Thursday, 16 January 2020

फिर सिर उठा रहा है अल कायदा, अमेरिका पर 2001 से भी बड़े हमले की तैयारी


अफगानिस्तान. डी.के. पुरोहित

अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन ने 11 सितंबर 2001 को अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टॉवर्स और पेंटागन पर हमला कर 3 हजार से अधिक लोगों  को मार गिराया था। इसके बाद 2 मई 2011 को अमेरिका ने लादेन को मारकर बदला लिया था। तब से अल कायदा की कमर टूट गई थी। पूरे एक दशक बाद अल कायदा फिर से सिर उठाने लगा है। जिन मदरसों में लादेन जाकर भाषण देता था, उन मदरसों से निकले युवा अब अल कायदा का दामन थाम रहे हैं। अब ये युवक जेहाद को तैयार हो रहे हैं। आज भी अफगानिस्तान में मदरसों में ओसामा बिन लादेन की बहादुरी की गाथाएं सुनाई जाती है। यही नहीं मदरसों में हथियारों का संग्रहण भी किया जा रहा है।
मदरसों में लादेन को अल्लाह का फरिश्ता बताया जाता है। यह भी पढ़ाया जाता है कि लादेन अल्लाह का बंदा था, जिसने अपने पिता की अरबों रुपए की संपत्ति होते हुए भी व्यापार करने की बजाय जेहाद में अपना जीवन खपा दिया। मदरसों के मौलवी बताते हैं कि लादेन फिर से जन्म लेगा और अपने अधूरे कार्यों का पूरा करेगा। मौलवी कहते हैं कि युवाओं को लादेन के अधूरे कार्यों को आगे बढ़ाना होगा। अफगानिस्तान में मदसों में पढ़े 100 युवाओं ने अमेरिका को नेस्तनाबूद करने की कसम खाई है। ये युवा अब मुस्लिम देशों से मदद मांग रहे हैं। यही नहीं इन युवाओं ने हथियारों की जमाबंदी भी शुरू कर दी है। इसके लिए अफगानिस्तान और मुस्लिम देशों के कई संगठन आर्थिक मदद भी कर रहे हैं।
2001 से भी बड़े हमले की तैयारी :

अल कायदा को मजबूत करने के लिए 100 युवाओं की टीम ने अफगानिस्तान की तोरा-बोरा पहाड़ियों में अस्थाई डेरा डाल रखा है। यह युवा कोड वर्ड में बात करते हैं। यही नहीं ये मुस्लिम देशों का भ्रमण कर रहे हैं और अपना नेटवर्क अफगानिस्तान के अलावा सऊदी अरब और अन्य मुस्लिम देशों में भी फैला रहे हैं। पाकिस्तान से भी मदद जुटाई जा रही है। इधर पाकिस्तान के पीएमओ ने स्पष्ट किया कि ओसामा बिन लादेन मर चुका है और अब अल कायदा बिखर और टूट चुका है। लेकिन यह पाकिस्तान का असली चेहरा नहीं हैं। वो अल कायदा के जरिए अपने स्वार्थ साधने की फिराक में हैं। इधर जेहादी युवा अमेरिका पर 2001 से भी बड़ी हमले की तैयारी कर रहे हैं। पिछले जुमे को इन युवाओं ने अल्लाह के नाम पर कसम ली है और अमेरिका को बर्बाद करने का संकल्प लिया है।    

Wednesday, 8 January 2020

और मौत के मुंह से डीके पुरोहित को हिली ग्रह ने बचा लिया, मेहरानगढ़ हादसे के कारण का खुलासा होते-होते बच गया


डी.के. पुरोहित. मेहरानगढ़ फोर्ट से
-आइए मैं आपको 30 सितंबर 2008 की अल सुबह ले चलता हूं। अभी में भूतकाल में हूं। सुबह 2 बजे से मैं यहीं हूं। थोड़ी ही देर में मेहरानगढ़ के इस चामुंडा माता मंदिर में हादसा होने वाला है। इसमें दोषी कौन है? इसकी जांच करने के लिए हिली ग्रह ने मुझे भूतकाल में भेजा है।
मंदिर के बाहर काफी भीड़ जमा हो गई है। अभी आसमां में अंधेरा है। धूप ने दस्तक नहीं दी है। यहां किशोर और युवाओं की संख्या अच्छी खासी है। मैं बच्चों और युवाओं के साथ आगे हूं। तभी एक धक्का आता है और बच्चे मुझ पर गिर पड़ते हैंमेरे मुंह से निकलता है-बचाओबचाओतभी मेरी आंख खुलती है तो मैं वर्तमान में अपने को नजर आता हूं। वहां बड़ा हादसा हो गया है? इसकी सच्चाई जानने के लिए मैं गया था, लेकिन मेरी भी हादसे में मौत हो सकती थी। इसलिए हिली ग्रह ने मुझे बचा लिया। हिली ग्रह के लोगों ने संकेत दिया है कि डीके पुरोहित को भूतकाल जाने में खतरा हो सकता है, इसलिए फिलहाल भूतकाल में नहीं भेजा जाएगा।
आओ अब चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट पर मंथन करें :
गौरतलब है कि 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट में अल सुबह मची भगदड़ में 216 बच्चों और युवाओं की मौत हो गई थी। साथ ही सौ से अधिक बच्चे और बड़े घायल हो गए थे। तब सरकार ने हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए जस्टिस चौपड़ा आयोग का गठन किया था। पिछले 11-12 सालों में भाजपा और कांग्रेस की सरकारें रही, लेकिन किसी ने चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की। गौरतलब है कि गत भाजपा सरकार की मुखिया वसुंधरा  राजे के कार्यकाल में चौपड़ा आयोग ने रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। तब सरकार ने रिपोर्ट को सुरक्षा कारणों से सार्वजनिक नहीं की। पांच साल ऐसे ही बीत गए। फिर अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी। वर्तमान में सूबे की अशोक गहलोत सरकार ने जोधपुर की मेहरानगढ़ दुखांतिका की जांच के लिए गठित जस्टिस जसराज चोपड़ा की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया था। यह रिपोर्ट विधानसभा में भी नहीं रखी गई। गहलोत कैबिनेट ने रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया है। मामला कोर्ट में है।
डीके पुरोहित करेगा दूध का दूध पानी का पानी :
हालांकि परिस्थितियां विपरीत है। कोर्ट में भी हो सकता है मरने वालों को न्याय न मिले। राजनीतिक इच्छा शक्ति तो मर गई हैं। भाजपा और कांग्रेस सरकारों ने रिपोर्ट पर कुंडली मार ली है। हो सकता है इस मामले में जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह दोषी सिद्ध हो जाए। हो सकता है भाजपा के पूर्व मंत्री भी इसमें फंस जाए। कुछ भी हो सकता है। मगर अब दारोमदार अदालत पर है। डीके पुरोहित अदालत और अदालत के बाहर नजर रखेगा। हिली ग्रह ने संकेत दिया है कि समय आने पर सच सामने लाया जाएगा। डीके पुरोहित दूध का दूध और पानी का पानी करेगा।








Tuesday, 7 January 2020

राफेल विमान सौदे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनर्विचार याचिकाओं को खारीज करने का फैसला हिली ग्रह ने लिखवाया था, पढ़े पूरी कहानी-


डी.के. पुरोहित. नई दिल्ली
राफेल विमान सौदे में सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने मोदी सरकार को जो राहत दी थी और पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया था, उसमें नाटकीय मोड़ सामने आया है। हिली ग्रह से मिले मानसिक संकेत के अनुसार जो फैसला दिया गया उसमें तीनों जज का वेश धर कर डीके पुरोहित सुप्रीम कोर्ट में फैसला लिख रहा था। डीके पुरोहित किसी का रूप बदल सकता है। किसी की लिखावट भी लिख सकता है। लेकिन ये सब शक्तियां हिली ग्रह से संचालित होती हैं।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट से राफेल विमान सौदे में मोदी सरकार को बड़ी राहत मिली थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने राफेल मामले में दायर की गईं सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला पढ़ते हुए याचिकाकर्ताओं द्वारा सौदे की प्रक्रिया में गड़बड़ी की दलीलें खारिज कर दी थी। जबकि इस मामले में कई पहलुओं पर बहस बाकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमें ऐसा नहीं लगता है कि इस मामले में कोई FIR दर्ज होनी चाहिए या फिर किसी तरह की जांच की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम इस बात को नज़रअंदाज नहीं कर सकते हैं कि अभी इस मामले में एक कॉन्ट्रैक्ट चल रहा है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा हलफनामे में हुई भूल को स्वीकार किया था। राफेल विमान डील मामले में शीर्ष अदालत के 2018 के आदेश पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सहित अन्य लोगों की ओर से पुनर्विचार के लिए याचिका दाखिल की गई थी। इस मामले में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने फैसला सुनाया था। कोर्ट में दायर याचिका में डील में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे। साथ ही 'लीक' दस्तावेजों के हवाले से आरोप लगाया गया था कि डील में PMO ने रक्षा मंत्रालय को बगैर भरोसे में लिए अपनी ओर से बातचीत की थी। कोर्ट में विमान डील की कीमत को लेकर भी याचिका डाली गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में कहा था कि बिना ठोस सबूतों के वह रक्षा सौदे में कोई भी दखल नहीं देगा।

ये है मामला :
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने रफाल विमानों की पहले हुई डील के मुकाबले करीब 41 प्रतिशत अधिक दाम पर खरीद की थी। 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जितनी राशि में रफाल डील साइन की थी उसके मुकाबले मोदी सरकार ने 36 रफाल विमानों को 41.42 प्रतिशत अधिक दाम पर खरीदा। भारतीय वायु सेना को 126 रफाल विमानों की जरूरत थी, इसके लिए साल 2007 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने फ्रांस की सरकार के साथ करार किया, जिसमें 126 रफाल विमानों को खरीदने का समझौता हुआ था। ये तय किया गया था कि 126 में से 18 विमान पूरी तरह से तैयार और लड़ाई में सक्षम स्थिति में भारत में लाए जाएंगे और अन्य 108 विमानों को हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर भारत में तैयार किया जाएगा। उस समय प्रति विमान की कीमत 643.26 करोड़ रुपये (79.3 मिलियन यूरो) थी। हालांकि बाद में इस डील में बदलाव हुआ और साल 2011 में प्रति विमान की कीमत 818.27 करोड़ रुपये (100.85 मिलियन यूरो) हो गया था। इसके बाद 10 अप्रैल 2015 को नरेंद्र मोदी ने अचानक से ये फैसला किया कि 126 के बजाय सिर्फ 36 रफाल विमान ही खरीदे जाएंगे और फ्रांस में दौरे के दौरान ये डील साइन कर दी थी। मोदी के इस फैसले की कांग्रेस समेत कई दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने काफी आलोचना की थी। मोदी सरकार का कहना था कि उनके द्वारा किए गए फैसले में प्रति विमान के मूल्य में नौ प्रतिशत की गिरावट आई है और नया मूल्य 744.60 करोड़ रुपये (91.75 मिलियन यूरो) पर आ गया। यह अपने आप में अधूरी जानकारी थी। 2007 में 126 विमानों को भारत के हिसाब से तैयार करने के लिए अलग से 1.4 बिलियन यूरो देने थे। 2016 में 36 विमानों को तैयार करने लिए 1.3 बिलियन यूरो दिए जाने का फ़ैसला हुआ। सरकार जिस रफाल विमान को 9 प्रतिशत सस्ते दर पर खरीदने की बात की वह केवल झांसा था।
सब जज भी नकली, आदेश की लिखावट और हस्ताक्षर भी नकली :
हिली ग्रह ने संकेत दिया है कि डीके ने सुप्रीम कोर्ट में तीनों जजों का रूप धरा था। डीके पुरोहित किसी की लिखावत भी लिख सकता है। बस रफाल विमानों के मामले में मोदी सरकार को राहत देते हुए तीनों जजों ने उनके पक्ष में फैसला लिखा। ये तीनों जज असली नहीं थे। डीके पुरोहित विश्व विजयी अभियान में लगा हुआ है। हिली ग्रह से उनकी शक्तियां संचालित होती है। डीके पुरोहित की ज्ञानेंद्रियों का संचालन हिली ग्रह से होता है। उसके जैसे कई रूप हैं। डीके पुरोहित किसी की लिखावट भी लिख सकता है। कोई भी रूप धर सकता है। किसी की आवाज भी निकाल सकता है। यही नहीं वह भूतकाल और भविष्य काल में भी जा सकता है। साथ ही गायब भी हो सकता है। इसके साथ ही डीके पुरोहित किसी के विचार भी बदल सकता है। इतनी सारी शक्तियां डीके पुरोहित के पास है, मगर उसका संचालन हिली ग्रह के लोग करते हैं। डीके पुरोहित अपनी मर्जी से कुछ भी नहीं कर सकता है।




Monday, 6 January 2020

जेल में आसाराम के पैर दबाते हैं कैदी, आंवले का मुरब्बा, शिलाजीत और अफीज की डोज मिलती है


-डीके पुरोहित चूहा बनकर सेंट्रल जेल पहुंचा, वहां आसाराम के ठाठ देखे, आश्रम से आते हैं आए दिन भोजन के टिफिन, शाम होते ही राम नाम की महिमा बताने लग जाते हैं आसाराम

डी.के. पुरोहित. जोधपुर

यह है जोधपुर की सेंट्रल जेल। जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता। लंबे चौड़े क्षेत्र में फैली जैल में किसी का पहुंचना आसान नहीं है। यहां खूंखार आतंकवादी भी रखे जाते रहे हैं। यहां आए दिन मोबाइल, सिम मिलने की घटनाएं होती रही है। इसी जेल में बंद है आसाराम। आसाराम का जेल में जाने के बाद क्या रुटीन है, उनके साथ कैसा व्यवहार होता है, इसकी जानकारी लेने के लिए डीके पुरोहित चूहा बनकर जेल पहुंचा। यहां पहुंचने पर जो दृश्य दिखाई दिए, उससे लगता नहीं है कि आसाराम जेल में सजा काट रहा है। यहां तो आसाराम को शाही मेहमान की तरह रखा जाता है। यहां प्रस्तुत है आंखन देखी :

आश्रम का खाना :  आश्रम से एक भक्त पौष्टिक भोजन से युक्त टिफिन लेकर आता है। उसे जेल में एक सिपाही लेता है और सीधा आसाराम के पास ले जाया जाता है। आसाराम के टिफिन में रडाया हुआ दूध भी है। जो 
अलग बोतल में था।

पैर की मालिश : आश्रम के कैदी शाम होते ही आसाराम से राम नाम का महत्व समझते हैं। आसाराम अपने प्रवचन और किस्से सुनाते हैं। दूसरे कैदी आसाराम के पैर दबाते हैं और मालिश करते हैं।

शिलाजीत और अफीम की डोज : आसाराम को शिलाजीत और अफीम की डोज भी जेल में मिलती है। सर्दी के मौसम में बॉडी फिट रहे इसकी लिए शिलाजीत दी जाती है और अफीम की खुराब भी आसाराम लेते हैं।

आंवले का मुरब्बा : जेल में आसाराम को आंवले का मुरब्बा भी दिया जाता है। इसके लिए पैसे आश्रम से आते हैं। उनके मनोरंजन के लिए टीवी की व्यवस्था की गई है। जेल स्टाफ आसाराम को आदर से बात कर बुलाते हैं। यही नहीं उनसे आशीर्वाद लेना भी नहीं भूलते।


सनसनीखेज : शहादत से दो दिन पहले थानाधिकारी गुमानसिंह के साथ सागरमल गोपा की लंबी बातचीत :


आजादी के आंदोलन में जैसलमेर के सागरमल गोपा का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है। उन्होंने महारावल जवाहिर सिंह की मुखालफत की और आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनकी मौत 4 अप्रैल 1946 को जैसलमेर की जेल में हुई। उनकी मौत के बाद गोपाल स्वरूप पाठक आयोग का गठन किया गया, मगर उनकी मौत की सही तस्वीर सामने नहीं आई। डीके पुरोहित ने भूतकाल में प्रवेश किया और 2 अप्रैल 1946 को जेल में थानाधिकारी गुमानसिंह के साथ हुई बहस और लंबी बातचीत को सुना। यहां प्रस्तुत हैं महत्वपूर्ण अंश :-










डी.के. पुरोहित. 2 अप्रैल 1946 को जैसलमेर की जेल से











शहीद होने के दो दिन पहले 2 अप्रैल 1946 को सागरमल गोपा की जेल में थानाधिकारी गुमानसिंह से लंबी बहस हुई थी। गुमान सिंह ने उन्हें महारावल जवाहिर सिंह से माफी मांगने और आजादी का आंदोलन खत्म करने की अंतिम चेतावनी दी। साथ ही कहा था कि अब उनके बचने का यही अंतिम रास्ता है, अन्यथा उनका जीवित जेल से बाहर निकलना संभव नहीं है। लेकिन सागरमल गोपा गुमानसिंह की चेतावनी से तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि जवाहिर का तलवा चाटने वाले गुमान तू गुमान मत करआजादी के दीवाने मौत से नहीं डरतेसागर वह सागर है जिसमें आजादी के मोती छुपे हैं, इन मोतियों को पाने से कोई नहीं रोक सकता। तू मुझे मार सकता है, लेकिन आंदोलन की लौ कम नहीं होगी।
सागर मल गोपा ने गुमानसिंह को एक दोहा सुनाया-
‘करणी  जै आजादी री बिरखा, सागर त्याग कर जावेगो।
जवाहर ने कह दीजो जा, हिंद आजादी पावेगो।‘इसके बाद गुमान सिंह ने सिपाहियों को बुलाया और उसकी जमकर पिटाई करवाई। सागर मल पर डंडे बरसाए गए। मगर वह झुका नहीं। हर डंडे के साथ सागर मल भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे। अंतत: सिपाहियों के हाथ थक गए, मगर सागरमल नहीं झुका। इसके बाद गुमान सिंह फिर सागर से बोला-तेरा मरने का समय आ गया है। मांग ले जवाहिर सिंह जी से माफी। बच सकता है। मगर सागरमल ने गंभीर घायल अवस्था में इतना ही कहा कि गुमानसिंह तू सत्ता मद में चूर है। मेरी मौत हो सकती हैै, लेकिन मेरी रूह भी जवाहिरसिंह से माफी नहीं मांगेगी। इसके साथ रात 11 बजे डीके पुरोहित का भूतकाल से संपर्क कट गया। सागरमल गोपा का परिचय और आजादी के आंदोलन में उनका योगदान :
सागरमल गोपा जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे। उनका जन्म 3 नवंबर सन् 1900 में हुआ था। एक समृद्ध और प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार से संबंधित होने के नाते उनके पूर्वज जैसमलेर साम्राज्य के राजगुरु थे, उन्होंने सम्मानित पदों पर रहते हुए राज्य की सेवा की। उनके पिता अखेराज जैसलमेर राज्य में सेवारत थे। युवावस्था के दौरान, सागरमल ने अपने गृह राज्य से स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा में उदासीन रवैये को देखा। इससे सागरमल गोपा बहुत परेशान हुए और धीरे-धीरे उनके भीतर विद्रोह के लिए जुनून की एक लौ उत्पन्न हुई। श्री सागरमल गोपा अपने परिवार के साथ नागपुर चले गए और तब उन्होंने वहां स्वतंत्रता आंदोलन की दिशा में पूरी तरह से अपना जीवन समर्पित करने का वचन दिया। सन 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय सहभागियों में सागरमल एक थे। उन्होंने अखिल भारतीय रियासतों के राज्यों की परिषदों द्वारा आयोजित सम्मेलनों में भी भाग लिया। विभिन्न विद्रोहों में उनकी भागीदारी के कारण, जैसलमेर और हैदराबाद में उनके प्रवेश राज्य प्रशासनों द्वारा निषिद्ध था। सन् 1921 में सागरमल ने गैर-सहकारिता आंदोलन में एक सक्रिय भूमिका निभाई, जहाँ उन्होंने क्षेत्र के शासकों द्वारा आम लोगों के लिए उदासीन रवेैये के खिलाफ जोरदार विरोध किया। सागरमल ने अखिल भारतीय राजसी राज्यों की परिषदों के सम्मेलनों में भी भाग लिया। गुस्साए हुए प्रशासन द्वारा उन्हें जैसलमेर और हैदराबाद से निष्कासित कर दिया। इसके बावजूद भी उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काम करना जारी रखा। कई किताबें प्रकाशित करके, सागरमल ने अपना संदेश फैलाया और प्रेस के माध्यम से अपने आंदोलन में शामिल होने के लिए जनता को प्रेरित किया, जिनमें सबसे प्रसिद्ध ‘जैसलमेर राज्य का गुंडा शासन’ और ‘रघुनाथ सिंह का मुकदमा’ है।
जैसलमेर में स्वतंत्रता के लिए सागरमल का निरंतर अडिग संघर्ष जारी रहा। उनके पिता का निधन अक्टूबर सन 1938 में हो गया, जिसके बाद सागरमल को जैसलमेर राज्य के निवासी द्वारा उन पर किसी तरह के दुर्व्यवहार या कानूनी मामले के खिलाफ की गारंटी के तहत घर लौटाने का नेतृत्व किया गया। इस आश्वासन का उल्लंघन हुआ और सागरल को 25 मई सन 1941 को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद वह कई सालों के लिए कैद कर लिए गए, जिसमें से वह अंततः कभी रिहा नहीं किए गए। क्रूरता और यातनाओं के साथ उनको कैद में रखा गया, जिसकी वजह से सन् 1946 में जेल में ही उनका निधन हो गया। इस महान शहीद को भारत सरकार और डाक विभाग द्वारा ‘स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष’  शीर्षक श्रृंखला के लिए 29 दिसंबर 1986 को एक स्मारक टिकट जारी करके श्रद्धांजलि दी गई। इंदिरा गांधी नहर की एक शाखा भी उनके नाम पर है।

Saturday, 4 January 2020

सद्दाम हुसैन अमेरिका की सड़कों पर घूमता हुआ दिखाई दिया



एजेंसी. वाशिंगटन

मानो या न मानो लेकिन चर्चा यह है कि इराक के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पिछले पंद्रह दिनों से अमेरिका की सड़कों पर घूमते दिखाई दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह या तो सद्दाम हुसैन का हमशक्ल है या फिर सद्दाम हुसैन का भूत है। गौरतलब है कि सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को फांसी पर लटका दिया गया था। अकस्मात 13 साल बाद उन्हें अमेरिका की सड़कों पर देखा जाना रहस्य रोमांच की तरह नजर आ रहा है। अमेरिका में रहने वाले एक इराकी नागरिक ने तो यहां तक दावा किया है कि सद्दाम हुसैन के हाथ में वो कुरान भी देखी गई जो उसने अपने 26 लीटर खून से लिखवाई थी। वाशिंगटन की एक रोड पर देर रात उन्हें कुरान पढ़ते देखा गया। इस तथ्य की पुष्टि अमेरिका के कुछ अन्य बुजुर्गांे ने भी की है।

गौरतलब है कि तानाशाह सद्दाम हुसैन को 30 दिसंबर 2006 को इराक की स्पेशल ट्राइबनल कोर्ट ने पूरी मानवता का अपराधी करार दिया था। उस पर 148 शियाओं के मौत के घाट उतारने का दोष साबित हुआ था। 1982 में सद्दाम हुसैन ने इराकी शहर दुजैल में अपने विरोधियों की हत्या करवाई थी। अमेरिका की सेना ने सद्दाम हुसैन को एक गुफा से पकड़ा था। सद्दाम हुसैन पर अदालती प्रक्रिया चली। जब सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा सुनाई गई तो उसने कोर्ट से गुजारिश की थी कि फांसी पर लटकाने की बजाय उसे गोली मार दी जाए। उसका कहना था कि वो इराकी मिलिट्री कमांडर की हैसियत रखता है। मिलिट्री ओहदे की वजह से उसे फांसी पर लटकाने की बजाय गोली मारी जाए। हालांकि कोर्ट ने उसकी अपील ठुकरा दी।

इधर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में सद्दाम हुसैन को मोबाइल पर संगीत सुनते हुए भी देखा गया है। उन्हें अपना पसंदीदा सिगार पीते हुए भी देखा गया। बुजुर्ग ने बताया कि सद्दाम अपनी फौजी ड्रेस में था। उसके बाल काफी बढ़े हुए थे और सिर पर सेना की टोपी पहने हुई थी। बुजुर्ग का कहना है कि सद्दाम ने किसी से कोई बात नहीं की और कुछ कदम चलने के बाद ओझल हो गए।


Wednesday, 1 January 2020

अभी 10 साल तक मिग-27 की विदाई जरूरी नहीं थी, अमेरिका और फ्रांस से नए विमान खरीदने की भूमिका तय कर रही सरकार


फॉर्म 700 भरने में की जल्दबाजी, उड़ाने वाले पायलटों के साथ अन्याय, विदाई के क्षणों में भावुक हुए पायलट
डी.के. पुरोहित. अमेरिका

यह रहस्य उस डायरी से सामने आया है जिसमें मिग-27 की पहली उड़ान से लेकर अंतिम उड़ान तक वायुसेना निष्पादित करती है। इस डायरी की रिपोर्ट को मानें तो अभी 10 साल और मिग-27 उड़ान भर सकता था। लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने वायुसेना के माध्यम से इस लड़ाकू विमान को बूढ़ा बताकर आर्मी बेड़े से हटा दिया। आनन-फानन में फॉर्म 700 भर कर मिग-27 को रिटायर्ड कर दिया। इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि विश्व स्तर पर सामरिक ताकत को बढ़ाने के लिए नए विमान अमेरिका और फ्रांस से खरीद सके। इन नए विमानों की खरीद जल्द हो सकती है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि सरकार जितनी राशि नए विमानों की खरीद  में लगाने की तैयारी कर रही है, उससे मिग-27 में सुधार हो सकता है।

मिग- 27 लड़ाकू विमानों ने करगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना के लिए अहम भूमिका निभाई थी। इन लड़ाकू विमानों को भारतीय वायु सेना में 1981 में शामिल किया गया था. यानी 38 साल तक अपनी सेवा देने के बाद ये रिटायर हो गए हैं। 3 साल पहले हासीमारा में मिग- 27 के दो स्क्वाड्रन डीकमिशन किए जा चुके हैं। हालांकि पूरी दुनिया से मिग-27 हटा लिए गए हैं, केवल कजाकिस्तान आर्मी ही मिग विमानों का इस्तेमाल कर रही है। मिग ने 38 साल तक वायुसेना के माध्यम से देश की पहरेदारी की है। जगुआर, मिराज और सुखोई एयरफोर्स में बाद में शामिल हुए। जगुआर, मिराज और सुखोई की अपनी भूमिका है, लेकिन मिग-27 की अनदेखी नहीं की जा सकती। हालांकि बार-बार मिग-27 के गिरने से इसकी क्षमता पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, लेकिन यह तथ्य भी हमारे सामने है कि करगिल युद्ध में मिग जिस तरह गरजा, उससे इस विमान की ताकत को कमतर नहीं आंका जा सकता। मिग-27 अपने नाम से ही जाना जाता रहा है।
मिग-27 के बारे में तकनीकी और क्षमताजनक तथ्य :
चालकदल: 1, लंबाई : 17.08 मी (56 फीट)पंख फैलाव: पंखों के प्रसार के साथ: 13.97 मी (45 फीट 10 इंच), पंख स्वेप्त के साथ: 7.78 मी (25 फीट 6 इंच), ऊंचाई: 5 मी (16 फीट 7 इंच), पंख क्षेत्र पंखों के प्रसार के साथ: 37.35 मी² (402 फीट²), पंख स्वेप्त के साथ: 34.16 मी² (367.7 फीट²), खाली वजन: 11,908 किलोग्राम (26,253 पौंड), उपयोगी भार: 20,300 किलोग्राम (44,800 पौंड), अधिकतम उड़ान वजन: 20,670 किलोग्राम (45,570 पौंड), पावर प्लांट: 1 × खाचुरूर्व आर-29-बी-300 आफ्टरबर्न टर्बोजेट, मूल थ्रस्ट: 78.5 किलोन्यूटन (17,650 पौंड-बल), आफ्टरबर्नर के साथ थ्रस्ट: 112.8 किलोन्यूटन (25,360 पौंड-बल), प्रदर्शन अधिकतम गति: At sea level: मैक 1.09 (1,350 किमी/घंटा; 839 मील), At 8,000 मी (26,250 ft): मैक 1.5 (1,885 किमी/घंटा; 1,171 मील/घंटा), रेंज: 2,500 किमी (1,550 मील; 1,350 नॉटिकल मील), हमले की त्रिज्या: 780 किमी (480 मील; 420 नॉटिकल मील), 540 किमी (290 नॉटिकल मील; 340 मील), दो केएच-29 मिसाइलों और तीन ड्रॉप टैंकों के साथ, 225 किमी (120 नॉटिकल मील; 140 मील), दो केएच-29 मिसाइलों और कोई बाहरी ईंधन नहीं के साथ, फेरी रेंज: 2,500 किमी (1,550 मील; 1,350 नॉटिकल मील), अधिकतम सेवा सीमा: 14,000 मी (46,000 फीट), आरोहन दर: 200 मी/से (39,400 फीट/मिनट), विंग लोडिंग: 605 किलोग्राम/मी² (123.9 पौंड/फीट²), थ्रस्ट/वजन: 0.62

मिग की विशेषताओं को देखते हुए उसके साथ अन्याय हुआ :
यह तो वही बात हुई जैसे भीष्म पितामह बूढ़े हो गए तो उन्हें युद्धभूमि से बाहर कर दें। जबकि महाभारत की जंग में भीष्म पितामह की अनदेखी नहीं की जा सकती। यही हाल मिग-27 के हैं। मिग-27 निर्णायक युद्ध लड़ने वाला लड़ाकू विमान है। पिछले 38 सालों की डायरी के पन्नों में जिन सूचना का उल्लेख है उसके अनुसार अभी 10 साल मिग-27 अपनी सार्थक सेवाएं दे सकता है। लेकिन सरकार ने इसे सेना से बाहर कर दिया। एक तरह से नए विमान खरीदने की सरकार जमीन तलाश कर रही है वहीं मिग-27 की विशेषताओं की अनदेखी कर रही है। सरकार अरबों रुपए नए विमानों पर खर्च करने की तैयारी कर रही हे, उतनी ही राशि देश के वैज्ञानिकों को उपलब्ध करवाई जाए तो मिग-27 को दस साल और जीवनदान मिल सकता था।

अनुभवी पायलट हुए मायूस
प्रतिदिन मिग-27 लड़ाकू विमान उड़ाने वाले पायलट मायूस हो गए हैं। देश की सेवा का जज्बा जिन पायलटों में कूट-कूट कर भरा हुआ है, वे अब मिग-27 रिटायर्ड होने पर थोड़े मायूस हो गए हैं। 40 साल से फ्रंट लाइन फाइटर इस विमान को एक ही झटके में रिटायर्ड कर दिया। इससे सेना की सामरिक ताकत पर भी इसका असर पड़ेगा। अगर इन्हीं विमानों पर पैसा खर्च कर उनकी क्षमता बढ़ाई जाती और उन्हें युद्ध भूमि में अपनी क्षमता दिखाने का मौका दिया जाता तो ठीक था, लेकिन इसे रिटायर्ड करने में जल्दबाजी दिखाई गई।