Monday, 16 August 2021

राहुल गांधी की जान को खतरा, तालिबान के निशाने पर

वाशिंगटन (एजेंसी)। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जान को खतरा है। अमेरिकी गुप्तचर डेरिस विल हिल की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल की जान को खतरा देखते हुए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर किया और खुद अध्यक्ष बन गईं। हिल ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि तालिबान के जरिए राहुल को निशाना बनाया जा सकता है।

हिल की रिपोर्ट में बताया है कि किसान आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ घट रहा है। जगह-जगह उनकी आलोचना हो रही है। ऐसे में वे नहीं चाहेंगे कि अगला प्रधानमंत्री राहुल गांधी बने। जब तक गांधी परिवार राजनीति में है तब तक देश में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। रिपोर्ट के मुताबिक सोनिया गांधी परिपक्व नेता है और राहुल में अभी समझ की कमी है और वो उत्साहित अधिक है। अपने बेटे की जान काे खतरा देखते हुए ही वह खुद कांग्रेस अध्यक्ष बनने को तैयार हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि राहुल गांधी को तालिबान मामले से दूर रहना चाहिए। श्रीलंका में लिट्‌टे के खिलाफ राजीव गांधी ने सेना भेजी थी तो उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा था। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि राहुल के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है और ना ही कोई साजिश रच रहे, लेकिन यह बात उन्हें भी पता है कि राहुल पर आतंकवादी संगठनों की नजर है। ऐसे में तालिबानी आतंकवादियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट में कहा गया है कि राहुल तालिबान के निशाने पर है। राहुल की हत्या के लिए मारा मोनाई गनी शाह नाम के एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दी गई है। अगले छह महीने राहुल के लिए परेशानी भरे हो सकते हैं।  


Thursday, 12 August 2021

पिछले 8 साल में राजस्थान शिक्षा विभाग में 8 हजार करोड़ रुपए जीम गए बिचौलिए

वर्ल्ड स्ट्रीट बिग ब्रेकिंग : आजादी के बाद 75 साल में शिक्षा विभाग में अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय अनियमितता, भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारें भ्रष्ट 

-2014 से 2018 तक वसुंधरा सरकार और 2018 से 2021 में वर्तमान में अशोक गहलोत सरकार के राज में शिक्षा विभाग में हुई बंदरबांट, राजीव गांधी कहते थे दिल्ली से एक रुपया भेजता हूं, जनता तक पहुंचते-पहुंचते 19 पैसा रह जाता है, राजस्थान में दोनों ही सरकारों ने शिक्षा विभाग को जो पैसा दिया दिया उसका यही हस्र हुआ। यानी सभी कुआंे में भाग मिली हुई है 

-वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में 5 हजार करोड़ और अशोक गहलोत सरकार में ढाई-तीन साल में 3 हजार करोड़ रुपए बिचौलिए खा गए, डेढ़ साल में कोरोना की वजह से भ्रष्टाचार कम हुआ, क्योंकि स्कूलें ही बंद रही

वसुंधरा राजे शासन में 5 सालों में शिक्षा विभाग को 125 हजार करोड़ से अधिक का बजट मिला। इसमें से 80 प्रतिशत यानी 100 हजार करोड़ रुपए वेतन-भत्तों में चला गया, शेष 25 हजार करोड़ में से 5 हजार करोड़ रुपए और गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग को ढाई-तीन साल में 120 हजार करोड़ रुपए का बजट मिला, इसमें से 100 करोड़ वेतन भत्तों में और शेष 20 हजार करोड़ में से 3 हजार करोड़ रुपए विकास कार्य और योजनाओं के नाम पर ऊपर से नीचे तक लोग डकारा गए।  गौरतलब है कि वेतन मद में अलग से राशि दी जाती है और निर्माण संबंधी कार्य के लिए समसा-रमसा में बजट दिया जाता है 

-स्कूलों में भवन, कक्षा-कक्ष निर्माण, टांका, चारदीवारी, लैब, लाइब्रेरी, फर्नीचर, प्याऊ और मिड डे मील सहित तमाम कार्यों में अनियमितता उजागर, दानदाताओं से मिली 500 करोड़ की राशि का भी कोई हिसाब किताब नहीं 

-विद्यालय प्रबंध समिति की अनदेखी से स्कूलों में भ्रष्टाचार को मिला बढ़ावा, कागजों में शोभा बढ़ातीं रहीं समितियां, विकास के लिए जो राशि मिली, उसे जीम गए 

-प्रदेश में 10,992 उच्च माध्यमिक, 3,441 माध्यमिक, 18,567 उच्च प्राथमिक और 30,324 प्राथमिक स्कूल कार्यरत हैं, यानी 65 हजार से अधिक स्कूलें हैं 

-यही नहीं देशभर में सभी कर्मचारियों-अधिकारियों पर जो 0.2 प्रतिशत शिक्षा कर लगाया जाता है, उसे विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों ने विदेशी फंड मानते हुए उसमें 30 से 40 प्रतिशत राशि खुदबुर्द कर दी, यह राशि भी करोड़ों में है 

-इस वित्तीय दुरुपयोग का पर्दाफास करने के लिए वर्ल्ड स्ट्रीट रिपोर्टर ने तीन माह स्टडी की, 5 बार आम आदमी बन शिक्षा निदेशालय पहुंचा, 400 से अधिक विभागीय कर्मचारियों-शिक्षकों से बात की, तब जाकर वित्तीय अनियमितताओं पर से पर्दा उठा, शिक्षक नेताओं का कहना है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच होनी चाहिए, प्रदेश में 5 लाख से अधिक पत्र-दस्तावेजों और डायस के माध्यम से ऑनलाइन कार्रवाई को खंगाला जाए तो भी राशि के दुरुपयोग का पता नहीं चल पाएगा, इसमें ऊपर से नीचे तक सभी मिले हुए हैं 

डीके पुरोहित. जोधपुर 

राजस्थान शिक्षा विभाग में पिछले 8 साल में 8 हजार करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितता सामने आई है। 2014 से 2018 तक वसुंधरा सरकार के 5 साल और 2018 से वर्तमान के ढाई-तीन सालों में कांग्रेस राज में शिक्षा विभाग में 3 हजार करोड़ रुपए बिचौलिए खा गए। आजादी के बाद यानी 75 साल में अब तक की सबसे बड़ी अनियमितता वर्ल्ड स्ट्रीट ने पकड़ी है। यह घपले की परिभाषा में आता है। इस घपले की कड़ियां आगे धीरे-धीरे सामने आएंगी। बताया जा रहा है कि स्वतंत्र देश में शिक्षा विभाग में शायद ही किसी अन्य राज्य में इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितता हुई है। प्रदेश के शिक्षा विभाग में भारी अनियमिततर की बात करें तो वसुंधरा राजे शासन में 5 सालों में शिक्षा विभाग को 125 हजार करोड़ से अधिक का बजट मिला। इसमें से 80 प्रतिशत यानी 100 हजार करोड़ रुपए वेतन-भत्तों में चला गया, शेष 25 हजार करोड़ में से 5 हजार करोड़ रुपए और गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग को ढाई-तीन साल में 120 हजार करोड़ रुपए का बजट मिला, इसमें से 100 करोड़ वेतन भत्तों में और शेष 20 हजार करोड़ में से 3 हजार करोड़ रुपए विकास कार्य और योजनाओं के नाम पर ऊपर से नीचे तक लोग डकार गए। गौरतलब है कि वेतन मद में अलग से राशि दी जाती है और निर्माण संबंधी कार्य के लिए समसा-रमसा में बजट दिया जाता है। यही नहीं होनहार बालिकाओं को स्कूटी देने, साइकिलें देने में भारी गड़बड़ सामने आई है। इसमें भी अधिक रेट में टेंडर कर कम राशि का भुगतान किया गया। 

भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश के 160 विधायकों में से 48 विधायकों ने ही अपना रिपोर्ट कार्ड दिया, जबकि 112 को यह भी नहीं पता कि उनके राज में शिक्षा विभाग क्या कर रहा है। इसका एक आशय यह भी निकाला जा रहा है कि विधायकों का भी इसमें दामन दागदार रहा है। मौजूदा सरकार की बात करें तो स्कूलों में स्मार्ट टीवी और सेटटॉप बॉक्स लगाने के लिए 82 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया, जबकि 80 प्रतिशत स्कूलों में टीवी-सेटटॉप बॉक्स लगे ही नहीं। इसी तरह इंग्लिश मीडियम के 1200 महात्मा गांधी राजकीय स्कूलों के लिए प्रावधान किया गया, मगर इसमें भी जमकर अनियमितता हुई। खुद सरकार को नहीं पता कि कितने स्कूल खुले गए हैं और कितने खुलने हैं। विद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं के विस्तार के लिए गहलोत सरकार ने 450 करोड़ रुपए का प्रावधान इस साल किया, मगर अधिकतर जगह काम हुआ ही नहीं और जहां-जहां काम हुए वहां घटिया किस्म के काम हुए। तीन सालों में 1200 करोड़ रुपए खर्च होने थे, जबकि डेढ़ साल कोरोना सीजन में काम कम ही हुआ। इससे पहले हुए कार्य इतने घटिया थे, कि दो-तीन साल में ही गुणवत्ता की दृष्टि से जवाब दे गए। न तो सक्षम एजेंसी ने कार्य की गुणवत्ता सही होने का प्रमाण-पत्र दिया और न ही किसी एईएन-जेईएन ने निरीक्षण किया। ठेकेदार ने कम टेंडर भरकर अपना 200 प्रतिशत मुनाफा कमाने के लिए ऊपर से नीचे तक सबकी जेबें भर दी। जैसलमेर की गर्ल्स स्कूल के छात्रावास की मरम्मत के लिए दो साल पहले शिक्षा विभाग ने 19 लाख रुपए के टैंडर जारी किए थे, मगर यूआईटी ने 56 लाख रुपए खर्च दिए। इस तरह 40 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च कर वित्तीय अनियमितता कर ली। यह एक जैसलमेर का उदाहरण नहीं है, पूरे प्रदेश में यह घालमेल चलता रहा। इसमें गहलोत सरकार के साथ-साथ पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के हाथ भी मैले रहे हैं।  

इस घपले की तह तक पहुंचने में इस रिपोर्टर ने तीन माह स्टडी की। 5 बार निदेशालय की खाक छानी। 400 से अधिक विभागीय कर्मचारियों और शिक्षकों से मिला। तब जाकर इस नतीजे पर पहुंचना संभव हुआ। गौरतलब है कि सरकार वेतन मद के लिए अलग से बजट देती है और निर्माण संबंधी कार्य समसा-रमसा के माध्यम से किया जाता है। इसके लिए प्रस्ताव मांगे जाते हैं, मगर कब कौनसा प्रस्ताव मिला, कौनसा कार्य कब पूरा हुआ, किसने इसे पूरा किया और कब-कब निरीक्षण हुआ, कितनी गुणवत्ता हुई? कितना समय लगा? कितने समय बाद निर्माण चरमरा गया। गारंटी पीरियड में कब-कब पुन: मरम्मत हुई। अनियमिता के जिम्मेदारों को कब-कब ब्लैक लिस्टेड किया। इस संबंध में किए पत्राचारों की लंबी फेहरिस्त है। प्रदेश के करीब 65 हजार स्कूलों में 5 लाख से अधिक दस्तावेज जिसमें डायस के माध्यम से भेजे प्रस्ताव और प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। जोधपुर में समसा के अभियंता चंपालाल से आंकड़े मांगे तो बगले झांकने लगे और बोले कि इतना पुराना रिकॉर्ड ढूंढ़ेंगे तो महीनों लग जाएंगे। शिक्षक नेताओं का कहना है कि इन सबकी जांच निष्पक्ष एजेंसी से होनी चाहिए। इन्हें पूरी गहनता से खंगालने के बाद भी दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं है। इस घालमेल में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी कुओं में भांग मिली हुई है। शिक्षक नेता भी स्वीकार करते हैं कि बजट राशि का पूरा उपयोग नहीं होता और घटिया निर्माण के चलते यह गोरखधंधा चलता रहा। इसका पूरा ब्यौरा सरकार के पास नहीं हैं। 

पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी और वर्तमान शिक्षा मंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के कार्यकाल में राशि का जमकर दुरुपयोग हुआ। वे बड़ी-बड़ी बातें करते रहे और यह कहते रहे कि सरकार ने स्कूलों को पर्याप्त बजट दिया है, लेकिन उनकी नाक के नीचे वित्तीय अनियमिता होती रही और वे कुछ नहीं कर पाए। प्रदेश के 30 से अधिक जिलों में पिछले आठ सालों में 8-9 हजार करोड़ रुपए की राशि का दुरुपयोग किया गया है। स्कूलों के भवन, कक्षा-कक्ष, लाइब्रेरी, कंप्यूटर सेक्शन और लैब के साथ अन्य विकास कार्यों में राशि का दुरुपयोग हुआ। मिड डे मील में भी कॉम्बो पैक के चलते घपला हुआ। स्कूली शिक्षकों के वेतन-भत्ते बढ़ते रहे, मगर बच्चों की सुविधाओं के लिए बजट कम ही दिया गया। इस कम बजट का भी अगर सदुपयोग होता तो स्कूलों का विकास हो सकता था, मगर प्रदेश में बजट राशि का जमकर जीमण हुआ। स्कूल प्रबंध समिति की उपेक्षा भी इसका एक कारण है। 

25 जिलों में ही करीब 8 हजार करोड़ रुपयों की  हेराफेरी : 

अजमेर 415 करोड़, बीकानेर 505 करोड़, गंगानगर 285 करोड़, जैसलमेर 255 करोड़, उदयपुर 340 करोड़, बाड़मेर 335 करोड़, जालोर 203 करोड़, सिरोही 348 करोड़, डूंगरपुर 285 करोड़, प्रतापगढ़ 203 करोड़, चित्तौड़ 271 करोड़, हनुमानगढ़ 213 करोड़, राजसमंद 182 करोड़, बूंदी 192 करोड़, सीकर 301 करोड़, पाली 215 करोड़, जोधपुर 460 करोड़, भीलवाड़ा 303 करोड़, करौली 237 करोड़, सवाई माधोपुर 283 करोड़, जयपुर 485 करोड़, अलवर 360 करोड़, नागौर 237 करोड़, झालावाड़ 311 करोड़ और दौसा में 248 करोड़ से अधिक रुपयों की हेराफेरी सामने आई है। ( नोट : आंकड़ाें में कमी या वृद्धि जांच में अलग हो सकती है।) 

दान में भी कर ली स्नान : दानदाताओं की करीब 500 करोड़ रुपयों की राशि से विकास के नाम पर धोखाधड़ी : 

पिछले 8 साल में प्रदेश की करीब 65 हजार स्कूलों में 500 करोड़ से अधिक उस राशि की हेराफेरी हुई है जो दानदाताओं के सहयोग से मिली है। इस राशि का उपयोग पूरी तरह से नहीं हो पाया। जहां 100 रुपए मिले, वहां 17 से 25, कहीं 52 रुपए का काम हुआ, यानी प्राप्त राशि का बड़ा हिस्सा खुर्दबुर्द कर दिया गया। दानदाताओं ने तो अपना धर्म निभाया, मगर प्रबंधन अपना धर्म भूल गया। हालांकि शिक्षक नेता कहते हैं कि दानदाताओं की राशि का अधिकतर दुरुपयोग नहीं हो रहा, क्योंकि दानदाता अपनी निगरानी में काम करवाते हैं, लेकिन स्थितियां सामने हैं। इस राशि में भी घपला होने की जानकारी मिली है। विकास के नाम पर भामाशाहों से मोटी रकम हथियाने के बाद उसको विकास कार्यों पर पूरी तरह खर्च ही नहीं किया। खासकर फर्नीचर, दरी, पानी, कक्षा-कक्ष, स्कूल भवन, टांका निर्माण, लैब, लाइब्रेरी और कंप्यूटर लैब सहित कई मद में राशि का खर्च अधिक बताया गया और बची हुई राशि हड़प ली गई। स्कूल मैनेजमेंट से लेकर शिक्षक तक और क्लर्कीकल स्टाफ ने भी राशि की बंदरबांट कर ली। जिसका जैस दांव चला दान की राशि में स्नान करते गए। 

स्कूल प्रबंधन समिति की सदस्यता शुल्क का भी कोई हिसाब-किताब नहीं : 

सरकारी स्कूलों में प्रत्येक स्कूल में प्रबंधन समिति बनी हुई है। इसमें सदस्यों से जो शुल्क लिया जाता है, वह तय नहीं है। प्रदेश के प्रत्येक जिले में अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग सदस्यता शुल्क वसूली जाती है। कहीं यह 100 रुपए, कहीं 200 तो कहीं कम-अधिक रहती है। ऐसे में प्रदेश की 65 हजार स्कूलों में जो सदस्यता शुल्क वसूली गई, वह कहां और किस मद में खर्च की, इसका शिक्षा विभाग के पास ब्यौरा ही नहीं है। इस संबंध में ऑडिट में भी कई जगह सवाल उठाए गए, मगर न विभाग ने कार्रवाई की और न ही सरकार ने कदम उठाया।    

वर्ल्ड स्ट्रीट एक्सपर्ट पैनल : (भंवर काला, शंभूसिंह मेड़तिया, शिक्षक नेता) 

वर्ल्ड स्ट्रीट ने इस संबंध में पड़ताल की और शिक्षक नेताओं से पूछा कि आखिर इतनी बड़ी राशि का घोटाला कैसे हो सकता है? उनका कहना है कि छात्र संख्या के हिसाब से बजट आवंटित होता है, लेकिन इसमें घालमेल हो जाता है। सैलेरी हैड में अलग से राशि आती है और निर्माण आदि के लिए समसा में बजट मिलता है। इसके लिए बाकायदा प्रस्ताव मांगे जाते हैं और फिर उस अनुसार बजट आवंटित होता है। मान लीजिए बजट 56 लाख मिला और खर्च 44 लाख ही किए। इसी तरह कई बार राशि में घपला हो जाता है। इसे समझने के लिए हम देखें कि छत का जब निर्माण होता है तो नियमानुसार जेईएन को वहां मौजूद रहना पड़ता है। 6 इंच की छत की जगह 4-5 इंच की बना ली जाती है। फर्श में कोटा स्टोन लगाना होता है, लेकिन सबकी मिलीभगत से घटिया सामग्री उपयोग में ली जाती है। गौर करने वाली बात यह भी है कि जेईएन-एईएन क्वालिफाइड भी नहीं होते। यही नहीं शिक्षक के भरोसे निर्माण कार्य छोड़ दिया जाता है। ऐसे में मनमानी हर स्तर पर हो जाती है। गुणवत्ता को जांचने की कोई प्रक्रिया नहीं है। किसी प्रकार की मॉनिटरिंग नहीं होती। ऐसे कई कारण है कि जिसके चलते इस प्रकार के घोटालों को प्रश्रय मिलता है। सही बात तो यह है कि सरकार जो बजट देती है, उसमें पारदर्शिता नहीं है। फर्नीचर, स्मार्ट कक्ष, स्मार्ट लैब, स्मार्ट लाइब्रेरी, खेल मैदान के लिए पैसा दिया जाता है उसका पूरा उपयोग नहीं होता। कई बार तो सामग्री सप्लाई तो हो जाती है, मगर उसे रखने के लिए जगह नहीं होती। आजकल ‘डायस के माध्यम से ऑनलाइन मांग की जाती है। ऐसे में मनमाने ढंग से बजट आवंटित होता है। जहां जरूरत है वहां बजट नहीं मिलता। पैसों का सदुपयोग नहीं होता। सामग्री रखने के लिए पहले से इन्फ्रा स्ट्रक्चर नहीं बनाया जाता। ठेकेदार टेंडर में कम राशि भरते हैं। ऐसे में वह अपना 200 प्रतिशत मुनाफा कमाने के लिए घटिया गुणवत्ता से निर्माण कार्य करवाता है। पिछले वर्षों में कई सरकार आई, चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, रुपयों का पूरा उपयोग नहीं होता। सरकार को मॉनिटरिंग करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बननी चाहिए। राशि शत प्रतिशत खर्च हुई है या नहीं, उसकी जांच होनी चाहिए। वित्तीय अनियमिता की हम निंदा करते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्लानिंग करनी चाहिए। मिड डे मील के लिए कॉम्बो पैक से वितरण होता है। ऐसे में खाना घटिया क्वालिटी का होता है। इसके लिए पैसा सीधा छात्रों के खातों में जमा होना चाहिए। समसा अब रमसा हो गया है। माध्यमिक शिक्षा से जुड़े कार्य इसके माध्यम से होते हैं। सरकार द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए करदाताओं पर अलग से 0.2 प्रतिशत शिक्षा कर यानी सेस लगाया जाता है। इससे अरबों रुपए मिलते हैं। ये पैसा जनता का है और शिक्षा पर खर्च होना चाहिए, लेकिन इसका राज्यवार व जिला स्तर पर वितरण में पारदर्शिता नहीं बरती जाती। विभागीय अधिकारी कर्मचारी इसे विदेशी फंड मानते हुए 30 से 40 प्रतिशत राशि गबन कर लेते हैं। यह जनता के साथ अन्याय है। प्रिंसिपल के माध्यम से जो राशि जारी होती है, उसमें 30 से 40 प्रतिशत गबन होता है। कई बार ठेकेदार की राशि आरोप लगाते हुए रोक लेते हैं, ठेकेदार को कमीशन देना पड़ता है। यही नहीं अगर ठेकेदार घटिया क्वालिटी का निर्माण करवाता है तो उसे सरकार द्वारा ब्लैक लिस्टेड नहीं किया जाता। इससे इतना बड़ा घोटाला हो गया है। इसकी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच होनी चाहिए। 

 

वर्जन : 

शिक्षा निदेशक सौरभ स्वामी का कहना है कि उन्हें इस संबंध में जानकारी नहीं है। अगर वित्तीय अनियमितता हुई है तो उसकी जांच करवाएंगे। 

पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि फोन पर कुछ नहीं बता सकते, आमने सामने मिलेंगे तो बात करेंगे।    

 


 

 

 

Monday, 2 August 2021

चीन से घातक हथियार खरीद : इमरान खान ने 500 करोड़ का कमीशन खाया

-स्विश बैंकों में गोपनीय खातों में जमा है राशि, पाकिस्तान की सामरिक ताकत बढ़ाने के नाम पर घातक हथियार खरीदे और भ्रष्टाचार किया

-क्रिकेट के बेताज बादशाह और कप्तान के रूप में स्थापित पाकिस्तान प्रधानमंत्री खान के स्विश बैंकों में अलग-अलग अकाउंट है। इनमें किस्तों में राशि जमा है

(एजेंसी. इस्लामाबाद)

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 18 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन से घातक हथियारों की खरीद की। करीब 15 हजार करोड़ के हथियारों की खरीद में इमरान खान ने 500 करोड़ रुपए कमीशन बनाया। पाकिस्तान की सेना और सामरिक ताकत पर रिसर्च करने वाले एक अमेरिकी जासूस नी. बेटन ने दावा किया है कि पाकिस्तान ने पिछले दो-तीन साल में चीन से खरीदे घातक हथियारों से सामरिक ताकत बनाई है। साथ ही प्रधानमंत्री खान ने करीब 500 करोड़ रुपयों की हेराफेरी की है। यह राशि स्विश बैंकों में अलग-अलग खातों में जमा करवाई गई है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक स्विश बैंकों में cap pak नाम से गोपनीय खाते में करीब 200, cricket man नाम से खाते में 150 करोड़ और इतनी ही राशि all rounder नाम से खोले गए खातों में है।

भारत से जारी तनाव के बीच चीन एशिया के कई देशों को अपने घातक हथियारों से पाट रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो-तीन साल में दुनिया में सबसे अधिक हथियार खरीदने वाले देशों की लिस्ट में पाकिस्तान दसवें स्थान पर काबिज है। इस दौरान पाकिस्तान ने दुनियाभर में आयात किए गए कुल हथियारों का 2.7 फीसदी हिस्सा खरीदा है। पाकिस्तान ने आयात किए गए कुल हथियारों का 74 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से खरीदा है। स्वीडन के थिंकटैंक सिपरी की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। इन रक्षा प्रणालियों की ख़रीद के बाद पाकिस्तान एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज़्यादा हथियार ख़रीदने वाले देशों में शामिल हो गया है। हथियार ख़रीदने के मामले में पाकिस्तान ने अपने पड़ोसी दोस्त चीन पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया है। पिछले दो-तीन साल में 15 हजार करोड़ रुपयों से भी अधिक की हुई डील में कई घातक विमान, पनडुब्बी और मिसाइल आदि शामिल है। पनडुब्बियों को पाक ने समुद्री सीमा पर सामरिक ताकत बढ़ाने के लिए आयात किया है। चीन ने पाकिस्तान को अलग-अलग तरह के जेएफ़-17 फ़ाइटर जेट विमान बेचे हैं जबकि पाकिस्तान चीन से लाइसेंस के तहत जेएफ़-17 थंडर और एफ़सी-1 टाइप जेट देश में ही बना रहा है। पाकिस्तान ऐसे 50 फ़ाइटर जेट विमान बना रहा है। चीन के अलावा पाकिस्तान ने तुर्की से मिलजेम युद्धपोतों का आयात भी किया है. पाकिस्तान स्थानीय स्तर पर भी इन जहाज़ों को तैयार कर रहा है। हाल के सालों में पाकिस्तान सैन्य औद्योगिक परिसर ने कराची डॉकयार्ड और ऐरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स कामरा में स्थानीय स्तर पर युद्धपोत, पनडुब्बी, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर तैयार करने की क्षमता हासिल कर ली है। वहीं पाकिस्तान के एक और रक्षा उद्योग पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री (वाह कैंट) के पास छोटे हथियार और गोला बारूद बनाने की क्षमता है। सिपरी के दस्तावेज़ के मुताबिक़, पाकिस्तान ने विदेशों से लड़ाकू जेट, लड़ाकू हेलीकॉप्टर, पनडुब्बी और युद्धपोत आयात किए हैं, लेकिन फिर उन्हें स्थानीय स्तर पर निर्मित किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो, निर्माण में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश भाग आयात किए गए हैं, लेकिन अंतिम हथियार प्रणाली स्थानीय रूप से बनाई गई है। पाकिस्तान ने बड़ी दिलचस्पी के साथ मिस्र से पहले से इस्तेमाल किए गए मिराज-5 फ़ाइटर जेट आयात किए हैं, हालांकि पाकिस्तान की वायुसेना पहले से ही फ्रांस में निर्मित इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रही थी।

सरक्रीक बॉर्डर पर तनाव खड़ा कर रहा पाकिस्तान :

एक एजेंसी के मुताबिक पाकिस्तान की नजर अब सरक्रीक बॉर्डर पर है। वह वहां पर अपने युद्धपोत तैनात कर तनाव की स्थिति बना रहा है। भारतीय जल सेना हालांकि सरक्रीक बॉर्डर पर निगरानी कर रही है, मगर चीन से मदद मिलने के बाद पाकिस्तान की नजर समुद्री ताकत बढ़ाने पर है। इधर, भारतीय सेना भी मुंहतोड़ जवाब देने को तेयार है। पिछले तीन महीनों से पाकिस्तान समुद्री सीमा पर हलचल तेज कर चुका है। इधर खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के इरादे साफ नहीं है। पाकिस्तान ने पिछले दिनों कुछ मछुहारों को भी पकड़ा था, जिसे बाद में भारत की चेतावनी के बाद छोड़ दिया गया था।

  

Saturday, 24 July 2021

अरस्तु के श्राप की वजह से हुई थी सिकंदर की मौत!

-सिकंदर ने पूरी दुनिया लगभग जीत ली थी, मगर धैर्य नहीं रख पाया और आखिर 33 वर्ष की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई, कहते हैं उसकी मौत बुखार से हुई थी, लेकिन यह सत्य नहीं है, उसकी मौत सांप काटने से हुई थी

-सिकंदर ने एक बार अपने गुरु अरस्तु को डराने के लिए सोते हुए उनके ऊपर मरा हुआ सांप डाल दिया था, तब अरस्तु की आंख खुल गई और उन्होंने गुस्से में आकर कहा-मूर्ख जिस ताकत पर तुझे इतना नाज है, धैर्य नहीं होने से तू अपने मकसद में कामयाब नहीं होगा और सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा

(एजेंसी). अल हिल्लह

सिकंदर की मौत कैसे हुई थी? इस पर हुई रिसर्च में पता चलता है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी। अरस्तु सिकंदर के गुरु थे और शिक्षा काल के दौरान एक बार सिकंदर ने अपने गुरु अरस्तु पर सोते हुए मरा हुआ सांप डाल दिया था, बताया जाता है कि अरस्तु ने सिकंदर को गुस्से में आकर कहा-मूर्ख तुझमें धैर्य नहीं है और तुमने गुरु को डराने का प्रयास किया है। सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा और धैर्यहीन होने से तुम अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाओगे। बताया जाता है कि 33 साल की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई। इतिहास में बताया जाता है कि उसकी मौत बुखार यानी टाइफाइड से हुई थी, मगर सच तो यह है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी। यह नया रहस्योद्घाटन यहां एक लाइब्रेरी में मिली पांडुलिपि के हवाले से एक वैद्य ने वर्षों पहले ही कर दिया था।   

इस पांडुलिपि की भाषा पढ़ने में नहीं आ रही थी, लेकिन अलीगढ़ के एक वैद्य जेठमल व्यास के प्राचीन हस्तलिखित पन्ने पर इतना लिखा हुआ मिलता है कि सिकंदर की मौत सांप काटने से हुई। पन्ने पर लिखा है कि गुरु पे मरो सांप लैटायो, गुरु बोल्यो-सर्प राजा ने खायो, सिकंदर प्राण गंवायोगौरतलब है कि वेद्य जेठमल व्यास ने 21 साल की उम्र में अल हिल्लह का दौरा किया था। वहां किसी लाइब्रेरी में उन्हें अरस्तु को पढ़ने का मौका मिला और उन्हें जो शोधपरक जानकारी मिली उन्होंने किसी पन्ने पर इसे लिख दिया। जेठमल व्यास खुद वैद्य होने के साथ ही घुम्मकड़ थे। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी, गुजराती, बंगाली, उर्दू और कई तरह की भाषाएं आती थीं। जिस लिपी में सिकंदर की मौत के बारे में लिखा गया है वह बेबीयाई लिपि है। इस लिपि को दुनिया में कम लोग ही जानते हैं। इसी बेबीयाई लिपि में व्यास ने ब्रह्मांड की रचना और कालखंड को उजागर किया था, मगर ये पांडुलिपियां  उनके परिजनों ने रद्दी समझकर बेच दी।

सिकंदर ने दुनिया जीती, मगर मौत ने आकर नर्तन किया :

सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व यूनान के मैसेडोन या मकदूनिया के पेला नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता फिलिप द्वितीय मकदूनिया और ओलंपिया के राजा थे। उनकी माता ओलंपिया जो एपिरुस की राजकुमारी थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी माता एक जादूगरनी थी, जिनको सापों के बीच रहने का शौक था। इसी वजह से सिकंदर भी सांपों से खेला करता था। इसी खेल-खेल में सिकंदर ने गुरु के गले में सांप डाल दिया। उसकी एक बहन थी, जिसका नाम क्लियोपैट्रा था। सिकंदर और उसकी बहन की परवरिश पेला के ही शाही दरबार में हुई थी। सिकंदर बुद्धिमान थे, उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही घुड़सवारी सीख ली। सिकंदर की प्रारंभिक शिक्षा इनके एक रिश्तेदार द स्टर्न लियोनिडास से हुई। उनके पिता फिलिप चाहते थे कि वे पढ़ाई के साथ -साथ युद्ध विद्या का भी ज्ञान प्राप्त करें और एक महान योद्धा बनें। इसलिए बचपन से ही इनको युद्ध विद्या जैसे तलवारबाजी, धनुर्विद्या, घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी द स्टर्न लियोनिडास से ही प्राप्त की। इसके पश्चात इनके पिता इनके आगे की शिक्षा के लिए एक महान दार्शनिक और विचारक अरस्तु को नियुक्त किया गया। उस वक़्त इनकी उम्र 13 साल थी। अरस्तु के निर्देशन में ही सिकंदर ने साहित्य, विज्ञान, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन किया। सिकंदर की उम्र जब 20 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के निधन के बाद 336 ईसा पूर्व में सिकंदर ने मेसेडोनिया या का सम्राट बनने के लिए अपने सौतले और चचेरे भाइयों की हत्या करवा दी। इसमें सिकंदर की मां ओलंपिया ने सिकंदर की मदद की। सम्राट बनने के बाद सिकंदर ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए एक विशाल सेना का गठन किया और अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए सिकंदर ने यूनान के कई भागों पर अधिकार कर अपनी जीत दर्ज की। इसके पश्चात सिकंदर एशिया माइनर को जीतने के लिए निकल पड़ा। इस युद्ध में सिकंदर ने सीरिया को पराजित कर मिस्र, ईरान, मेसोपोटामिया, फिनिशिया जुदेआ, गाजा और बक्ट्रिया प्रदेश को भी पराजित कर अपने कब्जे में ले लिया। उस समय सभी राज्य फारसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो सिकंदर के साम्राज्य का लगभग 40 गुना था। इसी दौरान सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व में मिस्र में एक नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम अपने नाम पर इलेक्जेंड्रिया रखा और यहां एक विश्वविद्यालय भी बनवाया। सिकंदर ने अपनी विशाल सेना और कुशल नेतृत्व से फारस के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हराकर स्वयं वहां का राजा बन गया। फारस की राजकुमारी रुकसाना से विवाह कर सिकंदर ने जनता को भी अपनी ओर कर लिया। इसके अलावा सिकंदर ने कई जगहों पर अपनी जीत हासिल की। सिकंदर ने भारत पर 326 ईसा पूर्व आक्रमण किया। उस समय भारत छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। सिकंदर खैबर दर्रे से होकर भारत पहुंचा और उसने पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अंभी पर किया। अंभी ने कुछ समय बाद सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस समय तक्षशिला में आचार्य चाणक्य एक शिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे थे। उनसे ये विदेशी हमले देखे नहीं गए और सिकंदर से लड़ने के लिए बहुत से राजाओं के पास गए, लेकिन आपसी मतभेद के कारण कोई भी सिकंदर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। उस समय भारत में मगध में राजा घनानंद का राज था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। चाणक्य घनानंद के पास भी गया, लेकिन घनानंद ने चाणक्य का अपमान कर उसे महल से निकाल दिया। जिसका परिणाम आगे चलकर घनानंद को उठाना पड़ा। तक्षशिला के राजा अंभी को हराकर सिकंदर झेलम और चिनाब नदी की ओर बढ़ा और नदी के किनारे ही सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में पोरस की हार हुई। झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पौरस के बीच भयानक युद्ध की शुरुआत हुई। पहले दिन पौरस ने सिकंदर का डटकर सामना किया, लेकिन मौसम खराब होने के कारण पौरस की सेना कमजोर पड़ने लगी। ये देखकर सिकंदर ने पौरस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन पौरस ने हार नहीं मानी और युद्ध करते रहे। पौरस जानते थे कि उनकी हार निश्चित है, लेकिन उन्हें किसी की अधीनता स्वीकार नहीं थी। सिकंदर ने पौरस को पराजित तो कर दिया, लेकिन उसका भी बड़ा नुकसान हुआ। सिकंदर ने पौरस के साथ मित्रता कर ली और उससे जीता राज्य वापस कर दिया और सेना के साथ वापस लौटने का फैसला किया। लौटते वक्त बेबीलोन में सिकंदर की सांप के काटने से मौत हो गई।

 

 

Wednesday, 21 July 2021

दूसरे विश्वयुद्ध के 76 सालों में सामरिक ताकत बने जापान, इटली और जर्मनी

-दुनिया में पांच देशों के पास वीटो पॉवर है-अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन, अब विश्वयुद्ध में हारे जापान, इटली और जर्मनी फिर बिने दुनिया के लिए खतरा

 

-जापान के पास 61, जर्मनी के पास 35 और इटली के पास 17 परमाणु बम, आठ दशक में इन देशों ने जुटाई ताकत और विश्व को चुनौती देने को तैयार

 

 

डीके पुरोहित की जापान. इटली. जर्मनी से विशेष रिपोर्ट

 

दूसरे विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस की विजय के बाद जापान, इटली और जर्मनी ने अपनी सामरिक ताकत बढ़ा ली है। 76 साल बाद फिर से इन देशों ने हर क्षेत्र में अपने को मजबूत कर दिया है। वो भी तब जब वीटो पॉवर अमेरिका, रूस, ब्रिटेल, फ्रांस और चीन के पास है। इससे समझा जा सकता है कि इन देशों के मन में कितनी खुंदस है। हालात यह है कि जर्मनी के पास 35, जापान के पास 61 और इटली के पास 17 परमाणु बम है। 6 अगस्त को 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945  को नागासाकी पर हमले के बाद जापान ने अमेरिका के आगे समर्पण तो कर दिया, मगर इन 76 सालों में वो नई सामरिक ताकत बनकर उभरा है। जापानी लोग आज भी वे हमला नहीं भूले हैं। एक समय था जब जापान आर्थिक और सामरिक ताकत हुआ करता था। अमेरिका द्वारा परमाणु हमला करने के बाद जापान ने फिर अपने को ताकत बनाने में कोई कसर नहीं रखी। जापान यह कभी नहीं भूल पाएगा कि उसने अमेरिका के आगे समर्पण किया था। जापान के राष्ट्रपति शिंजो आबे ने जापान को फिर से धुरी राष्ट्र की तरह स्थापित किया है। थल, जल और हवाई ताकत में जापान इतना आगे बढ़ चुका है कि वह मित्र राष्ट्रों के लिए खतरा बन सकता है। इन 76 सालों में जापान फिर से ताकतवर बनकर उभरा है।

 

जापानी सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि जापान अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। हम 1945 की त्रासदी नहीं भूले हैं। हम टूटे जरूर मगर आज भी ताकत हैं। अमेरिका यह न समझें कि हमें 1945 की तरह मसल देगा। हमारी टेक्नोलॉजी दुनिया से बेहतर है। अब अमेरिका से मुकाबला करने के लिए हम आर-पार की लड़ाई लड़ सकते हैं। खुद राष्ट्रपति आबे ने अपने मंसूबे जाहिर कर दिए हैं। पिछले दिनों हुई सीक्रेट मीटिंग में जापान ने अपने सामरिक ताकत को परखा। परमाणु हमले की नौबत आने पर जापान अब पीछे नहीं हटने वाला। जापान ने जमीनी जंग के लिए अपने को तैयार किया है तो हवाई सैन्य ताकत भी बढ़ा चुका है। जापान अपने देश से अमेरिका पर परमाणु हमला करने के लिए कई विमान बना चुका है। हालांकि युद्ध की आशंका फिलहाल नहीं है, लेकिन जापान अब मजबूत राष्ट्र बन चुका है।

 

एक नजर दूसरे विश्वयुद्ध पर : जानिए मित्र राष्ट्रों व धुरी राष्ट्रों के बारे में :

 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद की तस्वीर देखें तो मित्र राष्ट्रों से जो देश जुड़े हुए थे, वे विश्व की ताकत बन चुके हैं। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस के पास वीटो पॉवर है। जबकि धुरी राष्ट्रों जर्मनी, जापान और इटली के हालात खराब हो गए थे। दूसरे विश्व युद्ध के समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था और यहां के राजाओं ने अंग्रेजों की युद्ध में मदद की थी। केवल सुभाषचंद्र बोस ऐसे क्रांतिकारी थे जो जर्मनी के हिटलर से मिलकर अंग्रेजों को भारत से भगाना चाहते थे। वो समय ऐसा था जब ब्रिटेन लगभग अजेय था। आज भी ब्रिटेन के पास वीटो पॉवर है। चीन तब सामरिक ताकत नहीं था। जापान ने चीन पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद करने की ठान ली थी। लेकिन चीन की मदद में मित्र राष्ट्र आगे आए। जो इन मित्र राष्ट्रों से जुड़े थे, यानी ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन अब दुनिया की सशक्त शक्तियां बन चुके हैं। लेकिन यही खुंदस जापान आज भी लेकर बैठा है और 76 साल में दुनिया को चुनौती देने की स्थिति में है। 1945 में जब हिरोहितो ने अमेरिका के आगे समर्पण किया था, तब उन्हें भी इस बात का एहसास नहीं था कि इन 76 सालों में जापान फिर से आर्थिक और सामरिक ताकत बनेगा।   

 

दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने चीन पर भी हमला किया था। दरअसल दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर 1939 से मानी गई है। जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। उसके बाद फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य खड़ा करने के लिए पोलैंड पर हमला बोल दिया। 1939 के अंत से 1941 की शुरुआत तक अभियान और संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छह पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर काबिज हो गया। फ्रांस की हार के बाद यूनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ्रीका की लड़ाइयां लंबी चली। इसमें अटलांटिक की लड़ाई शामिल थी। जून 1941 में यूरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया। दिसंबर 1941 को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया और इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशांत महासागर में यूरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशांत पर कब्जा बना लिया। सन 1942 में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई झड़पें हारा। यूरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनकाे स्तालिनग्राड में हार का मुंह देखना पड़ा। सन 1943 में जर्मनी पूर्वी यूरोप में कई झड़पें हारा। हटली पर मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया और अमेरिका ने प्रशांत महासागर में जीत दर्ज करनी शुरू कर दी। इसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चे पर सामरिक दृष्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन 1944 में जहां एक और पश्चिम मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा कब्जा किए हुए फ्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुई जमीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन 1945 के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर कब्जा कर लिया और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अंत 8 मई 1945 को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी सेना को शिकस्त दी और पश्चिम प्रशांत के कई द्वीपों पर अपना कब्जा जमा लिया। जब जापानी द्वीप समूह पर आक्रमण करने का समय करीब आया तो अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु बम गिरा दिए। 15 अगस्त 1945 को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। जापानी साम्राजय ने आत्मसमर्पण कर लिया।

 

अब जानिए जर्मनी के हालात : अब और तब : 35 परमाणु बमों से संपन्न :

 

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स हिटलर को पसंद करते हैं। कभी हिटलर ने दुनिया जीतने का ख्वाब देखा था। पिछले 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत बनकर उभरा है। जर्मनी के पास 35 परमाणु बम है। साथ ही हर तरह के आधुनिक हथियारों की शृंखला है। अगर हथियारों पर नजर डालें तो हर दृष्टि से जर्मनी ने तरक्की की है। उसकी जमीनी, जलीय और हवाई सेना बेजोड़ है। जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्रपति देश का नाममात्र का प्रधान होता है। वहां सरकार का प्रधान चांसलर ही होता है। चांसलर शॉल्त्स का मानना है कि अमेरिका को मात देने के लिए देश की सामरिक ताकत बढ़ानी होगी। इसी कड़ी में पिछले आठ दशक में जर्मनी के प्रधानों ने अपने को मजबूत किया है। हालांकि जर्मनी ताकत है, मगर शॉल्त्स सीधे तौर पर अमेरिका से दुश्मनी नहीं लेना चाहते। भविष्य में युद्ध हुआ तो जर्मनी अपने को साबित करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

 

इतिहास पर नजर डालें तो जर्मनी के एडोल्फ हिटलर 1923 में जर्मन सरकार को उखाड़ने के असफल प्रयास के बाद अंतत: 1933 में जर्मनी के कुलाधिपति बन गए।   

उन्होंने लोकतंत्र को खत्म कर वहां एक कट्‌टरपंथी, नस्लीय प्रेरित आंदोलन का समर्थन किया और उन्होंने जर्मनी को शक्तिशाली सैन्य ताकत बनाने का प्रयास किया। दूसरे विश्वयुद्ध में हार के साथ ही जर्मनी ने समर्पण कर दिया था। हिटलर की वजह से जर्मनी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। तानाशाह हिटलर हालांकि दुनिया को विजय नहीं कर पाया, मगर इन 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत बनकर उभरा है। जर्मनी ने टैक्नोलॉजी पर विशेष तौर पर फोकस किया है। जापान की ही तरह जर्मनी अपने को मजबूत बनाने में लगा रहा है। पांच शक्तिशाली राष्ट्रों में उसका नंबर नहीं है, लेकिन वह अपने इतिहास को भूलकर नई ताकत के रूप में अपने को स्थापित कर चुका है।

 

इटली : अब और तब : 17 परमाणु बमों की ताकत, कोरोना से जूझ रहा :

 

इटली के प्रधानमंत्री ज्यूसेप कोंटे इन दिनों कोरोना महामारी से देश को बचाने की जुगत में है। कोरोना से जितना नुकसान इटली को हुआ है, उससे और कोई देश होता तो कमर टूट जाती। लेकिन इटली खड़ा है। पिछले 76 साल में इटली ने सामरिक ताकत खूब बढ़ा ली है। वो दुनिया के शक्तिशाली देशों में शुमार हो चुका है। इटली के पास 17 परमाणु बम है। उसकी सेना हर दृष्टि से मजबूत है। हवाई हमलों में उसका कोई सानी नहीं है। यह वही इटली है जिसके मुसोलिनी फासीवादी ताकतों के समर्थक माने जाते हैं। मुसोलिनी ने 1935 में अबीसीनिया पर हमला किया। दूसरे विश्वयुद्ध का आगाज तभी से माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में हिटलर और मुसोलिनी का गठबंधन हो चुका था। जब दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो हिटलर और मुसोलिनी यूरोप में एक तरफ थे और दूसरी तरफ ब्रिटेन और फ्रांस थे। इसमें और भी शक्तियां आती गईं और पहले हिटलर की विजय हुई, फिर फासिस्टों की पराजय शुरू हुई। पराजयों के कारण 25 जुलाई 1943 को मुसोलिनी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वे हिरासत में ले लिए गए। सितंबर में ही हिटलर ने उन्हें छुड़ाया और उत्तर इटली में एक कठपुतली राजय के प्रधान के रूप में स्थापित किया। इसके बाद भी फासिस्ट हारते ही चले गए और 26 अप्रैल 1945 को मित्र सेनाएं इटली पहुंच गई। देश के गुप्त प्रतिरोधकारियों ने इनका साथ दिया। उसी दिन मुसोलिनी स्विट्जरलैंड भागने की चेष्टा करते हुए प्रतिरोधकारियों द्वारा पकड़ लिए गए और 26 अप्रैल 1945 को उन्हें मृत्युदंड दिया गया।

 

 

 

  

 

 

 

 

Friday, 14 May 2021

जिंजाल ग्रह सूरज की गर्मी को सोखेगा, पृथ्वी का जीवन खतरे में

डीके पुरोहित. जोधपुर


हमारी गैलेक्सी में एक और ग्रह है जिसका नाम जिंजाल ग्रह है, यहां रहने वाले लोग राक्षस की तरह है। उनके सिर पर सींग है और पहाड़ से भी बढ़कर आकार है। यहां के लोगों में सुपर पॉवर है, यह ग्रह पृथ्वी से काफी दूर है। पृथ्वी अपनी धुरी पर सूरज के चारों ओर 365 दिन में एक परिभ्रमण पूरा करती है और जिंजाल ग्रह अपनी धुरी पर 3650 दिन में एक परिभ्रमण पूरा करता है। यह ग्रह नूटेलो ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाता है। नूटेलो ग्रह में कार्बन डाई ऑक्साइड है। यही कार्बन डाई ऑक्साइड जिंजाल ग्रह के लोग ग्रहण करते हैं और यही गैस वापस छोड़ते हैं। यहां के लोग भोजन नहीं करते। यही गैस उन्हें जिंदा रखती है। जिंजाल ग्रह पृथ्वी का दुश्मन ग्रह है। यहां के लोग जल्द ही सूरज पर हमला करने वाले हैं। जिंजाल ग्रह के लोग सूरज की आग को सोखने की साजिश रच रहे हैं। यह कब होगा अभी कहना मुश्किल है। क्योंकि जिंजाल ग्रह के लोगों को सूरज तक आने में अभी कई साल लगेंगे। अगर जिंजाल ग्रह के लोग सूरज की गर्मी को सोख लेंगे तो पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ जाएगा।

डीके पुरोहित ने फ्यूचर में जाकर इस ग्रह की खोज की है। इस ग्रह पर पानी नहीं है। पानी की यहां जरूरत ही नहीं पड़ती। क्योंकि जिंजाल ग्रह के लोग कार्बन डाई ऑक्साइड ही ग्रहण करते हैं और यही गैस वापस छोड़ते हैं। जिंजाल ग्रह पर रोशनी नहीं है। लेकिन यहां के लोगों के शरीर जुगनू की तरह प्रकाशवान है। इन्हें ऐसी दिव्य दृष्टि है कि वे अंधेरे में भी सभी कार्य कर सकते हैं और उन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती। यहां का विज्ञान काफी एडवांस है। ये लोग पहाड़ जैसे हैं और पांच सौ लोग मिलकर पूरा का पूरा ग्रह उठा सकते हैं। पृथ्वी को उठाने में उन्हें चंद सैकंड भी नहीं लगेंगे। लेकिन इस ग्रह के लोगों ने अभी तक पृथ्वी और सूरज का नाम ही सुन रखा है। उनके पास इतनी ही जानकारी है कि सूरज आग का गोला है और पृथ्वी पर उसकी रोशनी पड़ती है। चंद्रमा के बारे में भी केवल सुन ही रखा है। यहां के लोग सूरज, पृथ्वी और चंद्रमा की खोज में लगे हैं। अगर वे सूरज तक पहुंच गए और सूरज की आग को सोख लिया तो पृथ्वी पर वैसे ही संकट हो जाएगा। यहां त्राही-त्राही मच जाएगी। अगर इस ग्रह के लोग चांद तक पहुंच गए तो वे इसे उठाकर दूर गैलेक्सी में फेंक सकते हैं। पृथ्वी को भी वे आसानी से उठा कर सुदूर फेंक सकते हैं। फिलहाल डीके पुरोहित के पास इतनी ही जानकारी है। डीके पुरोहित 13 मई को ही फ्यूचर से लौटा है। गौरतलब है कि डीके पुरोहित के पास अथाह शक्तियां है। वह गायब हो सकता है। भूत, भविष्य वर्तमान में जा सकता है। रूप बदल सकता है। किसी की भी आवाज निकाल सकता है। किसी की लिखावट भी लिख सकता है। यहां तक की लोगों के विचार भी बदल सकता है। उसके जैसे कई रूप हैं। इतना सबकुछ होते हुए भी डीके पुरोहित खुद अपनी मर्जी से इन शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकता। क्योंकि डीके पुरोहित की ज्ञानेंद्रियों का संचालन हिली ग्रह से होता है। फिलहाल हिली ग्रह ने डीके पुरोहित की फ्यूचर से जुड़ी जानकारी उसके मस्तिष्क से मिटा दी है। लेकिन जो धुंधला-धुंधला याद था वो यहां उल्लेखित कर दिया है।