Wednesday, 25 November 2015

publish on 24 november DAINIK BHASKAR


Tuesday, 24 November 2015

मीडिया माहौल बिगाड़ रहा है, उसे हर दिन बिकाऊ मुद्दा चाहिए


-देश में असहिष्णुता का माहौल है या नहीं, इस पर बहस निराधार है, क्योंकि यह मीडिया का उठाया मुद्दा है, मीडिया में वह हर चीज बिकाऊ होती है जिसे तुरंत प्रतिक्रिया मिले

-डीके पुरोहित-

देश में माहौल असहिष्णुता का है या नहीं इस पर बहस निराधार है। यह मीडिया की बनाई स्थिति है। मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझ नहीं रहा है। अगर मीडिया का यही रवैया रहा तो देश में एक बार फिर 1947 का माहौल हो सकता है। प्रसिद्ध सिने अभिनेता आमिर खान का बयान कि-माहौल देख मेरी पत्नी देश छोड़ने की बात कहने लगी थी, पर देश में हाहाकार मचा हुआ है। इस बयान को मीडिया ने अनावश्यक तूल दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि लोगों के बीच में आमिर नायक और खलनायक बन गए। हर कोई अपनी प्रतिक्रिया दे रहा है। कोई आमिर की खिलाफत कर रहा है तो कोई बचाव।

भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज ने ताजा बयान में कहा, ‘अगर आप चर्चित हैं तो एक बयान देने से आपको लाभ हो सकता है। कवरेज मिल सकती है। लेकिन भारत के नाम पर इस तरह के बयान दाग लगा सकते हैं। यह अतुल्य भारत है। इस पर दाग लगाने का काम न करो।'' उन्होंने कहा, ‘आज सीरिया, तुर्की, जॉर्डन, ईरान, इराक में क्या हालात हैं? हिंदुस्तान में पूरे अरब देशों से ज्यादा मुस्लिम हैं और उन्हें बराबर का हक मिला हुआ है। ‘जिस तरह से राहुल गांधी बयान दे रहे हैं उससे साफ है कि यह कांग्रेस की देश को बदनाम करने की साजिश है। इस देश को छोड़कर कहां जाइएगा? जहां जाइएगा इनटॉलरेंस  पाइएगा। भारत के मुस्लिमों के लिए हिंदुस्तान से अच्छा देश और हिंदुओं से अच्छा पड़ोसी नहीं मिलेगा।'

केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘सहिष्णुता इस देश के डीएनए में है। हम आमिर को कहीं नहीं जाने देंगे। वहीं केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, ‘ऐसे बयान से भारत की छवि पर धब्बा लगता है। उधर, सपा नेता आजम खान ने कहा, ‘यह देखिए कि देश छोड़ने की बात कौन कह रहा है। किरण कह रहीं हैं जो हिंदू हैं। उन्हें भी डर लग रहा है। आमिर खान को लिखी चिट्ठी में आजम ने कहा है, ‘बंटवारे के समय भारत में रुकने वाले मुसलमानों को कौम का गद्दार कहा गया। अब हिंदुस्तान में रहने वालों से भी यही सुनने को मिल रहा है। आजम ने आमिर से अपील की है कि वे लोगों के विरोध और ऐतराज के बाद भी समाज को सही रास्ता दिखाते रहें। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि आमिर खान का कहा एक-एक शब्द सही है। इस मुद्दे पर बोलने के लिए मैं उनकी प्रशंसा करता हूं।

वहीं, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘मोदी जी और सरकार से सवाल पूछने वालों को गैरराष्ट्रवादी और सरकार विरोधी या प्रेरित कहा जाता है। इससे बेहतर हो कि सरकार उन लोगों से बात करे। जाने कि किस बात से वे व्यथित हैं। भारत में समस्याओं को दूर करने का यही तरीका है।'

ये बयान ऐसे दौर में सामने आए हैं जब आमिर खान के बहाने मीडिया को बड़ा मुद्दा मिल गया है। कुछ दिन बहस होगी। बयान आएंगे। फिर बहस छिड़ेगी।

और मौजूदा माहौल में देश की हकीकत:

गुजरात में हत्याओं का जो दौर चला, उसके बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की देश में जो छवि बनी, वह जग जाहिर है। यह बात अलग है कि उन्हें कोर्ट से क्लीन चिट मिल गई। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। मोदी के नाम का मीडिया ने हौवा बनाकर देश में एक अलग माहौल बनाया। मोदी मोदी का नाद सुनने को मिला। मोदी को कोई विकास का महापुरुष बताने लगा तो कोई हिंदू तारनहार नेता। इस बीच मोदी की महत्वाकांक्षा को पंख लगे। देश में मोदी-मोदी की लहर चली। ऐसी लहर जो हिंदुस्तान में इससे पहले कभी नहीं चली। वही मोदी आज क्या कर रहे हैं? सब जानते हैं। लेकिन इस बीच देश में माहौल बिगाड़ने का षड़यंत्र चल रहा है। जिसको मीडिया हवा दे रहा है। लोग उटपटांग बयान दे रहे हैं, मीडिया उसे तोड़मोड़ कर या राई का पहाड़ बना कर सामने ला रहा है। 

आमिर खान का बयान ऐसे समय में सामने आया है जब देश में फिर लोग अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। मोदी के राज में नगर निगम का बाबू से लेकर कलेक्टर-कमिश्नर-पुलिस के आला अधिकारी अपने को खुला सांड बनाकर घूम रहे हैं। आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। जिस भ्रष्टाचार को मोदी ने मुद्दा बनाया। जिस यौन शोषण को रोकने की डींगें हांकी, उसका क्या हुई, दिल्ली सहित देश भर में कन्याओं और महिलाओं के साथ दुराचार हो रहा है। मोदी को विदेशों में जाने की फुरसत हैं, मगर देश की स्थिति सुधारने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। ऐसे ही माहौल में मोदी जैसे लोग सत्ता में आते हैं। इस देश की मीडिया पर पूंजीपति घरानों का कब्जा है। पूंजीपति ही इस देश को चला रहे हैं। राजनीति, नाैकरशाही, पूंजीवाद और दबाव समूह अपनी दादागिरि चला रहे हैं। कोई इस मुद्दे पर नहीं बोलता? बोले भी कैसे-मीडिया अपनी राग अलग ही हांकता है। मीडिया ने तय कर लिया है कि वह जो छापेगा, वही शास्वत सत्य है। मीडिया मुद्दों को हौवा बनाकर देश की स्थिति को खराब कर रहा है। 

मेरे एक मित्र हैं। कम्यूनिस्ट। उसका कहना है कि हम कांग्रेस के साथ इसलिए आते हैं, क्योंकि भाजपा के राज में हमारी भावनाओं की हत्या की जा सकती है। हमारे साथ भी अत्याचार हो सकता है। भाजपा से जान का खतरा बना रहता है। ऐसे में कांग्रेस के साथ जाते हैं। यह शब्द कहने वाला आकाशवाणी का जिम्मेदार उद्घोषक है और प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। यह पीड़ा हिन्दुस्तान के कई साहित्यकारों की है।

देश के विकास में कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आजादी के इतने सालों में क्या हिंदुस्तान आगे नहीं बढ़ा। आज देश की पश्चिमी सीमा तक ट्रेन पहुंची है। जिला हवाई सेवा से जुड़ गया है। देश के चारों कोनों में तेजी से विकास हुआ है। विकास की कहानी जब लिखी जाएगी तो कांग्रेस की अनदेखी नहीं की जा सकती। लेकिन भाजपा ने सांप्रदायिक और अनावश्यक मुद्दों को उठाकर देश की जनता को भ्रमित कर सत्ता हथियाई है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा ने भी यूटर्न लिया। अन्य दलों ने भी ऐसे बाण छोड़े, जिनका कोई तोड़ नहीं है। लेकिन भाजपा को जब हर ओर हताशा हाथ लगती है तो देश में सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दे देती है। देश की जनता जानती है, यह सब सतही है। लेकिन जब हवा बनती है तो जनता भ्रमित हो जाती है। हम जिस जिले में रहते हैं, उसके पड़ोस में बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं। वे हमारे परिवार का हिस्सा है। देश में कैसे भी हालात हो, हम प्रेम से रहते हैं। मुसलमान इस देश की शान है। इनकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

इस देश की आजादी में मुसलमानों का भी बड़ा योगदान रहा है। हिंदुस्तान की बात करेंगे तो मुसलमानों को भी साथ लेकर चलना होगा। लेकिन देश की राजनीति में अपने स्वार्थ की खातिर मुसलमानों को डरा-धमकाकर रखा जा रहा है। इन दिनों देश का माहौल कैसा है? बात इसी पर करते हैं। माहौल बिगाड़ा जा रहा है। इसका फायदा किसे हैं, उन नेताओं को जो अपनी रोटियां सेंकना चाहते हैं। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिससे तनाव बढ़े। कोई छींटे नहीं डाल रहा। बल्कि आग को हवा दे रहा है। अखबारों को विज्ञापन से मतलब है। देश के माहौल को लेकर जिम्मेदारी से मीडिया बच नहीं सकता। देश में अधिक स्थानों पर बीजेपी का शासन है। ऐसे में मीडिया भी अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है। एक पंक्ति देश में आग लगा सकती है। ऐसे में मीडिया को विवाद से बचना होगा। 

लेकिन चर्चा में रहने के लिए ऐसे मुद्दों को हवा दी जाती है। इस समय देश में अराजगता का माहौल है। मोदी बोल नहीं रहे हैं, लेकिन वे मुद्दों को भुनाना जानते हैं। मोदी ने अभी ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे उनकी सराहना की जाए। पूंजीपतियों ने मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाया और मोदी पूंजीपतियों को उपकृत कर रहे हैं। अगर विरोध करते हैं तो दूसरे मुद्दे उठा कर माहौल बिगाड़ देते हैं। गौरतलब है कि इस देश की मीडिया पर पूंजीपतियों का कब्जा है। सवर्ण जाति के लोग ही अधिकतर संपादक और संवाददाता है। वे अपने मालिकों को खुश करने के लिए उनके मुताबिक खबरें देते हैं। मीडिया का मतलब पूंजीवादी ताकतें हैं। ये वही ताकते हैं जो आजादी के बाद से अपना दांव चलती आई है, लेकिन इस देश की जनता ने कभी उसका साथ नहीं दिया। लेकिन लंबे वैचारिक युद्ध के बाद कांग्रेस को धक्का पहुंचाने में मीडिया का बड़ा रोल रहा है। मीडिया ने ही कांग्रेस को खलनायक और मोदी को नायक बनाया। मीडिया कब किसको क्या बना दे, कहा नहीं जा सकता। हम मीडिया से जिम्मेदार होने की अपेक्षा ही कर सकते हैं, आखिर पूंजीवादी शक्तियों के इशारे पर कब तक मीडिया चलेगा। क्या स्वतंत्र कलम चलेगी, या यूं ही एक विचारधारा देश पर थौंपी जाएगी।


Tuesday, 3 November 2015

मोदी राज में भय और असुरक्षा का माहौल


-विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और सहयोगी संगठन हुए बेलगाम, जुबानी हमलों के साथ ही अराजकता की स्थिति, प्रधानमंत्री विदेश यात्राओं में व्यस्त, आम आदमी दो जून की रोटी के लिए कर रहा है संघर्ष
-डीके पुरोहित-

विकास के सपने
दिखा कर चोट करना कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीखें। देश में भय और आक्रोश फैलाने वाला वातावरण हो गया है। मोदी आम आदमी का विश्वास नहीं जीत पाए। चुनाव से पहले जिस तरह आम आदमी ने मोदी को सिर-आंखों पर बिठाया, उसी आम आदमी के सीने में मोदी ने खंजर खोंप दिया है। हर दिन चुनौती लेकर आ रहा है। लोग सुबह उठते हैं और शाम को सुरक्षित घर आते हैं तब परिवार को सुकून मिलता है। हर तरफ अराजकता का राज है। मोदी विदेश यात्राओं में व्यस्त है। देश का विदेशों में नाम रोशन करने के नाम पर खुद दौरों में व्यस्त है। इधर नौकरशाही बेलगाम हो गई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और अन्य संगठन खुल्ले सांड की तरह हो गए हैं। कभी जुबानी हमला हो रहा है तो कभी गरीब को पीड़ा पहुंचाई जा रही है।

 
मोदी राज में मंत्री और सांसद आए दिन ऐसे बयान देते हैं, जिससे अल्पसंख्यकों ने उनका बुरा कर दिया हो। अल्पसंख्यकों में इतना भय है कि वे घर से बाहर निकलते हैं तो उन्हें भरोसा नहीं कि घर सही-सलामत लौटेंगे। मोदी ने गुजरात दंगाें में भले ही क्लीन चिट हासिल कर ली हो, मगर उनके माथे पर जो दाग लगा है, उसे वे नहीं धो पाए। अपनी तेज तरार राजनीति और आग उगलते भाषणों से मोदी ने देश की जनता को भ्रमित किया। कभी विकास की राह के सपने दिखाए तो कभी हिंदुत्व को आगे कर बाण छोड़े। चाय वाले ने जैसे गर्म-गर्म पानी लोगों की चमड़ी पर गिरा दिया। सोनिया गांधी ने कहा कि नीच राजनीति बंद हो और मोदी ने गलत व्याख्या करते हुए कहा कि वे नीच घराने के सही…ऐसी ही बातों को गलत अर्थ देते हुए अपनी विशिष्ट भाषण शैली से जनता को भ्रमित किया। मोदी इतने आक्रामक हुए कि भाजपा के शिखर पुरुष लालकृष्ण आडवाणी तक को चुप करा दिया। वे खून के आंसू पीकर रह गए। यह राजनीति नहीं आतंकी राजनीति है। हिंदुओं को यह सोचना चाहिए कि वे इस देश में शांति चाहते हैं या हर दिन किसी गरीब के चूल्हे पर हमला हो। हम अगर बड़ी संख्या में हैं तो हमें बड़प्पन भी दिखाना होगा। हमें यह सोचना ही होगा कि इस देश को हम सबने मिलकर आगे बढ़ाया है। हमे एक-दूसरे के आंसू पोंछने होंगे। कोई कमजोर है तो उसकी मदद करनी होगी। इस देश की परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारे संस्कार कभी इतने आक्रामक नहीं रहे। हमने सबको अपने यहां जगह दी। दिलों में बिठाया। नेपाल जैसे देश ने भी हिंदू राष्ट्र की बजाय धर्मनिरपेक्ष देश को पसंद किया। हमारा देश तो धर्मनिरपेक्ष देश की मिसाल है। हमने हमारे संविधान में सबको जीने का हक दिया। यहां गांधी, गौतम और महावीर ने अहिंसा का संदेश दिया। लेकिन हमारे नेता अगर हिंसा और आगजनी से सत्ता हथियाने का रास्ता अपनाया और हमने उनकी मदद की तो इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। मोदी जैसे नेता को हमें हावी नहीं होने देना है। जिसके मन में शासन के नाम पर धोखा भरा हो, उसका क्या भरोसा किया जाए। 


मोदी ने विकास की पैरवी की और अब तक कुछ नहीं किया। गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा, आतंक और हर तरफ अराजकता है। नारी सुरक्षित नहीं है। नाबालिगों के साथ संत और ब्रह्मचारी गलत काम कर रहे हैं। देश में ऐसा माहौल जन्म ले चुका है, जिसमें हिंदुत्व पर गर्व करने की बजाय घमंड किया जा रहा है। हिंदू होकर हमें सहिष्णुता कभी नहीं भूलनी होगी। अल्पसंख्यकों को हमें साथ लेकर चलना होगा। हमारे पड़ोसी अगर अल्पसंख्यक है तो उन्हें जीने का हक होना ही चाहिए। 


इस देश को रहीम और रसखान ने सींचा है तो कबीर जैसे क्रांतिकारी ने हिंदु-मुसलमान दोनों को नई राह दिखाई है। साई बाबा ने हमें जीने का रास्ता दिखाया। यहां गाय को हिंदु भी पूजते हैं और मुसलमान भी पालते हैं। इस देश को हमें बनाना है। हमने हमेशा सचाई का साथ दिया। मोदी रेडियो पर मन की बात करते हैं और अगले दिन फिर अपनी मनमानी पर उतर आते हैं। ऐसे दोहरे चरित्र से सावधान रहने की जरूरत है। मोदी देश का विकास करे न करे, हम भाइयों को आपस में लड़वा कर हमारा जीने का मकसद खत्म कर देंगे। 

Sunday, 1 November 2015

श्रमिकों से बोनस के नाम पर छलावा

-श्रम आयुक्त कार्यालय में इंस्पेक्टरों की कमी, बिना प्रमाणिकरण के फैक्ट्री संचालक बोनस के नाम पर करते हैं बंदरबांट, निरीक्षकों को भी मिलता है पिछले रास्ते दीपावली बोनस

-डीके पुरोहित-

दीपावली पर बोनस के नाम पर जोधपुर संभाग में श्रमिकों के साथ छलावा हो रहा है। फैक्ट्री संचालक और ठेकेदार श्रमिकों को पहली बात तो बोनस देते नहीं है। इसके बावजूद यदि बोनस की बात आती है तो उपहार स्वरूप बर्तन इत्यादि की बंदरबांट कर देते हैं। इन बर्तनों व उपकरणों की कीमत बोनस के बराबर बताकर श्रमिकों के साथ छल किया जा रहा है। कई फैक्ट्री संचालक व ठेकेदार श्रमिकों को बोनस के नाम पर परात, भगोला, टिफिन, गिलास, कटोरी और ऐसे ही आइटम देते हैं। इनको बाजार से डिस्काउंट व कम राशि में खरीदा जाता है। बैलेंस शीट में दिखाने के लिए इनका अधिक बिल बना लिया जाता है। बाद में श्रमिकों को बांटा जाता है। यूनियन में दबंग श्रमिकों को उनका चेहरा देखकर उपहार बांटा जा रहा है। ऐसा कई बरसों से हो रहा है। श्रमिक हर बार छला जा रहा है, लेकिन श्रम आयुक्त कार्यालय कोई कार्रवाई करने की बजाय खुद दीपावली मना लेता है।

नियमानुसार बोनस की राशि श्रम आयुक्त कार्यालय के इंस्पेक्टर की निगरानी या प्रमाण करने के बाद ही बांटा जाना चाहिए। जोधपुर संभाग में इंस्पेक्टरों की कमी है। ऐसे में ये इंस्पेक्टर सैकड़ों फैक्ट्रियों व ठेकेदारों के यहां जाकर बोनस का प्रमाणिकरण नहीं कर पाते। होता यह है कि फैक्ट्री मालिक, ठेकेदार व संचालक बोनस की राशि बांटने की बजाय गिफ्ट खरीद लेते हैं। कम राशि में गिफ्ट खरीदकर इसे अधिक राशि का दिखाकर बोनस के नाम पर खानापूर्ति कर दी जाती है। यदि इस मामले में जांच हो तो सच्चाई सामने आ सकती है।


हालत यह है कि श्रम आयुक्त कार्यालय के इंस्पेक्टर फैक्ट्रियों का निरीक्षण करने की बजाय उपहार बांटने के बाद कागजात पर हस्ताक्षर कर लेते हैं। भौतिक रूप से सैकड़ों फैक्ट्रियों में कम इंस्पेक्टर होने की वजह से प्रमाणिकरण नहीं हो पाता। न ही इंस्पेक्टरों की रुचि ही रहती। बाद में बोनस के रूप में बांटी गई राशि या उपकरणों का वे प्रमाणिकरण कर देते हैं। इस कलाकारी में वे अपना बोनस भी बना लेते हैं। ऐसा कई बरसों से हो रहा है, मगर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। 

दिल्ली में सरकार केजरीवाल की, मगर उनकी विडंबना यह कि वे स्वतंत्र काम नहीं कर पा रहे

-यह देश की विडंबना है कि दिल्ली में जनता द्वारा चुनी सरकार ढोली-घोड़ा है, इसका रिमोट तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है, ऐसा नहीं है कि केजरीवाल जैसे मुख्यमंत्री सक्षम नहीं है, मगर उनको काम करने ही नहीं दिया जा रहा, एक तरफ उप राज्यपाल नजीब जंग बात-बात में उन्हें नीचा दिखा रहे हैं, वहीं चौतरफा जनता के दबाव के चलते वे अपने को असहज महसूस कर रहे हैं

-डी.के. पुरोहित-

केजरीवाल। दिल्ली की जनता के चुने मुख्यमंत्री। लेकिन जनता के लिए जब भी कोई कदम उठाते हैं, उप राज्यपाल से टकराव हो जाता है। वे जनता के प्रति वफादारी दिखाना चाहते हैं, मगर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रत्यक्ष रूप से उन पर दबाव बना रहे हैं। वे कोई कदम उठाते हैं कि अगले दिन उन्हें निराशा हाथ लगती है। चाहे अफसरों के स्थानांतरण हो, चाहे विभागीय फेरबदल। मुद्दा चाहे जनता के हितों से ही क्यों न जुड़ा हुआ हो, वे स्वतंत्र रूप से कुछ भी नहीं कर पा रहे। दिल्ली जो देश की राजधानी है, वहां या तो अलग मुख्यमंत्री होना नहीं चाहिए, अगर उसकी सरकार अलग चुनी गई है तो उन्हें पूरी स्वतंत्रता से काम करने देना चाहिए।

मोदी की पूरे देश में लहर थी। हर कोई मोदी-मोदी के जयकारे लगा रहा था। ऐसे दौर में जब पानी में मोदी के नाम के पत्थर तैर रहे थे, दिल्ली की जनता ने मोदी को उनकी जमीन दिखाई। केजरीवाल को भारी भरकम बहुमत देकर उन्होंने दिखा दिया कि देश की राजधानी में लहर से सरकार नहीं बनती। जनता समझदार है। जनता अपना भला-बुरा समझती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के लिए केजरीवाल चुनौती बनकर खड़े हुए। मोदी हालांकि इस असफलता की चर्चा नहीं करते, लेकिन उनके भीतर गहरे तक केजरीवाल का डर व्याप्त है। हो भी क्यों न, जब देश की जनता मोदी को अवतार बता रही थी, उसी दौर में दिल्ली में इतना बड़ा उलटफेर हो गया। दिल्ली में हर तबके के लोग रहते हैं। केजरीवाल न तो जातिवादी समीकरण बता रहे थे और न ही उनकी पार्टी आर्थिक रूप से सक्षम है, लेकिन दिल्ली ने बता दिया कि राजनीति में पारदर्शिता और जनता की इच्छा सर्वोपरि होती है। मोदी ने देश भर की पूरी मशीनरी दिल्ली चुनाव में लगा दी, लेकिन केजरीवाल अजातशत्रु बन कर उभरे। कुछ ही दिनों में मोदी को उनकी औकात बता दी।

देश को अब यह समझ लेना चाहिए कि मोदी की लहर ही थी, जिसे मीडिया ने बनाई। मीडिया जिसने केजरीवाल को भी चढ़ाया, मगर उन्होंने मीडिया से एक निश्चित दूरी बनाए रखी। केजरीवाल ने थोड़े समय में देश-दुनिया को नई विचार एवं कार्यशैली दी। केजरीवाल ऐसा नेतृत्व है जो अपने दम पर आगे बढ़े। मोदी के साथ उनकी पार्टी थी। पूरी कार्यकर्ताओं की फौज थी, लेकिन केजरीवाल के पास था तो केवल विचार-आम आदमी पार्टी। आम आदमी की हितैषी। जनता ने उन्हें स्वीकारा। यह उनकी सफलता है। ऐसी सफलता जिसकी आमतौर पर अपेक्षा नहीं की जा सकती। कुछ ही दिनों में दिल्ली में केजरीवाल के झंडे दिखाई देने लगे। आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा और समर्थित संगठन को जनता ने नकार दिया। केजरीवाल को दिल खोलकर समर्थन किया। यह कोई भेड़चाल नहीं थी। न ही कोई लहर थी। यह समझदारी भरा जनमत था। यह देश की जनता की जीत थी।

अब गौर करें केजरीवाल सरकार पर। जब भी कोई जनहितैषी कदम उठाते हैं, मामला उप राज्यपाल नजीब जंग के सामने आ जाता है। जंग अपनी टांग अड़ाते हैं। देखा जाए तो नेपथ्य में प्रधानमंत्री मोदी सरकार चला रहे हैं। उनकी स्वीकृति बिना कुछ नहीं हो रहा। केजरीवाल ने जनता से जो वादे किए, वे उन्हें पूरा करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें हर बार निराश होना पड़ता है। केजरीवाल के पास विचार है, साहस है और वे अपने वादों के अनुसार आगे बढ़ भी सकते हैं, लेकिन उन्हें हर बार हताशा हाथ लगती है। पर्दे के पीछे कई ताकतें हैं जो उनका रास्ता रोक रही हैं।
 
मोदी सरकार केजरीवाल को कंट्राेल कर रही है। अप्रत्यक्ष रूप से। केजरीवाल कोर्ट की शरण लेते हैं, मगर वहां भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही। आखिर केजरीवाल सरकार है या कठपुतली सरकार। वे कोई कदम उठा ही नहीं पाते। उनकी स्वतंत्रता पर कभी कोर्ट का हथोड़ा, कभी मोदी की नाराजगी तो कभी उप राज्यपाल का डंडा पीछा नहीं छोड़ते। ऐसे में दिल्ली की जनता को जागना होगा। जनता ने केजरीवाल को समर्थन दिया है तो जनता को ही दिल्ली को स्वतंत्र राज्य और ताकतवर मुख्यमंत्री के लिए पहल करनी चाहिए। अकेले केजरीवाल लड़ नहीं सकते। जिस जनता ने केजरीवाल को चुना, उन्हें ही अब आगे आगर विरोधी ताकतों से लड़ने में केजरीवाल का साथ देना होगा। केजरीवाल की नियत साफ है। वे अपनी ताकत पर घमंड भी नहीं करते। राजनीति में वे नए खिलाड़ी हैं, उनकी सेना पर चौतरफा हमला हो रहा है। उनके मंत्री अनुभव हीन है, ऐसे में उन पर आए दिन नए-नए हमले हो रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल को हर कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा और अपने को बड़ा खिलाड़ी साबित करना होगा। केजरीवाल के साथ दिल्ली की पूरी जनता है। आज तो दिल्ली की जनता ने उन्हें चुना है, कल देश की जनता भी उनका साथ दे सकती है। जरूरत है मजबूत इरादों की। केजरीवाल को अपनी श्रेष्ठता साबित करनी ही होगी। केजरीवाल ही भविष्य का नेतृत्व बन सकता है। इसके लिए साफ मन की जरूरत है। फिर जनता तो है ही उनकी मदद के लिए।