-संसद का मानसून सत्र मंगलवार से शुरू हो रहा है, कांग्रेस का कहना है
कि कम से कम तीन इस्तीफे चाहिए, तभी संसद चलने देंगे, लेकिन प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी साफ कह चुके हैं कि एक भी इस्तीफा नहीं देने देंगे, हम संसद
में महामुकाबला करेंगे, अब देश की जनता को कौन बताए कि यह महामुकाबला है या
महाबेशर्मी
-डीके पुरोहित-
राज्यसभा में कांगेस की ओर से विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद का कहना है कि पूरे देश की भावना है कि ललित मोदी कांड में फंसी वसुंधरा राजे और व्यापमं घोटाले में आरोपों के घेरे में आए शिवराज सिंह चौहान इस्तीफा दें। लेकिन ‘मोटी चमड़ी की मोदी सरकार’ किसी की भावना का आदर नहीं कर रही है। आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला है कि प्रधानमंत्री विपक्ष और जनभावना को इस कदर नजरअंदाज कर रहे हैं।
उधर, भाजपा मीडिया सेल इंचार्ज श्रीकांत शर्मा ने चेतावनी दी है कि अगर कांग्रेस ने होहुल्लड़ किया तो हम आक्रामक और प्रभावी तरीके से कांग्रेस के दुष्प्रचार का मुकाबला करेंगे। जहां तक ललित मोदी विवाद का सवाल है, कांग्रेस भ्रमित है। एक तरफ तो वह ललित मोदी के बयान के आधार पर हमारे नेताओं से इस्तीफा मांग रही है। वहीं प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा पर दिए ललित मोदी के बयानों पर उसके पास कोई जवाब नहीं है। हम उन पर जवाब मांगेंगे। गौरतलब है कि तीन हफ्ते के सत्र के लिए सरकार के एजेंडे में 24 विधेयक हैं। इनमें नौ राज्यसभा में और चार लोकसभा में लंबित हैं। 11 नए विधेयक लाना है। जमीन अधिग्रहण विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति की कार्यवाही पूरी नहीं हुई है। इसका टलना तय है। जीएसटी विधेयक दूसरा महत्वपूर्ण विधेयक है। कुछ क्षेत्रीय पार्टियों से सहयोग की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए संसद में कामकाज होना जरूरी है। जो सियासी घमासान की भेंट चढ़ सकता है।
इस सबके बीच इधर स्वदेशी जागरण मंच ने जोधपुर में कहा है कि सरकार अगर जमीन अधिग्रहण विधेयक और अन्य ऐसे विधेयक जो देश के हित में नहीं हैं, लाएगी तो उसका विरोध किया जाएगा। आरएसएस के ललित शर्मा ने साफ कहा है कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार किसकी है, अगर राष्ट्र का मुद्दा होगा तो हम स्पष्ट विरोध करेंगे और आंदोलन किया जाएगा। आरएसएस द्वारा विरोध करने से साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार पर भारी दबाव है। आरएसएस राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पसंद नहीं करती है। ऐसे में शीतकालीन सत्र में सरकार पर अतिरिक्त दबाव रहेगा।
हालत यह है कि देश में संसद का तमाशा फिर जगजाहिर होने वाला है। एक तरफ मोदी विदेशों की यात्राएं कर देश की छवि विदेशों में मजबूत बनाने का राग अलाप रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संसद की गरिमा के लिए चिंतित नहीं है। उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि इस महामुकाबले का डटकर मुकाबला किया जाएगा। क्या संसद मुकाबले का अखाड़ा हो गई है। कुछ साल पहले एक रिपोर्ट सामने आई थी कि संसद में हंगामा मचाने वालों में भाजपा के सांसद सबसे आगे रहे हैं। उस समय रिपोर्ट पर काफी बवाल बचा था, मगर यह साफ है सड़कों से लेकर संसद तक हुडदंग मचाने में भाजपाइयों का कोई मुकाबला नहीं है। तर्क बेतुके ही क्यों न हो, मामला कैसा भी हो, भाजपाई होहुल्लड़ करने में अपनी शान समझते हैं। भाजपा नेता गांव-शहरों में आग उगलते हैं। इस आग को अगर सकारात्मक रूप से बाहर आने दिया जाए तो देश का विकास हो सकता है, मगर इसी आग को जब नादानी से प्रज्वलित किया जाए तो देश जल भी सकता है। अगर विदेशों में देश की छवि बनानी है तो संसद को अपनी गरिमामय छवि बनानी होगी।
सरकार के एक बाद एक विधेयक ला रही है। मगर इसका जनता को क्या फायदा होगा, कोई नहीं जानता। अन्ना हजारे एक बार फिर भूमि अधिग्रहण बिल पर अनशन की चेतावनी दे चुके हैं। इसका चौतरफा हो रहा विरोध देखते हुए यह बिल संसद में शायद नहीं लाया जाएगा। लेकिन मोदी सरकार किस तरह कांग्रेस का मुकाबला करेगी, यह समझ से परे है। जिसे वे महामुकाबला कर रहे हैं, उसे संसद में शांति से भी लड़ा जा सकता है। लेकिन आजादी के बाद लोकतंत्र में लाल बहादुर शास्त्री ने जिस तरह रेल हादसे के बाद इस्तीफा दिया था, वैसा साहस आज के नेता नहीं उठा रहे हैं। कितने रेल हादसे हुए, कितने मंत्रियों ने इस्तीफा दिया। घोटालों में सिर-पैर तब दबे होने के बाद भी किसी मंत्री या मुख्यमंत्री ने त्यागपत्र नहीं दिया। यह लोकतंत्र की विडंबना है। जनता जिन्हें चुन कर भेजती है, वह जनता की भावना को ही नहीं समझते। ऐसे में लोकतंत्र की अपरिपक्वता सामने आती है। ऐसा कानून भी होना चाहिए जिसमें मंत्री, मुख्यमंत्री को वापस कॉल किया जा सके। अन्ना हजारे भी इस पर जोर दे रहे हैं, मगर राजनीति में ऐसा हो जाए तो सत्ता धूल में मिल जाएगी। यह डर भी नेताओं को सता रहा है। ऐसे में लोकतंत्र की भावनाओं को कोई नहीं समझ रहा है। चलो महामुकाबले की तैयारी करो, हम फिर दर्शक बन जाते हैं। लेकिन ध्यान रखो संसद के बाहर सड़क है, जब जनता जागेगी तो वहीं घूमते नजर आओगे। संसद से सड़क तक आने में अधिक देरी नहीं लगती।