Friday, 27 May 2016

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पोपाबाई का राज, मंत्री खुले, अफसर बेलगाम





-कवि नंदकिशोर शर्मा की कविता है पोपाबाई का राज बापू फिर नहीं आने का, यही हाल राजस्थान में है, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सत्ता की खुमारी में मस्त है, मंत्री खुल्लेआम बयानबाजी कर रहे हैं और अफसर बेलगाम हो गए हैं, पिस रही है तो जनता




-डी.के. पुरोहित-

राजस्थान में भाजपा की सरकार है। मुख्यमंत्री है वसुंधरा राजे। लेकिन कहीं लग ही नहीं रहा कि सरकार नाम की कोई चीज भी है। खुद वसुंधरा राजे दो साल में कुछ कर नहीं पाई। गहलोत सरकार के कार्यकाल में जो योजनाएं बनी, ब्रिज बने और विकास कार्य हुए उसके फीते काट रही है। खुद की उपलब्धियां बताने लायक कुछ है नहीं। इधर उनके मंत्री खुल्लेआम बयानबाजी कर रहे हैं और विभागों पर उनकी पकड़ नहीं रही। हालत यह है कि अफसर बेलगाम हो गए हैं। जनता पिसती जा रही है। आम आदमी के काम नहीं हो रहे। नरेंद्र मोदी की लहर में वसुंधरा की नैया तो पार हो गई, मगर मोदी ने जो सपने दिखाए उस पर सरकार कहीं खरी उतरती नजर नहीं आ रही। कवि नंदकिशोर शर्मा की कविता है पोपाबाई का राज बापू फिर नहीं आने का, यही हाल राजस्थान में है, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सत्ता की खुमारी में मस्त है, मंत्री खुल्लेआम बयानबाजी कर रहे हैं और अफसर बेलगाम हो गए हैं, पिस रही है तो जनता






हालत यह है कि वसुंधरा सरकार में मंत्री बेमतलब की बयानबाजी कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले परिवहन मंत्री यूनुस खान ने बयान दिया कि आरटीओ में कोई फेल नहीं होता। वाहन हो या लोग, सब लाइसेंस टेस्ट पास कर जाते हैं। उन्होंने बयानबाजी तो खूब की लेकिन नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई कुछ नहीं की। इसका नतीजा यह है कि प्रदेश में लोगों के काम करवाने के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं। विभाग अपनी मनमानी कर रहे हैं। एजेंट और बिचौलिये लोगों से लिए बगैर काम नहीं होने देते। 




एक अन्य मंत्री नगरीय विकास मंत्री राजपाल ने कहा कि प्रदेश में अतिक्रमणों की बाढ़ आई हुई है। जेडीए की प्रवर्तन शाखा को यह पता होता है, लेकिन इसके बाद भी कार्रवाई नहीं होती। मंत्री तो बयान देकर हट गए, मगर हकीकत और भी खराब है। जो रसूख वाले हैं उनके खिलाफ तो नगरपालिका, नगर परिषद और निकायें कार्रवाई नहीं करतीं मगर आम आदमी अगर जीने के लिए संघर्ष कर रहा है तो उनके आशियाने उजाड़े जा रहे हैं। फुटपाथ पर सामान बेचकर गुजारा करने वालों में पर बुलडोजर चलता है। प्रदेश में ऐसा कई जिलों में हो रहा है। कुछ दिनों से जोधपुर में नगर निगम ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चला रखा है, मगर रसूख वाले साफ बच रहे हैं। पहले भी अभियान चलाया तो आम आदमी के मकान तोड़े गए। बड़े-बड़े लोग और खुद पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कांग्रेस भी मुखर विरोध कर लोगों को राहत नहीं दिला पाई।
इधर चिकित्सा मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि मैं चिकित्सा मंत्री हूं। मुझे खुद पर शर्म आ रही है। डॉक्टर कहने के बाद भी नहीं मानते। ऐसी बेचारगी दिखाने वाले मंत्री से क्या अपेक्षा की जा सकती है। उन्होंने बेतुका बयान तो दे दिया, लेकिन कदम कुछ नहीं उठाया। प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समय जितनी भी योजनाएं शुरू की गई, उसका पोस्टमार्टम कर वाह-वाही लूटने के लिए अपनी योजनाओं का घालमेल कर दिया, मगर आम आदमी को राहत दिलाने के कोई कदम नहीं उठाया। इधर गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया भी जाने किस युग में जी रहे हैं। उनका कहना है कि पुलिस का क्राइम पर कम, प्रॉपर्टी बिजनेस पर ध्यान ज्यादा है। जिस प्रदेश का गृहमंत्री ऐसा बयान दे रहा हो उस राज्य में फिर कौन जनता के लिए काम करेगा। 





वाकई गृहमंत्री सही कह रहे हैं। उनकी बात सुनी नहीं जा रही। पुलिस का चेहरा नहीं बदला है। फरवरी के दूसरे सप्ताह में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जोधपुर में थी। यहां पर वह दो दिन रही, मगर आम आदमी को कोई राहत नहीं मिली। मुख्यमंत्री फीता काटने में लगी रही और लोग उनसे मिलने के लिए तरसते रहे। हालत यह है कि जब मुख्यमंत्री बजट के मामले में होटल में बैठक ले रही थी तो बाहर जनमानस उनसे मिलना चाहते थे। गीता देवी सोनी अपनी बेटी के हत्यारों को पकड़वाने के लिए मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन देना चाहती थी, लेकिन पुलिस इतनी निरंकुश हो गई कि उनको बाहर ही रोक दिया। गीता देवी ने खूब मिन्नतें की, लेकिन पुलिस का दिल नहीं पसीजा। वह रोती रही। आंसू गिरते रहे, लेकिन पुलिस टस से मस नहीं हुई। बाद में जब मुख्यमंत्री बैठक के बाद कार में रवाना हुई तो गीता उसकी कार के पीछ़े दौड़ी। आनन-फानन में ज्ञापन तो दिया, मगर इस पूरे घटनाक्रम के लिए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इधर पावटा में खेतसिंह के बंगले के सामने तिराहे पर सोमवार सुबह करीब साढ़े दस बजे मुख्यमंत्री के काफिले में शामिल एक कारा ने बाइक सवार दो युवकों को टक्कर मार दी। वसुंधरा राजे भदवासिया ओवरब्रिज का लोकार्पण करने जा रही थी। कार की टक्कर से बाइक बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। दोनों युवक घायल हो गए। कार चालक रुकने की बजाय तेज रफ्तार में वाहन भाग ले गया। पुलिस भी उसे पकड़ नहीं पाई। हालत यह थी कि पुलिस ने पकड़ने का प्रयास ही नहीं किया। बाद में पुलिस ने प्रेस नोट जारी कर कहा कि टक्कर मारने वाली कार सीएम के काफिले में शामिल नहीं थी। लेकिन पूरे प्रकरण में पुलिस लापरवाह रही। घायलों की सार-संभाल करने की बजाय मुख्यमंत्री के काफिले में पुलिस लगी रही।
हालत यह है कि वसुंधरा सरकार में अधिकारी मस्तमोला हो गए हैं। मर्जी चलाते हैं। कार्रवाई करने से बच रहे हैं। सरकार की सख्ती भी नहीं है। मंत्री तो अपने को इन नौकरशाहों के आगे असहाय महसूस कर रहे हैं। ऐसे में आम जनता किससे उम्मीद पालें। किसी भी सरकार का चेहरा उसके मंत्री होते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से राज्य सरकार के ये मंत्री लाचारगी ही दिखा रहे हैं।

वसुंधरा सरकार में नौकरशाह भी मनमानी पर उतर आए हैं। हालत यह है कि अफसरों के साथ खुद मुख्यमंत्री भेदभाव करती है। कुछ दिनों पहले सीनियर आईएएस अधिकारी उमराव सालोदिया ने मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री से नाराजगी जताते हुए इस्लाम धर्म कुबूल कर लिया। राज्य में इतना बड़ा कांड हो गया, मगर न तो आईएएस लॉबी बोली और न ही मुख्यमंत्री ने ही कोई बयान दिया। सब कुछ ऐसे हुआ जैसे राज्य में सरकार ही नहीं हो। खुद विपक्ष के रूप में कांग्रेस शांत रही। जब एक सीनियर आईएएस अफसर को वसुंधरा और नरेंद्र मोदी से शिकायत हो सकती है तो आम आदमी कहां जाए? हालत यह है कि वसुंधरा सरकार के मंत्री दलितों के साथ अत्याचार कर रहे हैं। कुछ दिनों पहले एक मंत्री ने दलित का ज्ञापन फाड़कर उसका अपमान कर दिया। इस मामले में भी वसुंधरा राजे खामोश रही।




प्रदेश में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। हालत यह है कि कहीं लग रही नहीं रहा कि सरकार नाम की भी कोई चीज है। रोज अपहरण, लूट, बलात्कार और अापराधिक घटनाएं हो रही हैं। आम आदमी छला जा रहा है। कोई रोकने वाला नहीं है। जिस सरकार के मंत्री अपने को असहाय समझे तो हो चुका काम। ऐसे मंत्रियों की फौज किस काम की जो अफसरों पर लगाम नहीं लगा सके। नौकरशाह और राजनीति के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। कुछ अफसर सरकार को चला रहे हैं। चाहे कोई विभाग हो, भ्रष्टाचार गहरा गया है। वसुंधरा सरकार के पास न तो विजन है न ही सोच। कोई काम ऐसा नहीं जिससे उसकी प्रशंसा की जाए। वसुंधरा सरकार सत्ता में आने से पहले विदेशों में डेरा डाले रही। अचानक अवतरित हुई और नरेंद्र मोदी की लहर में उनकी नैया पार हो गई। नैया पार तो हो गई, मगर सत्ता का विजन नहीं होने से आम आदमी तक कोई लाभ नहीं पहुंचा। हालत यह है कि आरसीए के विवादास्पद अध्यक्ष और भगोड़े ललित मोदी की मदद करने के मामले में उन पर गंभीर आरोप लगे, लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ। वैसे तो नरेंद्र मोदी सिद्धांतों की बातें करते हैं, मगर इस मामले में वसुंधरा को क्लीन चिट मिल गई। वसुंधरा सरकार ने आम जनता का दिल नहीं जीता। जाहिर है कि जनता को अब उनसे ज्यादा उम्मीदें भी नहीं है। दो साल के कार्यकाल में उल्लेखनीय कार्य कम ही है जिसे वे अपनी उपलब्धियां बता सकें।






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