गीतः डीके पुरोहित
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
कांटों की बगिया
तिनकों की कुटिया
बिन चंदा रतियां
सूरज की किरणें गतिशील
बदली पीछे से टोक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
अपने-अपने सपने
लगे रूठने अपने
छत लगी टपकने
रात काली अंधियारी घिरती
कुतिया रो-रो कर भौंक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
दीपक का संघर्ष
आसमां से घटा का स्पर्श
शब्दों का भीतर से विमर्श
विराट का अर्जुन को संदेश
महाभारत क्यों चौंक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
कांटों की बगिया
तिनकों की कुटिया
बिन चंदा रतियां
सूरज की किरणें गतिशील
बदली पीछे से टोक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
अपने-अपने सपने
लगे रूठने अपने
छत लगी टपकने
रात काली अंधियारी घिरती
कुतिया रो-रो कर भौंक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
दीपक का संघर्ष
आसमां से घटा का स्पर्श
शब्दों का भीतर से विमर्श
विराट का अर्जुन को संदेश
महाभारत क्यों चौंक रही
कदम-कदम कागज की नांव
सागर की लहरें राह रोक रहीं
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