो-तीन साल में राष्ट्रीय छवि बनाने में सफल रहे, इसके पीछे उनकी योग्यता नहीं भाजपा नेतृत्व का अभाव रहा। आडवानी की वजह से भाजपा आगे बढ़ी, मगर इस दौर में उन्हें ही किनारा कर दिया गया। आरएसएस और हिंदू संगठन देश का बंटाढार करने में लगे हैं। उन्हें राम मंदिर के आगे कुछ दिखता ही नहीं है। ऐसे में देश में शांतिपूर्ण माहौल नहीं है। फिर कैसे आविष्कार हो, कैसे रिसर्च हो। आरक्षण का भूत इस देश की प्रतिभाओं का भक्षण कर रहा है। भला विदेशों में जातिगत आरक्षण है? आरक्षण के नाम पर देश की प्रतिभाओं ने आत्मदाह किया। इस आग पर राजनेता रोटियां सेंकते रहे। आरक्षण जब तक देश में जिंदा रहेगा, प्रतिभाएं आगे कैसे बढ़ेंगी। भला जो युवक 40 प्रतिशत अंक प्राप्त कर आरक्षण का फायदा उठा कर टीचर बन जाए या डॉक्टर बन जाए वो भला अपने शिष्यों को कैसे 100 प्रतिशत दिलाएगा। ऐसा कोटे से आने वाला डॉक्टर कैसे अच्छी चिकित्सा कर पाएगा। बहुत सी बाते हैं। बहुत से कारण है। कुल मिला कर कुर्सी से चिपके रहने वाली राजनीतिक परिस्थितियों के चलते देश में कैसे आविष्कार होंगे, कैसे रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा। अब विनम्र निवेदन नरेंद्र मोदी से हैं। जो सपना उन्होंने सवा सौ करोड़ देश की जनता को दिखाया है, वो सपना मरने नहीं दे। काश ऐसा हो पाएं...हम तो यही दुआ करेंगे।

Friday, 10 July 2015

अच्छे दिन का सपना दिखाने वाले नेता कहां है? कभी गरीबों के आशियाने उजाड़े जा रहे है, कभी घंटाघर के नाम पर दिखा रहे हिटलरशाही

-चुनाव के दौरान अच्छे दिनों का सपने दिखाने वाले मोदी कहां है? उनकी लहर में सत्ता हथियाने वाली वसुंधरा राजे की खुमारी अभी उतरी नहीं है...जोधपुर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर गरीबों के आशियाने उजाड़ दिए, घंटाघर के सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी रोटी छीन ली...जब गरीब नींद में सो रहे थे, हिटलरशाही की तर्ज पर गरीबों के ठेले तोड़ दिए, बेदर्दी से उनकी रोजी-रोटी पर बुलडोजर चला दिया...फिर भी जोधपुर की जनता अलाप रही है जय मोदी, जय मोदी....


-डी.के. पुरोहित-

घंटाघर में गरीबों के ठेले और रोजी-रोटी पर बुलडोजर चलाने पर कोर्ट की टिप्पणी सामने आई-शहर सड़ रहा है, सौंदर्यीकरण के नाम पर गरीबों की रोजी-रोटी छीन ली।...अब बस कोर्ट से ही आस। गरीब रो सकता है...गिड़गिड़ा सकता है...विनती कर सकता है...और अधिक दबाव पड़ा तो क्रांति के पथ पर अग्रसर भी हो सकता है...इस अंतिम पंक्ति की अनदेखी नहीं की जा सकती...कोर्ट ने भी माना कि उनके साथ अन्याय हुआ है...बिना उनकी रोजी-रोटी और पुनर्वास के रोजी-रोटी के सामन हटा दिए...अब यह भरपाई कब और कैसे होगी? कोई नहीं जानता?...

घंटाघर में आजादी के पहले से लोग रोजी-रोटी के लिए जूझ रहे हैं.. दिल्ली की चांदनी चौक की तर्ज पर घंटाघर का अपना अलग अंदाज है...यहां दूर-दूर से लोग खरीदारी करने आते हैं...जोधपुर के बाहर से भी लोग यहां खरीदारी करना पसंद करते हैं...लेकिन दो दिन पहले यहां जिस हिटलरशाही से अतिक्रमण हटाए गए, उससे भाजपा सरकार का चेहरा सामने आ गया...भाजपा के राज में खुले सांड की तरह अफसर काम कर रहे हैं...यह भी नहीं सोचते कि जनता जब जागेगी तो सत्ताएं मिट्टी में मिल जाएगी।...

बहरहाल बात घंटाघर की हो रही है...लोग अपने घरों में आराम की नींद सो रहे थे, सुबह जल्दी निगम प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिए। यही नहीं दरवाजे भी बंद कर दिए। जो लोग आस-पास रहते थे वे भी संवेदनहीन निकले...। एक तरफ निगम का दस्ता मौके से ठेले और सामग्री तोड़ रहे थे, लोग आए और उठा-उठा कर ले गए...ये सामान किसी की जिंदगी का हिस्सा थे...दिन भर मेहनत कर शाम को रोजी-रोटी का जुगाड़ करने वाले मेहनतकश का सामान ऐसे कोई उठा कर ले जाते हैं क्या?....किसी ने नहीं सोचा। मगर कोर्ट ने यह पीड़ा समझी...अब कोर्ट को नगर निगम से इन गरीबों की सामग्री का नुकसान भरने के लिए कहना चाहिए...। चाहे नगर निगम का आयुक्त हरिसिंह जैसा पूंछ हिलाऊ अफसर हो या महापौर घनश्याम ओझा जैसे संवेदनहीन नेता...ऐसे अफसरों और नेताओं को हमने ही सिर चढ़ाया...किसी प्याऊ का उद्घाटन हो तो हरिसिंह और घनश्याम ओझा को बुलाते...एक तरफ अखबार उनके कशीदे छापता रहा...दूसरी तरफ गरीब खून के आंसू रोते रहे...ऐसे आंसू जो उनकी पीड़ा को शब्द नहीं दे रहे थे...हिटलरशाहों से बचने के लिए अब जनता को जागना होगा...हमें नहीं चाहिए अच्छे दिन...हमें तो चैन से दो-जून की रोटी चाहिए...आप बेशक विदेशों में घूमे...बेशक ललित मोदी के बगल में बैठें...लेकिन हमें जीने का हक दे दें...।

घंटाघर की कहानी तो एक दृष्टांत है...। पूंछ हिलाऊ अफसरों ने तो काली बेरी और भूरि बेरी से अतिक्रमण हटाने के नाम पर नादिरशाही मचा दी...ऐसा हमला बोलो जैसे-आतंकवादी शहर में घुस आए हैं...। हत् ऐसी हठधर्मिता कहीं नहीं देखी...कभी नहीं देखी...एक समय था जब डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर बंदूक चला दी। ऐसा ही कुछ इन गरीबों की बस्तियों में हुआ। गरीबों का वोट लेकर नेता पैर पसारते रहे और इन्ही नेताओं ने उनके पैर की चादर ही छीन ली...। 

कितने लोगों का आशियाना उजड़ गया...कितने लोग बेघर हो गए...कांग्रेस विरोध कर रही है। आरसीटू भी विरोध कर रहा है...लेकिन इन आंदोलनों में जनता कहीं नजर नहीं आ रही...गरीब तो रो रो कर अपनी पीड़ा जता रहा है...लेकिन आम जनता भी उनके साथ खड़ी नजर नहीं आ रही है...जिन नेताओं को हमने राज सौंपा...वे चैन की नींद सो रहे हैं...विदेशों में नाम रोशन कर रहे हैं...किसका अपना या देश का, वे ही जाने?...लेकिन जोधपुर की जनता ने भी आम गरीब का साथ छोड़ दिया...पूंजीपतियों की ये सरकारें....इन सरकारों को अब जवाब देना होगा...अगर जोधपुर की जनता जाग गई तो ये महापौर...ये आयुक्त राठौड़....कहीं ऐसा तांडव नृत्य नहीं मचा सकते। गरीबों की बर्बादी पर जश्न मनाने वाले कभी बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों को तो नहीं गिराते...खुद हरिसिंह राठौड़ की संपत्ति की जांच कराने का कोई कष्ट उठाएगा...कोई महापौर की कहानी जानना चाहेगा...पूंजीपतियों की ओर आंख उठाना तो दूर उधर से गुजरते ही नहीं...कोर्ट ने भी ठीक ही कहा कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें उन्हें नजर नहीं आ रही....अब कोर्ट से ही आस है...जनता कब जागेगी, कब आंदोलन होगा...यह देर की बात है, तुरंत राहत तो कोर्ट ही दे सकता है...हे देश के न्यायाधीशों न्याय की मशाल थामे रखो...इस जोधपुर में ही नहीं देश में भी बस आपसे आस है.. । हे महोदय, बस आप ही हमारे हैं...नेता-अफसरों से जरा भी आस नहीं हैं....। 

मध्यप्रदेश से तस्करी कर लाया जा रहा है मारवाड़ में अफीम

-नीमच सहित आसपास के इलाकों से की जा रही है तस्करी, मारवाड़ में अफीम का उपयोग अधिक होता है, अफीम के लिहाज से बन रहा है बड़ा मार्केट
-डी.के. पुरोहित-
अफीम की तस्करी के तार मध्यप्रदेश से मारवाड़ के साथ जुड़े हैं। मध्यप्रदेश के नीमच सहित आस-पास के क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में अफीम की सप्लाई मारवाड़ में हो रही है। मारवाड़ परंपरागत रूप से अफीम का बड़ा बाजार है। यहां गमी, खुशी, चुनाव और कई अवसरों पर इसका जम कर उपयोग होता है। पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह जसोल भी अफीम की रियाण मामले में फंस चुके हैं। यहां पर शादी-विवाह में अफीम का हेला होता है। रियाण में अफीम की मनुहार आम बात है। ऐसे में बड़ा बाजार होने की वजह से मध्यप्रदेश अफीम का बड़ा सप्लायर बना हुआ है।

मध्यप्रदेश के नीमच में परंपरागत रूप से अफीम का उत्पादन होता रहा है। शुक्रवार को रोडवेज बस में एक तस्कर की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर अफीम की तस्करी का काला कारोबार सामने आया है। यह तो संयोग मात्र है, इससे पहले कभी रोडवेज की जांच नहीं की गई। अचानक जांच में जिस प्रकार से तस्करी का अफीम का दूध बरामद हुआ है, ऐसे मामले पहले सामने नहीं आए। हां, कुछ समय पहले ट्रेन से अफीम बरामद हो चुका है। एक बार फिर अफीम का दूध बरामद होने से जाहिर हो गया है कि अफीम की तस्करी का कारोबार अभी थमा नहीं है। पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां नियमित जांच नहीं करती। जांच और सुरक्षा व्यवस्था लचर होने की वजह से अफीम तस्कर पुलिस की पकड़ में नहीं आते।

मध्यप्रदेश के नीमच से रोडवेज बस में जोधपुर अफीम की सप्लाई करने आए एक तस्कर को पुलिस ने शुक्रवार को 820 ग्राम अफीम के दूध के साथ पकड़ा। पुलिस आरोपी से पूछताछ कर अफीम खरीदार के बारे में पड़ताल कर रही है। उदयमंदिर थानाधिकारी राजूराम चौधरी ने बताया कि मध्यप्रदेश के नीमच में नानाखेड़ा निवासी मांगीलाल (50) पुत्र हीरालाल बंजारा शुक्रवार को रोडवेज बस में एमपी से जोधपुर आया था। पुलिस ने रोडवेज बस स्टेंड पर तलाशी अभियान के तहत मांगीलाल के रोडवेज बस से देर शाम उतरते ही बैग की तलाशी ली तो उसमें 820 ग्राम अफीम का दूध मिला। पूछताछ में आरोपी ने बताया कि वह अफीम के दूध की सप्लाई बीजेएस में रहने वाले एक युवक को करने वाला था। आरोपी एमपी से अफीम 70 हजार रुपए किलोग्राम के हिसाब से खरीद जोधपुर में 1 लाख रुपए किलोग्राम के भाव से बेचता था। पुलिस आरोपी से पूछताछ कर अफीम लेने वाले युवक की तलाश में लगी रही।

इधर, एक बार फिर अफीम की तस्करी की आशंका से मध्यप्रदेश के खिलाफ तार जुड़ते नजर आ रहे हैं। अगर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां नियमित जांच करती है तो ऐसे कई मामले सामने आ सकते हैं। गौरतलब है कि जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी अफीम का हाका होता है। इस हेले में स्थानीय लोग शामिल होते हैं। अफीम का उत्पादन मध्यप्रदेश में बड़े पैमाने पर होता रहा है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की सख्ती से इसके उत्पादन पर रोक जरूर लगी थी, लेकिन हाल ही में पकड़ में आए मामले के बाद फिर हफीम की तस्करी में मध्यप्रदेश का नाम सुर्खियों में आया है।