Monday, 16 August 2021

राहुल गांधी की जान को खतरा, तालिबान के निशाने पर

वाशिंगटन (एजेंसी)। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की जान को खतरा है। अमेरिकी गुप्तचर डेरिस विल हिल की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल की जान को खतरा देखते हुए उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष पद से दूर किया और खुद अध्यक्ष बन गईं। हिल ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि तालिबान के जरिए राहुल को निशाना बनाया जा सकता है।

हिल की रिपोर्ट में बताया है कि किसान आंदोलन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ घट रहा है। जगह-जगह उनकी आलोचना हो रही है। ऐसे में वे नहीं चाहेंगे कि अगला प्रधानमंत्री राहुल गांधी बने। जब तक गांधी परिवार राजनीति में है तब तक देश में उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। रिपोर्ट के मुताबिक सोनिया गांधी परिपक्व नेता है और राहुल में अभी समझ की कमी है और वो उत्साहित अधिक है। अपने बेटे की जान काे खतरा देखते हुए ही वह खुद कांग्रेस अध्यक्ष बनने को तैयार हुई। रिपोर्ट में कहा गया है कि राहुल गांधी को तालिबान मामले से दूर रहना चाहिए। श्रीलंका में लिट्‌टे के खिलाफ राजीव गांधी ने सेना भेजी थी तो उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा था। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप्पी साधे हुए हैं। हालांकि राहुल के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है और ना ही कोई साजिश रच रहे, लेकिन यह बात उन्हें भी पता है कि राहुल पर आतंकवादी संगठनों की नजर है। ऐसे में तालिबानी आतंकवादियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट में कहा गया है कि राहुल तालिबान के निशाने पर है। राहुल की हत्या के लिए मारा मोनाई गनी शाह नाम के एक व्यक्ति को जिम्मेदारी दी गई है। अगले छह महीने राहुल के लिए परेशानी भरे हो सकते हैं।  


Thursday, 12 August 2021

पिछले 8 साल में राजस्थान शिक्षा विभाग में 8 हजार करोड़ रुपए जीम गए बिचौलिए

वर्ल्ड स्ट्रीट बिग ब्रेकिंग : आजादी के बाद 75 साल में शिक्षा विभाग में अब तक की सबसे बड़ी वित्तीय अनियमितता, भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारें भ्रष्ट 

-2014 से 2018 तक वसुंधरा सरकार और 2018 से 2021 में वर्तमान में अशोक गहलोत सरकार के राज में शिक्षा विभाग में हुई बंदरबांट, राजीव गांधी कहते थे दिल्ली से एक रुपया भेजता हूं, जनता तक पहुंचते-पहुंचते 19 पैसा रह जाता है, राजस्थान में दोनों ही सरकारों ने शिक्षा विभाग को जो पैसा दिया दिया उसका यही हस्र हुआ। यानी सभी कुआंे में भाग मिली हुई है 

-वसुंधरा राजे सरकार के कार्यकाल में 5 हजार करोड़ और अशोक गहलोत सरकार में ढाई-तीन साल में 3 हजार करोड़ रुपए बिचौलिए खा गए, डेढ़ साल में कोरोना की वजह से भ्रष्टाचार कम हुआ, क्योंकि स्कूलें ही बंद रही

वसुंधरा राजे शासन में 5 सालों में शिक्षा विभाग को 125 हजार करोड़ से अधिक का बजट मिला। इसमें से 80 प्रतिशत यानी 100 हजार करोड़ रुपए वेतन-भत्तों में चला गया, शेष 25 हजार करोड़ में से 5 हजार करोड़ रुपए और गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग को ढाई-तीन साल में 120 हजार करोड़ रुपए का बजट मिला, इसमें से 100 करोड़ वेतन भत्तों में और शेष 20 हजार करोड़ में से 3 हजार करोड़ रुपए विकास कार्य और योजनाओं के नाम पर ऊपर से नीचे तक लोग डकारा गए।  गौरतलब है कि वेतन मद में अलग से राशि दी जाती है और निर्माण संबंधी कार्य के लिए समसा-रमसा में बजट दिया जाता है 

-स्कूलों में भवन, कक्षा-कक्ष निर्माण, टांका, चारदीवारी, लैब, लाइब्रेरी, फर्नीचर, प्याऊ और मिड डे मील सहित तमाम कार्यों में अनियमितता उजागर, दानदाताओं से मिली 500 करोड़ की राशि का भी कोई हिसाब किताब नहीं 

-विद्यालय प्रबंध समिति की अनदेखी से स्कूलों में भ्रष्टाचार को मिला बढ़ावा, कागजों में शोभा बढ़ातीं रहीं समितियां, विकास के लिए जो राशि मिली, उसे जीम गए 

-प्रदेश में 10,992 उच्च माध्यमिक, 3,441 माध्यमिक, 18,567 उच्च प्राथमिक और 30,324 प्राथमिक स्कूल कार्यरत हैं, यानी 65 हजार से अधिक स्कूलें हैं 

-यही नहीं देशभर में सभी कर्मचारियों-अधिकारियों पर जो 0.2 प्रतिशत शिक्षा कर लगाया जाता है, उसे विभागीय अधिकारियों-कर्मचारियों ने विदेशी फंड मानते हुए उसमें 30 से 40 प्रतिशत राशि खुदबुर्द कर दी, यह राशि भी करोड़ों में है 

-इस वित्तीय दुरुपयोग का पर्दाफास करने के लिए वर्ल्ड स्ट्रीट रिपोर्टर ने तीन माह स्टडी की, 5 बार आम आदमी बन शिक्षा निदेशालय पहुंचा, 400 से अधिक विभागीय कर्मचारियों-शिक्षकों से बात की, तब जाकर वित्तीय अनियमितताओं पर से पर्दा उठा, शिक्षक नेताओं का कहना है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच होनी चाहिए, प्रदेश में 5 लाख से अधिक पत्र-दस्तावेजों और डायस के माध्यम से ऑनलाइन कार्रवाई को खंगाला जाए तो भी राशि के दुरुपयोग का पता नहीं चल पाएगा, इसमें ऊपर से नीचे तक सभी मिले हुए हैं 

डीके पुरोहित. जोधपुर 

राजस्थान शिक्षा विभाग में पिछले 8 साल में 8 हजार करोड़ रुपए की वित्तीय अनियमितता सामने आई है। 2014 से 2018 तक वसुंधरा सरकार के 5 साल और 2018 से वर्तमान के ढाई-तीन सालों में कांग्रेस राज में शिक्षा विभाग में 3 हजार करोड़ रुपए बिचौलिए खा गए। आजादी के बाद यानी 75 साल में अब तक की सबसे बड़ी अनियमितता वर्ल्ड स्ट्रीट ने पकड़ी है। यह घपले की परिभाषा में आता है। इस घपले की कड़ियां आगे धीरे-धीरे सामने आएंगी। बताया जा रहा है कि स्वतंत्र देश में शिक्षा विभाग में शायद ही किसी अन्य राज्य में इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितता हुई है। प्रदेश के शिक्षा विभाग में भारी अनियमिततर की बात करें तो वसुंधरा राजे शासन में 5 सालों में शिक्षा विभाग को 125 हजार करोड़ से अधिक का बजट मिला। इसमें से 80 प्रतिशत यानी 100 हजार करोड़ रुपए वेतन-भत्तों में चला गया, शेष 25 हजार करोड़ में से 5 हजार करोड़ रुपए और गहलोत सरकार में शिक्षा विभाग को ढाई-तीन साल में 120 हजार करोड़ रुपए का बजट मिला, इसमें से 100 करोड़ वेतन भत्तों में और शेष 20 हजार करोड़ में से 3 हजार करोड़ रुपए विकास कार्य और योजनाओं के नाम पर ऊपर से नीचे तक लोग डकार गए। गौरतलब है कि वेतन मद में अलग से राशि दी जाती है और निर्माण संबंधी कार्य के लिए समसा-रमसा में बजट दिया जाता है। यही नहीं होनहार बालिकाओं को स्कूटी देने, साइकिलें देने में भारी गड़बड़ सामने आई है। इसमें भी अधिक रेट में टेंडर कर कम राशि का भुगतान किया गया। 

भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश के 160 विधायकों में से 48 विधायकों ने ही अपना रिपोर्ट कार्ड दिया, जबकि 112 को यह भी नहीं पता कि उनके राज में शिक्षा विभाग क्या कर रहा है। इसका एक आशय यह भी निकाला जा रहा है कि विधायकों का भी इसमें दामन दागदार रहा है। मौजूदा सरकार की बात करें तो स्कूलों में स्मार्ट टीवी और सेटटॉप बॉक्स लगाने के लिए 82 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया, जबकि 80 प्रतिशत स्कूलों में टीवी-सेटटॉप बॉक्स लगे ही नहीं। इसी तरह इंग्लिश मीडियम के 1200 महात्मा गांधी राजकीय स्कूलों के लिए प्रावधान किया गया, मगर इसमें भी जमकर अनियमितता हुई। खुद सरकार को नहीं पता कि कितने स्कूल खुले गए हैं और कितने खुलने हैं। विद्यालयों में आधारभूत सुविधाओं के विस्तार के लिए गहलोत सरकार ने 450 करोड़ रुपए का प्रावधान इस साल किया, मगर अधिकतर जगह काम हुआ ही नहीं और जहां-जहां काम हुए वहां घटिया किस्म के काम हुए। तीन सालों में 1200 करोड़ रुपए खर्च होने थे, जबकि डेढ़ साल कोरोना सीजन में काम कम ही हुआ। इससे पहले हुए कार्य इतने घटिया थे, कि दो-तीन साल में ही गुणवत्ता की दृष्टि से जवाब दे गए। न तो सक्षम एजेंसी ने कार्य की गुणवत्ता सही होने का प्रमाण-पत्र दिया और न ही किसी एईएन-जेईएन ने निरीक्षण किया। ठेकेदार ने कम टेंडर भरकर अपना 200 प्रतिशत मुनाफा कमाने के लिए ऊपर से नीचे तक सबकी जेबें भर दी। जैसलमेर की गर्ल्स स्कूल के छात्रावास की मरम्मत के लिए दो साल पहले शिक्षा विभाग ने 19 लाख रुपए के टैंडर जारी किए थे, मगर यूआईटी ने 56 लाख रुपए खर्च दिए। इस तरह 40 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च कर वित्तीय अनियमितता कर ली। यह एक जैसलमेर का उदाहरण नहीं है, पूरे प्रदेश में यह घालमेल चलता रहा। इसमें गहलोत सरकार के साथ-साथ पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के हाथ भी मैले रहे हैं।  

इस घपले की तह तक पहुंचने में इस रिपोर्टर ने तीन माह स्टडी की। 5 बार निदेशालय की खाक छानी। 400 से अधिक विभागीय कर्मचारियों और शिक्षकों से मिला। तब जाकर इस नतीजे पर पहुंचना संभव हुआ। गौरतलब है कि सरकार वेतन मद के लिए अलग से बजट देती है और निर्माण संबंधी कार्य समसा-रमसा के माध्यम से किया जाता है। इसके लिए प्रस्ताव मांगे जाते हैं, मगर कब कौनसा प्रस्ताव मिला, कौनसा कार्य कब पूरा हुआ, किसने इसे पूरा किया और कब-कब निरीक्षण हुआ, कितनी गुणवत्ता हुई? कितना समय लगा? कितने समय बाद निर्माण चरमरा गया। गारंटी पीरियड में कब-कब पुन: मरम्मत हुई। अनियमिता के जिम्मेदारों को कब-कब ब्लैक लिस्टेड किया। इस संबंध में किए पत्राचारों की लंबी फेहरिस्त है। प्रदेश के करीब 65 हजार स्कूलों में 5 लाख से अधिक दस्तावेज जिसमें डायस के माध्यम से भेजे प्रस्ताव और प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। जोधपुर में समसा के अभियंता चंपालाल से आंकड़े मांगे तो बगले झांकने लगे और बोले कि इतना पुराना रिकॉर्ड ढूंढ़ेंगे तो महीनों लग जाएंगे। शिक्षक नेताओं का कहना है कि इन सबकी जांच निष्पक्ष एजेंसी से होनी चाहिए। इन्हें पूरी गहनता से खंगालने के बाद भी दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं है। इस घालमेल में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी कुओं में भांग मिली हुई है। शिक्षक नेता भी स्वीकार करते हैं कि बजट राशि का पूरा उपयोग नहीं होता और घटिया निर्माण के चलते यह गोरखधंधा चलता रहा। इसका पूरा ब्यौरा सरकार के पास नहीं हैं। 

पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी और वर्तमान शिक्षा मंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के कार्यकाल में राशि का जमकर दुरुपयोग हुआ। वे बड़ी-बड़ी बातें करते रहे और यह कहते रहे कि सरकार ने स्कूलों को पर्याप्त बजट दिया है, लेकिन उनकी नाक के नीचे वित्तीय अनियमिता होती रही और वे कुछ नहीं कर पाए। प्रदेश के 30 से अधिक जिलों में पिछले आठ सालों में 8-9 हजार करोड़ रुपए की राशि का दुरुपयोग किया गया है। स्कूलों के भवन, कक्षा-कक्ष, लाइब्रेरी, कंप्यूटर सेक्शन और लैब के साथ अन्य विकास कार्यों में राशि का दुरुपयोग हुआ। मिड डे मील में भी कॉम्बो पैक के चलते घपला हुआ। स्कूली शिक्षकों के वेतन-भत्ते बढ़ते रहे, मगर बच्चों की सुविधाओं के लिए बजट कम ही दिया गया। इस कम बजट का भी अगर सदुपयोग होता तो स्कूलों का विकास हो सकता था, मगर प्रदेश में बजट राशि का जमकर जीमण हुआ। स्कूल प्रबंध समिति की उपेक्षा भी इसका एक कारण है। 

25 जिलों में ही करीब 8 हजार करोड़ रुपयों की  हेराफेरी : 

अजमेर 415 करोड़, बीकानेर 505 करोड़, गंगानगर 285 करोड़, जैसलमेर 255 करोड़, उदयपुर 340 करोड़, बाड़मेर 335 करोड़, जालोर 203 करोड़, सिरोही 348 करोड़, डूंगरपुर 285 करोड़, प्रतापगढ़ 203 करोड़, चित्तौड़ 271 करोड़, हनुमानगढ़ 213 करोड़, राजसमंद 182 करोड़, बूंदी 192 करोड़, सीकर 301 करोड़, पाली 215 करोड़, जोधपुर 460 करोड़, भीलवाड़ा 303 करोड़, करौली 237 करोड़, सवाई माधोपुर 283 करोड़, जयपुर 485 करोड़, अलवर 360 करोड़, नागौर 237 करोड़, झालावाड़ 311 करोड़ और दौसा में 248 करोड़ से अधिक रुपयों की हेराफेरी सामने आई है। ( नोट : आंकड़ाें में कमी या वृद्धि जांच में अलग हो सकती है।) 

दान में भी कर ली स्नान : दानदाताओं की करीब 500 करोड़ रुपयों की राशि से विकास के नाम पर धोखाधड़ी : 

पिछले 8 साल में प्रदेश की करीब 65 हजार स्कूलों में 500 करोड़ से अधिक उस राशि की हेराफेरी हुई है जो दानदाताओं के सहयोग से मिली है। इस राशि का उपयोग पूरी तरह से नहीं हो पाया। जहां 100 रुपए मिले, वहां 17 से 25, कहीं 52 रुपए का काम हुआ, यानी प्राप्त राशि का बड़ा हिस्सा खुर्दबुर्द कर दिया गया। दानदाताओं ने तो अपना धर्म निभाया, मगर प्रबंधन अपना धर्म भूल गया। हालांकि शिक्षक नेता कहते हैं कि दानदाताओं की राशि का अधिकतर दुरुपयोग नहीं हो रहा, क्योंकि दानदाता अपनी निगरानी में काम करवाते हैं, लेकिन स्थितियां सामने हैं। इस राशि में भी घपला होने की जानकारी मिली है। विकास के नाम पर भामाशाहों से मोटी रकम हथियाने के बाद उसको विकास कार्यों पर पूरी तरह खर्च ही नहीं किया। खासकर फर्नीचर, दरी, पानी, कक्षा-कक्ष, स्कूल भवन, टांका निर्माण, लैब, लाइब्रेरी और कंप्यूटर लैब सहित कई मद में राशि का खर्च अधिक बताया गया और बची हुई राशि हड़प ली गई। स्कूल मैनेजमेंट से लेकर शिक्षक तक और क्लर्कीकल स्टाफ ने भी राशि की बंदरबांट कर ली। जिसका जैस दांव चला दान की राशि में स्नान करते गए। 

स्कूल प्रबंधन समिति की सदस्यता शुल्क का भी कोई हिसाब-किताब नहीं : 

सरकारी स्कूलों में प्रत्येक स्कूल में प्रबंधन समिति बनी हुई है। इसमें सदस्यों से जो शुल्क लिया जाता है, वह तय नहीं है। प्रदेश के प्रत्येक जिले में अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग सदस्यता शुल्क वसूली जाती है। कहीं यह 100 रुपए, कहीं 200 तो कहीं कम-अधिक रहती है। ऐसे में प्रदेश की 65 हजार स्कूलों में जो सदस्यता शुल्क वसूली गई, वह कहां और किस मद में खर्च की, इसका शिक्षा विभाग के पास ब्यौरा ही नहीं है। इस संबंध में ऑडिट में भी कई जगह सवाल उठाए गए, मगर न विभाग ने कार्रवाई की और न ही सरकार ने कदम उठाया।    

वर्ल्ड स्ट्रीट एक्सपर्ट पैनल : (भंवर काला, शंभूसिंह मेड़तिया, शिक्षक नेता) 

वर्ल्ड स्ट्रीट ने इस संबंध में पड़ताल की और शिक्षक नेताओं से पूछा कि आखिर इतनी बड़ी राशि का घोटाला कैसे हो सकता है? उनका कहना है कि छात्र संख्या के हिसाब से बजट आवंटित होता है, लेकिन इसमें घालमेल हो जाता है। सैलेरी हैड में अलग से राशि आती है और निर्माण आदि के लिए समसा में बजट मिलता है। इसके लिए बाकायदा प्रस्ताव मांगे जाते हैं और फिर उस अनुसार बजट आवंटित होता है। मान लीजिए बजट 56 लाख मिला और खर्च 44 लाख ही किए। इसी तरह कई बार राशि में घपला हो जाता है। इसे समझने के लिए हम देखें कि छत का जब निर्माण होता है तो नियमानुसार जेईएन को वहां मौजूद रहना पड़ता है। 6 इंच की छत की जगह 4-5 इंच की बना ली जाती है। फर्श में कोटा स्टोन लगाना होता है, लेकिन सबकी मिलीभगत से घटिया सामग्री उपयोग में ली जाती है। गौर करने वाली बात यह भी है कि जेईएन-एईएन क्वालिफाइड भी नहीं होते। यही नहीं शिक्षक के भरोसे निर्माण कार्य छोड़ दिया जाता है। ऐसे में मनमानी हर स्तर पर हो जाती है। गुणवत्ता को जांचने की कोई प्रक्रिया नहीं है। किसी प्रकार की मॉनिटरिंग नहीं होती। ऐसे कई कारण है कि जिसके चलते इस प्रकार के घोटालों को प्रश्रय मिलता है। सही बात तो यह है कि सरकार जो बजट देती है, उसमें पारदर्शिता नहीं है। फर्नीचर, स्मार्ट कक्ष, स्मार्ट लैब, स्मार्ट लाइब्रेरी, खेल मैदान के लिए पैसा दिया जाता है उसका पूरा उपयोग नहीं होता। कई बार तो सामग्री सप्लाई तो हो जाती है, मगर उसे रखने के लिए जगह नहीं होती। आजकल ‘डायस के माध्यम से ऑनलाइन मांग की जाती है। ऐसे में मनमाने ढंग से बजट आवंटित होता है। जहां जरूरत है वहां बजट नहीं मिलता। पैसों का सदुपयोग नहीं होता। सामग्री रखने के लिए पहले से इन्फ्रा स्ट्रक्चर नहीं बनाया जाता। ठेकेदार टेंडर में कम राशि भरते हैं। ऐसे में वह अपना 200 प्रतिशत मुनाफा कमाने के लिए घटिया गुणवत्ता से निर्माण कार्य करवाता है। पिछले वर्षों में कई सरकार आई, चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, रुपयों का पूरा उपयोग नहीं होता। सरकार को मॉनिटरिंग करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बननी चाहिए। राशि शत प्रतिशत खर्च हुई है या नहीं, उसकी जांच होनी चाहिए। वित्तीय अनियमिता की हम निंदा करते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्लानिंग करनी चाहिए। मिड डे मील के लिए कॉम्बो पैक से वितरण होता है। ऐसे में खाना घटिया क्वालिटी का होता है। इसके लिए पैसा सीधा छात्रों के खातों में जमा होना चाहिए। समसा अब रमसा हो गया है। माध्यमिक शिक्षा से जुड़े कार्य इसके माध्यम से होते हैं। सरकार द्वारा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए करदाताओं पर अलग से 0.2 प्रतिशत शिक्षा कर यानी सेस लगाया जाता है। इससे अरबों रुपए मिलते हैं। ये पैसा जनता का है और शिक्षा पर खर्च होना चाहिए, लेकिन इसका राज्यवार व जिला स्तर पर वितरण में पारदर्शिता नहीं बरती जाती। विभागीय अधिकारी कर्मचारी इसे विदेशी फंड मानते हुए 30 से 40 प्रतिशत राशि गबन कर लेते हैं। यह जनता के साथ अन्याय है। प्रिंसिपल के माध्यम से जो राशि जारी होती है, उसमें 30 से 40 प्रतिशत गबन होता है। कई बार ठेकेदार की राशि आरोप लगाते हुए रोक लेते हैं, ठेकेदार को कमीशन देना पड़ता है। यही नहीं अगर ठेकेदार घटिया क्वालिटी का निर्माण करवाता है तो उसे सरकार द्वारा ब्लैक लिस्टेड नहीं किया जाता। इससे इतना बड़ा घोटाला हो गया है। इसकी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच होनी चाहिए। 

 

वर्जन : 

शिक्षा निदेशक सौरभ स्वामी का कहना है कि उन्हें इस संबंध में जानकारी नहीं है। अगर वित्तीय अनियमितता हुई है तो उसकी जांच करवाएंगे। 

पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि फोन पर कुछ नहीं बता सकते, आमने सामने मिलेंगे तो बात करेंगे।    

 


 

 

 

Monday, 2 August 2021

चीन से घातक हथियार खरीद : इमरान खान ने 500 करोड़ का कमीशन खाया

-स्विश बैंकों में गोपनीय खातों में जमा है राशि, पाकिस्तान की सामरिक ताकत बढ़ाने के नाम पर घातक हथियार खरीदे और भ्रष्टाचार किया

-क्रिकेट के बेताज बादशाह और कप्तान के रूप में स्थापित पाकिस्तान प्रधानमंत्री खान के स्विश बैंकों में अलग-अलग अकाउंट है। इनमें किस्तों में राशि जमा है

(एजेंसी. इस्लामाबाद)

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने 18 अगस्त 2018 को प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन से घातक हथियारों की खरीद की। करीब 15 हजार करोड़ के हथियारों की खरीद में इमरान खान ने 500 करोड़ रुपए कमीशन बनाया। पाकिस्तान की सेना और सामरिक ताकत पर रिसर्च करने वाले एक अमेरिकी जासूस नी. बेटन ने दावा किया है कि पाकिस्तान ने पिछले दो-तीन साल में चीन से खरीदे घातक हथियारों से सामरिक ताकत बनाई है। साथ ही प्रधानमंत्री खान ने करीब 500 करोड़ रुपयों की हेराफेरी की है। यह राशि स्विश बैंकों में अलग-अलग खातों में जमा करवाई गई है। खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक स्विश बैंकों में cap pak नाम से गोपनीय खाते में करीब 200, cricket man नाम से खाते में 150 करोड़ और इतनी ही राशि all rounder नाम से खोले गए खातों में है।

भारत से जारी तनाव के बीच चीन एशिया के कई देशों को अपने घातक हथियारों से पाट रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो-तीन साल में दुनिया में सबसे अधिक हथियार खरीदने वाले देशों की लिस्ट में पाकिस्तान दसवें स्थान पर काबिज है। इस दौरान पाकिस्तान ने दुनियाभर में आयात किए गए कुल हथियारों का 2.7 फीसदी हिस्सा खरीदा है। पाकिस्तान ने आयात किए गए कुल हथियारों का 74 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से खरीदा है। स्वीडन के थिंकटैंक सिपरी की एक रिपोर्ट में ये बात सामने आई है। इन रक्षा प्रणालियों की ख़रीद के बाद पाकिस्तान एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज़्यादा हथियार ख़रीदने वाले देशों में शामिल हो गया है। हथियार ख़रीदने के मामले में पाकिस्तान ने अपने पड़ोसी दोस्त चीन पर सबसे ज़्यादा भरोसा किया है। पिछले दो-तीन साल में 15 हजार करोड़ रुपयों से भी अधिक की हुई डील में कई घातक विमान, पनडुब्बी और मिसाइल आदि शामिल है। पनडुब्बियों को पाक ने समुद्री सीमा पर सामरिक ताकत बढ़ाने के लिए आयात किया है। चीन ने पाकिस्तान को अलग-अलग तरह के जेएफ़-17 फ़ाइटर जेट विमान बेचे हैं जबकि पाकिस्तान चीन से लाइसेंस के तहत जेएफ़-17 थंडर और एफ़सी-1 टाइप जेट देश में ही बना रहा है। पाकिस्तान ऐसे 50 फ़ाइटर जेट विमान बना रहा है। चीन के अलावा पाकिस्तान ने तुर्की से मिलजेम युद्धपोतों का आयात भी किया है. पाकिस्तान स्थानीय स्तर पर भी इन जहाज़ों को तैयार कर रहा है। हाल के सालों में पाकिस्तान सैन्य औद्योगिक परिसर ने कराची डॉकयार्ड और ऐरोनॉटिकल कॉम्प्लेक्स कामरा में स्थानीय स्तर पर युद्धपोत, पनडुब्बी, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर तैयार करने की क्षमता हासिल कर ली है। वहीं पाकिस्तान के एक और रक्षा उद्योग पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री (वाह कैंट) के पास छोटे हथियार और गोला बारूद बनाने की क्षमता है। सिपरी के दस्तावेज़ के मुताबिक़, पाकिस्तान ने विदेशों से लड़ाकू जेट, लड़ाकू हेलीकॉप्टर, पनडुब्बी और युद्धपोत आयात किए हैं, लेकिन फिर उन्हें स्थानीय स्तर पर निर्मित किया है। दूसरे शब्दों में कहें तो, निर्माण में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश भाग आयात किए गए हैं, लेकिन अंतिम हथियार प्रणाली स्थानीय रूप से बनाई गई है। पाकिस्तान ने बड़ी दिलचस्पी के साथ मिस्र से पहले से इस्तेमाल किए गए मिराज-5 फ़ाइटर जेट आयात किए हैं, हालांकि पाकिस्तान की वायुसेना पहले से ही फ्रांस में निर्मित इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रही थी।

सरक्रीक बॉर्डर पर तनाव खड़ा कर रहा पाकिस्तान :

एक एजेंसी के मुताबिक पाकिस्तान की नजर अब सरक्रीक बॉर्डर पर है। वह वहां पर अपने युद्धपोत तैनात कर तनाव की स्थिति बना रहा है। भारतीय जल सेना हालांकि सरक्रीक बॉर्डर पर निगरानी कर रही है, मगर चीन से मदद मिलने के बाद पाकिस्तान की नजर समुद्री ताकत बढ़ाने पर है। इधर, भारतीय सेना भी मुंहतोड़ जवाब देने को तेयार है। पिछले तीन महीनों से पाकिस्तान समुद्री सीमा पर हलचल तेज कर चुका है। इधर खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के इरादे साफ नहीं है। पाकिस्तान ने पिछले दिनों कुछ मछुहारों को भी पकड़ा था, जिसे बाद में भारत की चेतावनी के बाद छोड़ दिया गया था।