गीत: डी.के. पुरोहित
शाम के सिरहाने
सुबह का डेरा है
थोड़ा इंतजार कर
पल-भर का अंधेरा है
आशा का दामन थाम
भरोसा वक्त का कर
परिस्थितियां विपरीत हो
मन से निकाल दे डर
मंजिल मिलेगी जरूर
समय अब तेरा है
थोड़ा इंतजार कर
पल-भर का अंधेरा है
दर्द तो जीवन का हिस्सा है
इसे स्वीकार कर
संकट आते-जाते रहते
आंसू का प्रतिकार कर
संभल-संभल कर चल
सूरज पर बादल का घेरा है
थोड़ा इंतजार कर
पल-भर का अंधेरा है
रुकती नहीं नदी की धार
पत्थरों के आने से
जीवन नहीं ठहरता
किसी के आने-जाने से
अमावस है, बेशक चांद नहीं
गगन में तारों का बसेरा है
थोड़ा इंतजार कर
पल-भर का अंधेरा है।
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