Friday, 27 May 2016

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राजस्थान में भीषण अकाल, किसान बर्बाद और बदहाल


-आपदा प्रबंधन व राहत मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में कहा कि इस बार किसानों को इतनी राशि मिलेगी जितनी जिंदगी में कभी नहीं मिली होगी, मगर धरातल पर एक धेला नहीं मिला, बंजर भूमि, शून्य में तांकती आंखें और बूंद-बूंद पानी के संकट के बीच किसान आंसू बहा रहे हैं और पशुपालकों ने पलायन शुरू कर दिया है

-डी.के. पुरोहित-

राजस्थान अकाल की चपेट में हैं। किसान बदहाल है। पशुपालकों ने पलायन शुरू कर दिया है। इस साल औसत से 65 प्रतिशत कम बरसात हुई। खेत बंजर हो गए। किसान अपनी बर्बादी पर आंसू बहा रहे हैं। खेतों में जली-सूखी फसलें किसानों की लाचारगी और बेचारगी दिखा रही हैं। मंत्री व नेता वादे करते रहे, किसानों को न चैन है न सुकून। इस बार बादल नहीं बरसे। किसान आसमान की तरफ नजरें गड़ाए रहे, मगर इंद्रदेव मेहरबान नहीं हुए। किसानों ने साहूकारों से कर्जा लेकर अच्छे दिन की आस लगाई, मगर बादल रूठे रहे और एक बार फिर सूखा कंठ के भीतर उतर गया। पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है। गांव-ढाणियां बदहाली पर छटपटा रही हैं।
प्रदेश के जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर और कई अन्य जिले अकाल की चपेट में है। प्रदेश भर में 14487 गांव अभावग्रस्त घोषित किए गए हैं। अकाल प्रभावित इलाकों में गोशालाओं को अनुदान नहीं मिल रहा। राजस्थान सरकार ने केंद्र को मदद के लिए लिखा है, लेकिन केंद्र सरकार ने किसानों की मदद करना तो दूर राहत के दो बोल भी नहीं बोल रही। जालोर जिले के अभावग्रस्त घोषित गांवों में गोशालाओं के अकाल से बुरे हाल हैं। पानी व चारे के अभाव में पशु दम तोड़ रहे हैं। हालत यह है कि प्रतिदिन पांच-दस पशु दम तोड़ रहे हैं। सरकार मदद करना तो दूर उनकी तरफ देख तक नहीं रही। फसलों में खराबा हो गया और अकाल प्रभावित क्षेत्रों में पशु शिविरों व गोशालाओं को अनुदान तक नहीं मिला। किसान और पशुपालक बेबस हैं। पिछले साल गोशालाओं को 167 करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया था। जालोर में 407 गांव अभावग्रस्त हैं। 334 गांवों में 75 से 100 फीसदी फसलें खराब हुईं।
आपदा प्रबंधन एवं राहत मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने विधानसभा में बताया कि पूरे प्रदेश में 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक की अवधि में गिरदावरी रिपोर्ट मंगवाई गई है। प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 25 दिसंबर को केंद्र सरकार को स्थिति के बारे में लिखा जा चुका हैं। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा इस संबंध में एक पत्र केंद्र सरकार को भेजा जा चुका है और गृहमंत्री से मिलकर राजस्थान को ज्यादा से ज्यादा अनुदान देने के लिए मांग की गई है। राजस्थान में अकाल राहत की दृष्टि से 19 जिलों के 14487 गांवों को अकालग्रस्त घोषित किया गया है। जालोर जिले में अभावग्रस्त घोषित 407 गांवों में से 73 गांवों में 50 से 75 प्रतिशत खराबा हुआ है। 334 गांवों में 75 से 100 प्रतिशत फसलें खराब हो चुकी हैं। राज्य में पशु शिविरों से लेकर गोशालाओं के लिए वर्ष 2009-10 में 136 करोड़ रुपए अनुदान दिया गया था। वर्ष 2014-15 में यह आंकड़ा 146 करोड़ 56 लाख रुपए था। पिछले वर्ष सरकार ने 167 करोड़ 31 लाख रुपए की अनुदान राशि दी है।
कटारिया ने बताया कि अभावग्रस्त गांवों में भू-राजस्व वसूली स्थगित कर दी है। साथ ही आबियाना शुल्क रोक दिया गया है। अल्पकालीन फसली ऋण को मध्यकालीन ऋण में बदल दिया गया है। अकाल राहत एवं पशु शिविर के लिए कलेक्टरों को पत्र लिखा गया है।
पिछले दिनों अंतर मंत्रालय केंद्रीय अध्ययन दल जालोर एवं बाड़मेर जिले के अभावग्रस्त क्षेत्रों का जायजा लेकर जोधपुर पहुंचा और अटल सेवा केंद्र में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर प्राकृतिक आपदा एवं सहायता मंत्री गुलाबचंद कटारिया तथा राज्य में आए केंद्रीय अध्ययन दल की प्रमुख राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की प्रबंध निदेशक वसुधा मिश्रा के साथ विचार-विमर्श किया गया। नीति आयोग के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी (कृषि) रामानंद के साथ उपभोक्ता मामलों एवं खाद्य मंत्रालय के भारतीय खाद्य निगम के उप महाप्रबंधक संजीव भास्कर तथा केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय जल आयोग के निदेशक एचएस सेंटर ने दो दिन की यात्रा के दौरान जालोर एवं बाड़मेर जिले के अभावग्रस्त क्षेत्रों का जायजा लिया। उन्होंने इस दौरान किसानों, ग्रामीणों व जनप्रतिनिधियों से बातचीत करने के साथ फसलों के खराबे की स्थिति, पेजयल व्यवस्था तथा पशु संरक्षण व पशु आहार व्यवस्था का जायजा लिया। गौर करने वाली बात यह है कि इस टीम ने दो दिन में ही अपनी रिपोर्ट बना ली। जबकि इतने कम समय में सूखे व अकाल की स्थिति सतही तौर पर ही ली जा सकती है। चंद लोगों से मिलकर अकाल की स्थिति की रिपोर्ट कागजों में ही उतार ली गई, जबकि इस रिपोर्ट में लोचा बताया जा रहा है। बाड़मेर व जालोर में भयावह अकाल है, मगर दल ने दो दिन में ही खानापूर्ति कर रिपोर्ट अकाल राहत मंत्री को सौंप दी। ऐसे में इस रिपोर्ट की संपूर्णता पर सवाल उठना वाजिब है।
बाड़मेर में इस बार भीषण अकाल है। गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर जिले के 403 राजस्व गांव ही ऐसे हैं, जहां अच्छा जमाना है। 2206 राजस्व गांव ऐसे हैं, जहां 50 से 100 फीसदी तक फसलों में खराबा हुआ है। अच्छे जमाने में हर बार अकाल सहने वाली तहसीलें गड़रारोड व रामसर शामिल हैं, जबकि शेष सभी तहसीलों में अकाल की मार है। कभी सूखे तो कभी बाढ़, अतिवृष्टि सहने वाले थार में अधिक बारिश के अकाल ने एक बार फिर से दस्तक दे दी है। राजस्व विभाग की ओर से हाल ही में की गई गिरदावरी रिपोर्ट के आधार पर रामसर तहसील के 177, शिव के 62 व गड़रा रोड के 164 गांवों में ही जमाना है। यहां 33 फीसदी से कम फसल खराबा हुआ है। शेष जगह अकाल की स्थिति है। 50 फीसदी से खराबे गांव मात्र 103 और तहसीलें हैं। बाड़मेर के 43, शिव के 50, पचदरा तहसील के 10 राजस्व गांव ऐसे हैं जहां 33 फीसदी से ज्यादा और 49 फीसदी से कम फसल खराबा हुआ है। जिले की धोरीमन्ना, गुड़ामालानी व सेड़वा तहसील में इस बार औसत से ज्यादा बारिश हुई। अतिवृष्टि व बाढ़ का यहां असर रहा। बावजूद इसके ये तहसीलें अकाल की चपेट में हैं। इसका कारण बारिश से फसलें खराब हो गई। बारिश व बाढ़ ने पहले खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचाया और बाद में बुवाई की तो बारिश नहीं हुई। इसके चलते फसलें बर्बाद हो गई।
प्रदेश में फसलों का खराबा और अकाल की स्थिति पर कांग्रेस के विधायक सुखराम विश्नोई ने विधानसभा में मुद्दा उठाया, लेकिन अकाल राहत मंत्री ने बड़बोले बोल ही बोले। कटारिया ने कहा कि केंद्र से इस बार इतना पैसा मिलेगा कि आपके जीवनकाल में नहीं मिला। बहरहाल विधानसभा में अकाल पर बोलने वाले कम थे। खुद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खामोश रहे। उन्होंने एक भी सवाल नहीं पूछा। यूं तो गहलोत सार्वजनिक मंच पर वसुंधरा सरकार की खूब आलोचना करते रहते हैं, मगर जब बोलने की बारी आती है तो खामोश रह जाते हैं। विधायक सूर्यकांता व्यास, कैलाश भंसाली, जोगाराम पटेल, पब्बाराम विश्नोई, बाबूसिंह राठौड़, कमसा मेघवाल, छोटूसिंह व शैतानसिंह ने अकाल राहत पर सरकार को जगाने की बजाय खामोश ही रहे। अशोक गहलोत तो वसुंधरा के धुर विरोधी रहे हैं, लेकिन जब किसानों और पशुपालकों का पक्ष रखने की बारी आई तो खामोशी ओढ़ ली।
इधर, सूखे के मुद्दे पर सरकारें कितनी गंभीर है, इसका पता सुप्रीम कोर्ट में सात अप्रैल को चला। सुनवाई शुरू हुई तो एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद पेश ही नहीं हुई। जस्टिस मदन बी लोकुर व एनबी रमन घंटे भर तक इंतजार करते रहे। अंत में गुस्से में बोले-दो जजों के पास कोई काम तो है नहीं, बैठकर बस घड़ी घूरते रहना है। आपको लगता नहीं कि सूखा अहम मसला है।

बाड़मेर तो अकाल का घर है :
रेगिस्तानी जिला बाड़मेर प्राचीन काल से अकाल का घर है। यहां सौ साल के आंकड़ें देखें तो पाएंगे 70 साल तो सूखे और अकाल में ही बीत गए। ऐसे में यहां की जमीन पूरी तरह से बंजर ही हो गई है। फसल के नाम पर जीरा, रायड़ा, ईसबगोल, बाजरा आदि सहित अन्य फसलें ही होती है। लेकिन बरसात का हर साल अकाल और सूखे की स्थिति ने लोगों की कमर तोड़ दी है। थार में फिर अकाल के हालात हैं। यह भयावहता प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके बावजूद किसानों ने उम्मीद नहीं छोड़ी। अपना वजूद बनाए हुए हैं। दरअसल अकाल को बरसात से जोड़कर देखा जाता है। दिल्ली में बैठे नेता, अफसर कुछ समझ ही नहीं पाते हैं। न ही कोई कारगर योजना बनाई गई। क्योंक आस्ट्रेलिया या खाड़ी देशों में और भी कम बरसात होती है, मगर वहां पर अकाल का साया नहीं पड़ता, क्योंकि सरकारी प्रबंधन और योजनाएं इस कदर बनाई गई है कि अकाल से जूझ पड़ते हैं। जैसलमेर जिले में तो रियासत काल में पालीवाल ब्राह्मणों ने खडीण प्रणाली विकसित की थी, जिससे जब चाहें फसल ले ली जाती थी। वो समय थार का समृद्धि काल था।
अंगेजों का जब देश पर शासन था तो अकाल से निपटने के लिए अकाल संहिता बुकलेट बनाई गई थी, देश की सरकार अभी तक उसी ढर्रे पर चल रही है। आस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड और सऊदी अरब में अकाल से निपटने की नीतियां बनाई गई हैं, लेकिन हमारा देश लकीर का फकीर बना हुआ है। बाड़मेर में इस बार भीषण अकाल है। काजरी के अनुसार यहां हालात विकट है। बाड़मेर के किसान जयराम दास ने बताया कि दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में बूंद-बूंद पानी का संकट है। खेती हो नहीं रही और पानी की कमी के चलते पलायन करना ही एक रास्ता बचा है। पशुपालक और किसान गुजरात की तरफ पलायन कर रहे हैं। रोजी रोटी का कोई जरिया नहीं है। पशुओं को चारा नहीं मिल रहा है। यहां पलायन की स्थिति दूसरे इलाकों के मुकाबले अधिक है। पूरे परिवार की बजाय घर का एक-दो सदस्य घर से बाहर जाता है। पलायन नहीं कर पाते वो लोग बेहद गरीब हैं। यहां रहने वालों का सारा पैसा पानी, अनाज और चारा खरीदने में खर्च हो जाता है। 1954 का अकाल देख चुकी चूनी बाई ने बताया कि आज भी बाड़मेर में यही हाल है। सरकार अकाल से निपटने के लिए नियोजित प्रयास नहीं करती। सरकारी नुमाइंदे बहुम कम बरसात, बरसात की अनियमितता, थार की रेतीली आंधियां, तापमान अगर 45 से 50 डिग्री पहुंच जाए और ओले-पाला और कई किस्म के फसलों को रोग लग जाए तो उसे अकाल की स्थिति मानती है।
गांवों में हालात यह है कि ग्रामीणों को पानी बड़ा दाम देकर खरीदना पड़ रहा है। यहां रोजी रोटी का दूसरा जरिया चारा है। नगाना और खेतिया का तला के लोग गाय, ऊंट, भेड़, बकरी और गधा पालते हैं। बढ़ते तापमान के अनुसार भैंस की काली चमड़ी ज्यादा पानी मांगती है। जिन चरवाहों के पास 500 से ज्यादा पशु हैं, वे गुजरात और मध्यप्रदेश की ओर पलायन कर रहे हैं। किसान अमानत खान का कहना है कि इस बार पानी उम्मीद के मुताबिक नहीं बरसा। ऐसे में खेत में फसलें जल गई। सर्दी के मौसम में बिना मौसम बरसात होने से फसलों में खराबा हुआ। कहने का मतलब यह है कि बरसात के दिनों में कम बरसात और सर्दी में अचानक बिन मौसम बरसात ने जीना मुहाल कर दिया। अब एक ही चारा बचा है, पड़ोसी राज्यों की ओर पलायन। सरकार ने हाल ही में मनरेगा में मजदूरी बढ़ा दी है, लेकिन जिन गांवों में नाडियां व तालाब नहीं है, वहां इस प्रकार की योजना का उपयुक्त लाभ नहीं मिल रहा।

जैसलमेर : पग-पग पर अकाल :
इधर, रेगिस्तानी जिले जैसलमेर में करीब दो सौ गांवों में अकाल के हालात हैं। जनप्रतिनिधि ध्यान नहीं दे रहे हैं। जैसलमेर के विधायक छोटूसिंह कोई काम नहीं कर रहे। उन्होंने अकाल से पीड़ित लोगों की तरफ ध्यान नहीं दिया। जब पूछा जाता है तो कहते हैं हमारी सरकार काम कर रही हैं। वसुंधरा सरकार हर कदम पर नाकाम साबित हुई है। भारत-पाक सीमा पर बसे जैसलमेर में जल संकट व्याप्त हो गया है। नहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो शेष गांवों व कस्बों में स्थिति विकट है। महिलाएं दूर-दूर से गधों पर पानी का परिहवन कर रही हैं। कई इलाकों पर ऊंटों पर पानी लाया-ले जाया जाता है। दूरस्थ ढाणियों में तो महिलाएं दस-दस किलोमीटर दूर से सिर पर घड़ा लेकर पानी लाती हैं। एक समय था जब लोग अपनी बेटी का रिश्ता जैसलमेर में करना पसंद नहीं करते थे। अगर रिश्ता करते भी थे तो जिन घरों में चार-पांच ऊंट होते थे, वहीं बेटी की शादी करते थे। यह स्थिति आज भी पूरी तरह नहीं बदली। ग्रामीण इलाकों में जलदाय महकमा दो-तीन सप्ताह में एक बार टैंकर से पानी सप्लाई करता है। मगर यह अपर्याप्त है। इस बार जैसलमेर में सामान्य से कम बरसात हुई। ऐसे में अब ज्यों-ज्यों गर्मी बढ़ रही है ग्रामीण इलाकों में पानी की किल्लत हो रही है। चारा डिपो नहीं खुलने से महंगे दामों पर चारा खरीदना पड़ रहा है। गोशालाओं में पशु मर रहे हैं। आज से बीस साल पहले विहिप के प्रमुख अशोक सिंघल ने घोषणा की थी कि जैसलमेर में दस लाख गोधन को पालने के लिए सेवण घास का उपयोग किया जाएगा। मगर आज तक ऐसा केंद्र नहीं बना। सेवण घास भी सिमट रही है। ओरण क्षेत्र में अतिक्रमण होने से जहां घास का संकट है वहीं तालाबों व नदियों के मुहाने पर अतिक्रमण होने और बस्तियां बस जाने से बरसाती पानी तालाबों में नहीं आ रहा। यह स्थिति खतरनाक है। जैसलमेर प्रशासन कोई कदम नहीं उठा रहा। ऐसे में पानी के पारंपरिक स्रोत खत्म हो रहे हैं। जैसलमेर जिले में 700 से अधिक परंपरागत जलस्रोत बेकार हो गए हैं। जैसलमेर के विधायक छोटूसिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री के प्रयासों से अब परंपरागत जलस्रोतों का कायापलट किया जाएगा। लेकिन वे भी अकाल से निपटने के लिए मुख्यमंत्री के प्रयासों पर संतुष्ट नहीं हैं।
इस बार गोशालाओं और चारा डिपो में चारा नहीं पहुंचने से गोधन की स्थिति बदहाल है। कोई सुनने वाला नहीं है। गांवों में हालत यह है कि सवर्ण जातियां पीने के पानी के टांकों पर ताला लगा कर रहती हैं। जब मीठे पानी की जरूरत होती है, वे टांके का ताला खोलकर पानी निकाल लेते हैं। मगर दलित परिवारों को इन टांकों से पानी नहीं मिलता। जैसलमेर रेतीला क्षेत्र है। बूंद-बूंद पानी के लिए यहां मशक्कत करनी पड़ती है। सुबह से ही पानी का जुगाड़ करने का बंदोबश्त करना पड़ता है। जैसलमेर में इस बार पानी कम बरसा। हवाएं बादल उड़ा ले गई। किसान मायूस हो गया। यहां नहरी क्षेत्र के अलावा विभिन्न गांवों में फसलें कम हुई या न के बराबर हुई। जैसलमेर के पूर्व विधायक गोवर्धन कल्ला का कहना है कि वसुंधरा सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हुई है। अभी तक राहत के कार्य नहीं किए गए। हालत यह है कि भाजपा नेता लुभावने नारे और आश्वासन दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि अच्छे दिन आ गए, मगर कहां आए अच्छे दिन। फसलों के खराबा होने से किसान कर्जा चुकाने की स्थिति में नहीं है। कल्ला ने बताया कि वसुंधरा सरकार पश्चिमी राजस्थान की उपेक्षा कर रही है। जैसलमेर के विधायक पर उन्होंने आरोप लगाया कि वे जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे हैं। दो सौ गांवों से अधिक जगह पर पानी की समस्या है। किसान और पशुपालक भूखों मर रहे हैं।
जोधपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष सईद अंसारी बताते हैं कि राजस्थान में बरसात के पानी को रिस्टोर करने की समस्या है। बरसात का पानी व्यर्थ बह जाता है। विकास कार्यों के चलते सड़कों का जाल तो बिछ गया, मगर भूमि में पानी का भराव नहीं हो रहा। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कागजों में ही दिखाया जा रहा है, ऐसे में पानी का संकट हो गया है। उन्होंने बताया कि राजस्थान में अकाल से हर साल निपटना है तो वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को कारगर बनाना होगा। तभी अकाल का स्थाई हल निकाला जा सकेगा। यह बदलाव पूरे प्रदेश में करना होगा।
कांग्रेस प्रदेश कमेटी के सचिव रूपाराम धणदे ने बताया कि राजस्थान में अकाल की भयंकर स्थिति है। भाजपा सरकार इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा रही है। कागजों में विकास कार्य दर्शाया जा रहा है। आए दिन बड़े-बड़े बयान दिए जा रहे हैं, मगर धरातल पर काम नहीं हो रहा। धणदे ने बताया कि आजादी के इतने सालों बाद भी अकाल का स्थाई हल नहीं खाेजा गया। कांग्रेस के शासन में जब अकाल पड़े तो सत्ता लोगों के साथ खड़ी नजर आई, मगर वसुंधरा सरकार अपनी मस्ती में मस्त है। आम लोगों, किसानाें और पशुपालकों की उपेक्षा की जा रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले दिनों जोधपुर में थे। उन्होंने वसुंधरा सरकार पर कई आरोप लगाए, मगर एक बार भी अकाल का जिक्र नहीं किया। उन्होंने विधानसभा में भी जनता की पुकार और आवाज नहीं उठाई। वे इस खुमारी में है कि पिछले उनके कार्यकाल में खूब काम हुए। लेकिन जनता को इससे मतलब नहीं है। वे तो सत्ता की तरफ आशा भरी नजर से देख रही है। जब सत्ता काम नहीं करे तो विपक्ष की भूमिका बढ़ जाती है। हालत यह है कि अशोक गहलोत विधानसभा में बैठे रहते हैं और कोई प्रश्न नहीं पूछ रहे। अकाल के बारे में गरीबों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं है। विपक्ष कमजोर है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट है। वे किसानों का दर्द समझते हैं, मगर वे भी खामोश है। ऐसे में भाजपा सरकार को रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है और वह अपनी मनमानी कर रही है।



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