गीतः डी.के. पुरोहित
आंसू आते तो दर्द
धारा में बह जाता
शब्दों को गले लगाती
तो दर्द गीतों में ढल जाता
अपने हिस्से में तन्हाई है
विरह है, वेदना है, रुसवाई है
वो क्या चले जहां से
इधर कुआं, उधर खाई है
अकेला मन मजबूर
जिम्मेदारी छोड़ कहां जाता
आंसू आते तो दर्द
धारा में बह जाता।
कल से मैं अनजान हूं
हालातों से परेशान हूं
सब सहना होगा हमें
उनकी परछाई का दामन हूं
खामोश है रिसते रिश्ते
मन किससे बतियाता
आंसू आते तो दर्द
धारा में बह जाता।
लब पर हंसी खो गई
आंसू पत्थर बने, रोशनी खो गई
किस से करें अब शिकवा
उनके जाने से अकेली हो गई
जीवन लंबा है, गहरा है
तू ही सत रखना मेरे दाता
आंसू आते तो दर्द
धारा में बह जाता।
मौत आएगी, सबको आएगी
किसी को जल्दी या देर आएगी
जब दरकती है कहीं जिंदगी
सोचा न था ऐसे रुलाएगी
कैसी परीक्षाएं अब देनी होंगी
मौका भी न देता विधाता
आंसू आते तो दर्द
धारा में बह जाता।
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