-दुनिया में पांच देशों के पास वीटो पॉवर है-अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन, अब विश्वयुद्ध में हारे जापान, इटली और जर्मनी फिर बिने दुनिया के लिए खतरा
-जापान के पास 61, जर्मनी के पास 35 और इटली के पास 17
परमाणु बम, आठ दशक में इन देशों ने जुटाई ताकत और विश्व को चुनौती देने को तैयार
डीके पुरोहित की
जापान. इटली. जर्मनी से विशेष रिपोर्ट
दूसरे विश्व युद्ध
में मित्र राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस की विजय के बाद जापान, इटली और जर्मनी
ने अपनी सामरिक ताकत बढ़ा ली है। 76 साल बाद फिर से इन देशों ने हर क्षेत्र में
अपने को मजबूत कर दिया है। वो भी तब जब वीटो पॉवर अमेरिका, रूस, ब्रिटेल, फ्रांस
और चीन के पास है। इससे समझा जा सकता है कि इन देशों के मन में कितनी खुंदस है। हालात
यह है कि जर्मनी के पास 35, जापान के पास 61 और इटली के पास 17 परमाणु बम है। 6
अगस्त को 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर हमले के बाद जापान ने अमेरिका के
आगे समर्पण तो कर दिया, मगर इन 76 सालों में वो नई सामरिक ताकत बनकर उभरा है। जापानी
लोग आज भी वे हमला नहीं भूले हैं। एक समय था जब जापान आर्थिक और सामरिक ताकत हुआ
करता था। अमेरिका द्वारा परमाणु हमला करने के बाद जापान ने फिर अपने को ताकत बनाने
में कोई कसर नहीं रखी। जापान यह कभी नहीं भूल पाएगा कि उसने अमेरिका के आगे समर्पण
किया था। जापान के राष्ट्रपति शिंजो आबे ने जापान को फिर से धुरी राष्ट्र की तरह
स्थापित किया है। थल, जल और हवाई ताकत में जापान इतना आगे बढ़ चुका है कि वह मित्र
राष्ट्रों के लिए खतरा बन सकता है। इन 76 सालों में जापान फिर से ताकतवर बनकर उभरा
है।
जापानी सैन्य
विशेषज्ञों का कहना है कि जापान अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। हम 1945 की त्रासदी
नहीं भूले हैं। हम टूटे जरूर मगर आज भी ताकत हैं। अमेरिका यह न समझें कि हमें 1945
की तरह मसल देगा। हमारी टेक्नोलॉजी दुनिया से बेहतर है। अब अमेरिका से मुकाबला
करने के लिए हम आर-पार की लड़ाई लड़ सकते हैं। खुद राष्ट्रपति आबे ने अपने मंसूबे
जाहिर कर दिए हैं। पिछले दिनों हुई सीक्रेट मीटिंग में जापान ने अपने सामरिक ताकत
को परखा। परमाणु हमले की नौबत आने पर जापान अब पीछे नहीं हटने वाला। जापान ने
जमीनी जंग के लिए अपने को तैयार किया है तो हवाई सैन्य ताकत भी बढ़ा चुका है। जापान
अपने देश से अमेरिका पर परमाणु हमला करने के लिए कई विमान बना चुका है। हालांकि
युद्ध की आशंका फिलहाल नहीं है, लेकिन जापान अब मजबूत राष्ट्र बन चुका है।
एक नजर दूसरे विश्वयुद्ध पर : जानिए मित्र राष्ट्रों व
धुरी राष्ट्रों के बारे में :
दूसरे विश्व युद्ध
के बाद की तस्वीर देखें तो मित्र राष्ट्रों से जो देश जुड़े हुए थे, वे विश्व की
ताकत बन चुके हैं। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस के पास वीटो पॉवर है। जबकि
धुरी राष्ट्रों जर्मनी, जापान और इटली के हालात खराब हो गए थे। दूसरे विश्व युद्ध
के समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था और यहां के राजाओं ने अंग्रेजों की
युद्ध में मदद की थी। केवल सुभाषचंद्र बोस ऐसे क्रांतिकारी थे जो जर्मनी के हिटलर
से मिलकर अंग्रेजों को भारत से भगाना चाहते थे। वो समय ऐसा था जब ब्रिटेन लगभग
अजेय था। आज भी ब्रिटेन के पास वीटो पॉवर है। चीन तब सामरिक ताकत नहीं था। जापान
ने चीन पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद करने की ठान ली थी। लेकिन चीन की मदद में मित्र
राष्ट्र आगे आए। जो इन मित्र राष्ट्रों से जुड़े थे, यानी ब्रिटेन, अमेरिका, रूस,
फ्रांस और चीन अब दुनिया की सशक्त शक्तियां बन चुके हैं। लेकिन यही खुंदस जापान आज
भी लेकर बैठा है और 76 साल में दुनिया को चुनौती देने की स्थिति में है। 1945 में
जब हिरोहितो ने अमेरिका के आगे समर्पण किया था, तब उन्हें भी इस बात का एहसास नहीं
था कि इन 76 सालों में जापान फिर से आर्थिक और सामरिक ताकत बनेगा।
दूसरे विश्व युद्ध
में जापान ने चीन पर भी हमला किया था। दरअसल दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर
1939 से मानी गई है। जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। उसके बाद फ्रांस ने
जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका
अनुमोदन किया। जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा
साम्राज्य खड़ा करने के लिए पोलैंड पर हमला बोल दिया। 1939 के अंत से 1941 की
शुरुआत तक अभियान और संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग
या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत
सोवियत रूस अपने छह पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर काबिज हो गया।
फ्रांस की हार के बाद यूनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों
से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ्रीका की लड़ाइयां लंबी चली। इसमें अटलांटिक
की लड़ाई शामिल थी। जून 1941 में यूरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल
दिया। दिसंबर 1941 को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ से इस युद्ध में
कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया और इंडोचायना में अपना प्रभुत्व
स्थापित करने का था। उसने प्रशांत महासागर में यूरोपीय देशों के आधिपत्य वाले
क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही
पश्चिमी प्रशांत पर कब्जा बना लिया। सन 1942 में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब
लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई झड़पें हारा। यूरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी
अफ्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनकाे स्तालिनग्राड में हार का मुंह
देखना पड़ा। सन 1943 में जर्मनी पूर्वी यूरोप में कई झड़पें हारा। हटली पर मित्र
राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया और अमेरिका ने प्रशांत महासागर में जीत दर्ज करनी
शुरू कर दी। इसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चे पर सामरिक दृष्टि से पीछे
हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन 1944 में जहां एक और पश्चिम मित्र
देशों ने जर्मनी द्वारा कब्जा किए हुए फ्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से
सोवियत संघ ने अपनी खोई हुई जमीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी
राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन 1945 के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं
ने बर्लिन पर कब्जा कर लिया और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अंत 8 मई 1945 को तब
हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका
ने कई जगहों पर जापानी सेना को शिकस्त दी और पश्चिम प्रशांत के कई द्वीपों पर अपना
कब्जा जमा लिया। जब जापानी द्वीप समूह पर आक्रमण करने का समय करीब आया तो अमेरिका
ने जापान पर दो परमाणु बम गिरा दिए। 15 अगस्त 1945 को एशिया में भी दूसरा
विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। जापानी साम्राजय ने आत्मसमर्पण कर लिया।
अब जानिए जर्मनी के हालात : अब और तब : 35 परमाणु बमों से
संपन्न :
जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स हिटलर को पसंद करते हैं। कभी
हिटलर ने दुनिया जीतने का ख्वाब देखा था। पिछले 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत
बनकर उभरा है। जर्मनी के पास 35 परमाणु बम है। साथ ही हर तरह के आधुनिक हथियारों
की शृंखला है। अगर हथियारों पर नजर डालें तो हर दृष्टि से जर्मनी ने तरक्की की है।
उसकी जमीनी, जलीय और हवाई सेना बेजोड़ है। जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है, जिसमें
राष्ट्रपति देश का नाममात्र का प्रधान होता है। वहां सरकार का प्रधान चांसलर ही
होता है। चांसलर शॉल्त्स का मानना है कि अमेरिका को मात देने के लिए देश की सामरिक
ताकत बढ़ानी होगी। इसी कड़ी में पिछले आठ दशक में जर्मनी के प्रधानों ने अपने को
मजबूत किया है। हालांकि जर्मनी ताकत है, मगर शॉल्त्स सीधे तौर पर अमेरिका से
दुश्मनी नहीं लेना चाहते। भविष्य में युद्ध हुआ तो जर्मनी अपने को साबित करने के
लिए पूरी तरह तैयार है।
इतिहास पर नजर डालें तो जर्मनी के एडोल्फ हिटलर 1923 में
जर्मन सरकार को उखाड़ने के असफल प्रयास के बाद अंतत: 1933 में जर्मनी के कुलाधिपति
बन गए।
उन्होंने लोकतंत्र को खत्म कर वहां एक कट्टरपंथी, नस्लीय
प्रेरित आंदोलन का समर्थन किया और उन्होंने जर्मनी को शक्तिशाली सैन्य ताकत बनाने
का प्रयास किया। दूसरे विश्वयुद्ध में हार के साथ ही जर्मनी ने समर्पण कर दिया था।
हिटलर की वजह से जर्मनी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। तानाशाह हिटलर हालांकि
दुनिया को विजय नहीं कर पाया, मगर इन 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत बनकर उभरा
है। जर्मनी ने टैक्नोलॉजी पर विशेष तौर पर फोकस किया है। जापान की ही तरह जर्मनी
अपने को मजबूत बनाने में लगा रहा है। पांच शक्तिशाली राष्ट्रों में उसका नंबर नहीं
है, लेकिन वह अपने इतिहास को भूलकर नई ताकत के रूप में अपने को स्थापित कर चुका
है।
इटली : अब और तब :
17 परमाणु बमों की ताकत, कोरोना से जूझ रहा :
इटली के
प्रधानमंत्री ज्यूसेप कोंटे इन दिनों कोरोना महामारी से देश को बचाने की जुगत में
है। कोरोना से जितना नुकसान इटली को हुआ है, उससे और कोई देश होता तो कमर टूट
जाती। लेकिन इटली खड़ा है। पिछले 76 साल में इटली ने सामरिक ताकत खूब बढ़ा ली है। वो
दुनिया के शक्तिशाली देशों में शुमार हो चुका है। इटली के पास 17 परमाणु बम है।
उसकी सेना हर दृष्टि से मजबूत है। हवाई हमलों में उसका कोई सानी नहीं है। यह वही
इटली है जिसके मुसोलिनी फासीवादी ताकतों के समर्थक माने जाते हैं। मुसोलिनी ने
1935 में अबीसीनिया पर हमला किया। दूसरे विश्वयुद्ध का आगाज तभी से माना जाता है।
अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में हिटलर और मुसोलिनी का गठबंधन हो चुका था। जब दूसरा
विश्वयुद्ध छिड़ा तो हिटलर और मुसोलिनी यूरोप में एक तरफ थे और दूसरी तरफ ब्रिटेन
और फ्रांस थे। इसमें और भी शक्तियां आती गईं और पहले हिटलर की विजय हुई, फिर
फासिस्टों की पराजय शुरू हुई। पराजयों के कारण 25 जुलाई 1943 को मुसोलिनी को
प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वे हिरासत में ले लिए गए। सितंबर में ही
हिटलर ने उन्हें छुड़ाया और उत्तर इटली में एक कठपुतली राजय के प्रधान के रूप में
स्थापित किया। इसके बाद भी फासिस्ट हारते ही चले गए और 26 अप्रैल 1945 को मित्र
सेनाएं इटली पहुंच गई। देश के गुप्त प्रतिरोधकारियों ने इनका साथ दिया। उसी दिन
मुसोलिनी स्विट्जरलैंड भागने की चेष्टा करते हुए प्रतिरोधकारियों द्वारा पकड़ लिए
गए और 26 अप्रैल 1945 को उन्हें मृत्युदंड दिया गया।
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