Saturday, 24 July 2021

अरस्तु के श्राप की वजह से हुई थी सिकंदर की मौत!

-सिकंदर ने पूरी दुनिया लगभग जीत ली थी, मगर धैर्य नहीं रख पाया और आखिर 33 वर्ष की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई, कहते हैं उसकी मौत बुखार से हुई थी, लेकिन यह सत्य नहीं है, उसकी मौत सांप काटने से हुई थी

-सिकंदर ने एक बार अपने गुरु अरस्तु को डराने के लिए सोते हुए उनके ऊपर मरा हुआ सांप डाल दिया था, तब अरस्तु की आंख खुल गई और उन्होंने गुस्से में आकर कहा-मूर्ख जिस ताकत पर तुझे इतना नाज है, धैर्य नहीं होने से तू अपने मकसद में कामयाब नहीं होगा और सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा

(एजेंसी). अल हिल्लह

सिकंदर की मौत कैसे हुई थी? इस पर हुई रिसर्च में पता चलता है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी। अरस्तु सिकंदर के गुरु थे और शिक्षा काल के दौरान एक बार सिकंदर ने अपने गुरु अरस्तु पर सोते हुए मरा हुआ सांप डाल दिया था, बताया जाता है कि अरस्तु ने सिकंदर को गुस्से में आकर कहा-मूर्ख तुझमें धैर्य नहीं है और तुमने गुरु को डराने का प्रयास किया है। सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा और धैर्यहीन होने से तुम अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाओगे। बताया जाता है कि 33 साल की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई। इतिहास में बताया जाता है कि उसकी मौत बुखार यानी टाइफाइड से हुई थी, मगर सच तो यह है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी। यह नया रहस्योद्घाटन यहां एक लाइब्रेरी में मिली पांडुलिपि के हवाले से एक वैद्य ने वर्षों पहले ही कर दिया था।   

इस पांडुलिपि की भाषा पढ़ने में नहीं आ रही थी, लेकिन अलीगढ़ के एक वैद्य जेठमल व्यास के प्राचीन हस्तलिखित पन्ने पर इतना लिखा हुआ मिलता है कि सिकंदर की मौत सांप काटने से हुई। पन्ने पर लिखा है कि गुरु पे मरो सांप लैटायो, गुरु बोल्यो-सर्प राजा ने खायो, सिकंदर प्राण गंवायोगौरतलब है कि वेद्य जेठमल व्यास ने 21 साल की उम्र में अल हिल्लह का दौरा किया था। वहां किसी लाइब्रेरी में उन्हें अरस्तु को पढ़ने का मौका मिला और उन्हें जो शोधपरक जानकारी मिली उन्होंने किसी पन्ने पर इसे लिख दिया। जेठमल व्यास खुद वैद्य होने के साथ ही घुम्मकड़ थे। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी, गुजराती, बंगाली, उर्दू और कई तरह की भाषाएं आती थीं। जिस लिपी में सिकंदर की मौत के बारे में लिखा गया है वह बेबीयाई लिपि है। इस लिपि को दुनिया में कम लोग ही जानते हैं। इसी बेबीयाई लिपि में व्यास ने ब्रह्मांड की रचना और कालखंड को उजागर किया था, मगर ये पांडुलिपियां  उनके परिजनों ने रद्दी समझकर बेच दी।

सिकंदर ने दुनिया जीती, मगर मौत ने आकर नर्तन किया :

सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व यूनान के मैसेडोन या मकदूनिया के पेला नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता फिलिप द्वितीय मकदूनिया और ओलंपिया के राजा थे। उनकी माता ओलंपिया जो एपिरुस की राजकुमारी थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी माता एक जादूगरनी थी, जिनको सापों के बीच रहने का शौक था। इसी वजह से सिकंदर भी सांपों से खेला करता था। इसी खेल-खेल में सिकंदर ने गुरु के गले में सांप डाल दिया। उसकी एक बहन थी, जिसका नाम क्लियोपैट्रा था। सिकंदर और उसकी बहन की परवरिश पेला के ही शाही दरबार में हुई थी। सिकंदर बुद्धिमान थे, उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही घुड़सवारी सीख ली। सिकंदर की प्रारंभिक शिक्षा इनके एक रिश्तेदार द स्टर्न लियोनिडास से हुई। उनके पिता फिलिप चाहते थे कि वे पढ़ाई के साथ -साथ युद्ध विद्या का भी ज्ञान प्राप्त करें और एक महान योद्धा बनें। इसलिए बचपन से ही इनको युद्ध विद्या जैसे तलवारबाजी, धनुर्विद्या, घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी द स्टर्न लियोनिडास से ही प्राप्त की। इसके पश्चात इनके पिता इनके आगे की शिक्षा के लिए एक महान दार्शनिक और विचारक अरस्तु को नियुक्त किया गया। उस वक़्त इनकी उम्र 13 साल थी। अरस्तु के निर्देशन में ही सिकंदर ने साहित्य, विज्ञान, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन किया। सिकंदर की उम्र जब 20 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के निधन के बाद 336 ईसा पूर्व में सिकंदर ने मेसेडोनिया या का सम्राट बनने के लिए अपने सौतले और चचेरे भाइयों की हत्या करवा दी। इसमें सिकंदर की मां ओलंपिया ने सिकंदर की मदद की। सम्राट बनने के बाद सिकंदर ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए एक विशाल सेना का गठन किया और अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए सिकंदर ने यूनान के कई भागों पर अधिकार कर अपनी जीत दर्ज की। इसके पश्चात सिकंदर एशिया माइनर को जीतने के लिए निकल पड़ा। इस युद्ध में सिकंदर ने सीरिया को पराजित कर मिस्र, ईरान, मेसोपोटामिया, फिनिशिया जुदेआ, गाजा और बक्ट्रिया प्रदेश को भी पराजित कर अपने कब्जे में ले लिया। उस समय सभी राज्य फारसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो सिकंदर के साम्राज्य का लगभग 40 गुना था। इसी दौरान सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व में मिस्र में एक नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम अपने नाम पर इलेक्जेंड्रिया रखा और यहां एक विश्वविद्यालय भी बनवाया। सिकंदर ने अपनी विशाल सेना और कुशल नेतृत्व से फारस के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हराकर स्वयं वहां का राजा बन गया। फारस की राजकुमारी रुकसाना से विवाह कर सिकंदर ने जनता को भी अपनी ओर कर लिया। इसके अलावा सिकंदर ने कई जगहों पर अपनी जीत हासिल की। सिकंदर ने भारत पर 326 ईसा पूर्व आक्रमण किया। उस समय भारत छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। सिकंदर खैबर दर्रे से होकर भारत पहुंचा और उसने पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अंभी पर किया। अंभी ने कुछ समय बाद सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस समय तक्षशिला में आचार्य चाणक्य एक शिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे थे। उनसे ये विदेशी हमले देखे नहीं गए और सिकंदर से लड़ने के लिए बहुत से राजाओं के पास गए, लेकिन आपसी मतभेद के कारण कोई भी सिकंदर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। उस समय भारत में मगध में राजा घनानंद का राज था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। चाणक्य घनानंद के पास भी गया, लेकिन घनानंद ने चाणक्य का अपमान कर उसे महल से निकाल दिया। जिसका परिणाम आगे चलकर घनानंद को उठाना पड़ा। तक्षशिला के राजा अंभी को हराकर सिकंदर झेलम और चिनाब नदी की ओर बढ़ा और नदी के किनारे ही सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में पोरस की हार हुई। झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पौरस के बीच भयानक युद्ध की शुरुआत हुई। पहले दिन पौरस ने सिकंदर का डटकर सामना किया, लेकिन मौसम खराब होने के कारण पौरस की सेना कमजोर पड़ने लगी। ये देखकर सिकंदर ने पौरस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा, लेकिन पौरस ने हार नहीं मानी और युद्ध करते रहे। पौरस जानते थे कि उनकी हार निश्चित है, लेकिन उन्हें किसी की अधीनता स्वीकार नहीं थी। सिकंदर ने पौरस को पराजित तो कर दिया, लेकिन उसका भी बड़ा नुकसान हुआ। सिकंदर ने पौरस के साथ मित्रता कर ली और उससे जीता राज्य वापस कर दिया और सेना के साथ वापस लौटने का फैसला किया। लौटते वक्त बेबीलोन में सिकंदर की सांप के काटने से मौत हो गई।

 

 

Wednesday, 21 July 2021

दूसरे विश्वयुद्ध के 76 सालों में सामरिक ताकत बने जापान, इटली और जर्मनी

-दुनिया में पांच देशों के पास वीटो पॉवर है-अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन, अब विश्वयुद्ध में हारे जापान, इटली और जर्मनी फिर बिने दुनिया के लिए खतरा

 

-जापान के पास 61, जर्मनी के पास 35 और इटली के पास 17 परमाणु बम, आठ दशक में इन देशों ने जुटाई ताकत और विश्व को चुनौती देने को तैयार

 

 

डीके पुरोहित की जापान. इटली. जर्मनी से विशेष रिपोर्ट

 

दूसरे विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस की विजय के बाद जापान, इटली और जर्मनी ने अपनी सामरिक ताकत बढ़ा ली है। 76 साल बाद फिर से इन देशों ने हर क्षेत्र में अपने को मजबूत कर दिया है। वो भी तब जब वीटो पॉवर अमेरिका, रूस, ब्रिटेल, फ्रांस और चीन के पास है। इससे समझा जा सकता है कि इन देशों के मन में कितनी खुंदस है। हालात यह है कि जर्मनी के पास 35, जापान के पास 61 और इटली के पास 17 परमाणु बम है। 6 अगस्त को 1945 को हिरोशिमा और 9 अगस्त 1945  को नागासाकी पर हमले के बाद जापान ने अमेरिका के आगे समर्पण तो कर दिया, मगर इन 76 सालों में वो नई सामरिक ताकत बनकर उभरा है। जापानी लोग आज भी वे हमला नहीं भूले हैं। एक समय था जब जापान आर्थिक और सामरिक ताकत हुआ करता था। अमेरिका द्वारा परमाणु हमला करने के बाद जापान ने फिर अपने को ताकत बनाने में कोई कसर नहीं रखी। जापान यह कभी नहीं भूल पाएगा कि उसने अमेरिका के आगे समर्पण किया था। जापान के राष्ट्रपति शिंजो आबे ने जापान को फिर से धुरी राष्ट्र की तरह स्थापित किया है। थल, जल और हवाई ताकत में जापान इतना आगे बढ़ चुका है कि वह मित्र राष्ट्रों के लिए खतरा बन सकता है। इन 76 सालों में जापान फिर से ताकतवर बनकर उभरा है।

 

जापानी सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि जापान अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। हम 1945 की त्रासदी नहीं भूले हैं। हम टूटे जरूर मगर आज भी ताकत हैं। अमेरिका यह न समझें कि हमें 1945 की तरह मसल देगा। हमारी टेक्नोलॉजी दुनिया से बेहतर है। अब अमेरिका से मुकाबला करने के लिए हम आर-पार की लड़ाई लड़ सकते हैं। खुद राष्ट्रपति आबे ने अपने मंसूबे जाहिर कर दिए हैं। पिछले दिनों हुई सीक्रेट मीटिंग में जापान ने अपने सामरिक ताकत को परखा। परमाणु हमले की नौबत आने पर जापान अब पीछे नहीं हटने वाला। जापान ने जमीनी जंग के लिए अपने को तैयार किया है तो हवाई सैन्य ताकत भी बढ़ा चुका है। जापान अपने देश से अमेरिका पर परमाणु हमला करने के लिए कई विमान बना चुका है। हालांकि युद्ध की आशंका फिलहाल नहीं है, लेकिन जापान अब मजबूत राष्ट्र बन चुका है।

 

एक नजर दूसरे विश्वयुद्ध पर : जानिए मित्र राष्ट्रों व धुरी राष्ट्रों के बारे में :

 

दूसरे विश्व युद्ध के बाद की तस्वीर देखें तो मित्र राष्ट्रों से जो देश जुड़े हुए थे, वे विश्व की ताकत बन चुके हैं। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस के पास वीटो पॉवर है। जबकि धुरी राष्ट्रों जर्मनी, जापान और इटली के हालात खराब हो गए थे। दूसरे विश्व युद्ध के समय भारत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था और यहां के राजाओं ने अंग्रेजों की युद्ध में मदद की थी। केवल सुभाषचंद्र बोस ऐसे क्रांतिकारी थे जो जर्मनी के हिटलर से मिलकर अंग्रेजों को भारत से भगाना चाहते थे। वो समय ऐसा था जब ब्रिटेन लगभग अजेय था। आज भी ब्रिटेन के पास वीटो पॉवर है। चीन तब सामरिक ताकत नहीं था। जापान ने चीन पर हमला कर उसे नेस्तनाबूद करने की ठान ली थी। लेकिन चीन की मदद में मित्र राष्ट्र आगे आए। जो इन मित्र राष्ट्रों से जुड़े थे, यानी ब्रिटेन, अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन अब दुनिया की सशक्त शक्तियां बन चुके हैं। लेकिन यही खुंदस जापान आज भी लेकर बैठा है और 76 साल में दुनिया को चुनौती देने की स्थिति में है। 1945 में जब हिरोहितो ने अमेरिका के आगे समर्पण किया था, तब उन्हें भी इस बात का एहसास नहीं था कि इन 76 सालों में जापान फिर से आर्थिक और सामरिक ताकत बनेगा।   

 

दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने चीन पर भी हमला किया था। दरअसल दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत 1 सितंबर 1939 से मानी गई है। जब जर्मनी ने पोलैंड पर हमला बोल दिया। उसके बाद फ्रांस ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा कर दी तथा ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों ने भी इसका अनुमोदन किया। जर्मनी ने 1939 में यूरोप में एक बड़ा साम्राज्य खड़ा करने के लिए पोलैंड पर हमला बोल दिया। 1939 के अंत से 1941 की शुरुआत तक अभियान और संधि की एक शृंखला में जर्मनी ने महाद्वीपीय यूरोप का बड़ा भाग या तो अपने अधीन कर लिया था या उसे जीत लिया था। नाट्सी-सोवियत समझौते के तहत सोवियत रूस अपने छह पड़ोसी मुल्कों, जिसमें पोलैंड भी शामिल था, पर काबिज हो गया। फ्रांस की हार के बाद यूनाइटेड किंगडम और अन्य राष्ट्रमंडल देश ही धुरी राष्ट्रों से संघर्ष कर रहे थे, जिसमें उत्तरी अफ्रीका की लड़ाइयां लंबी चली। इसमें अटलांटिक की लड़ाई शामिल थी। जून 1941 में यूरोपीय धुरी राष्ट्रों ने सोवियत संघ पर हमला बोल दिया। दिसंबर 1941 को जापानी साम्राज्य भी धुरी राष्ट्रों की तरफ से इस युद्ध में कूद गया। दरअसल जापान का उद्देश्य पूर्वी एशिया और इंडोचायना में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का था। उसने प्रशांत महासागर में यूरोपीय देशों के आधिपत्य वाले क्षेत्रों तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के पर्ल हार्बर पर हमला बोल दिया और जल्द ही पश्चिमी प्रशांत पर कब्जा बना लिया। सन 1942 में आगे बढ़ती धुरी सेना पर लगाम तब लगी जब पहले तो जापान सिलसिलेवार कई झड़पें हारा। यूरोपीय धुरी ताकतें उत्तरी अफ्रीका में हारीं और निर्णायक मोड़ तब आया जब उनकाे स्तालिनग्राड में हार का मुंह देखना पड़ा। सन 1943 में जर्मनी पूर्वी यूरोप में कई झड़पें हारा। हटली पर मित्र राष्ट्रों ने आक्रमण बोल दिया और अमेरिका ने प्रशांत महासागर में जीत दर्ज करनी शुरू कर दी। इसके कारणवश धुरी राष्ट्रों को सारे मोर्चे पर सामरिक दृष्टि से पीछे हटने की रणनीति अपनाने को मजबूर होना पड़ा। सन 1944 में जहां एक और पश्चिम मित्र देशों ने जर्मनी द्वारा कब्जा किए हुए फ्रांस पर आक्रमण किया वहीं दूसरी ओर से सोवियत संघ ने अपनी खोई हुई जमीन वापस छीनने के बाद जर्मनी तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों पर हमला बोल दिया। सन 1945 के अप्रैल-मई में सोवियत और पोलैंड की सेनाओं ने बर्लिन पर कब्जा कर लिया और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध का अंत 8 मई 1945 को तब हुआ जब जर्मनी ने बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया। सन 1944 और 1945 के दौरान अमेरिका ने कई जगहों पर जापानी सेना को शिकस्त दी और पश्चिम प्रशांत के कई द्वीपों पर अपना कब्जा जमा लिया। जब जापानी द्वीप समूह पर आक्रमण करने का समय करीब आया तो अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु बम गिरा दिए। 15 अगस्त 1945 को एशिया में भी दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। जापानी साम्राजय ने आत्मसमर्पण कर लिया।

 

अब जानिए जर्मनी के हालात : अब और तब : 35 परमाणु बमों से संपन्न :

 

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स हिटलर को पसंद करते हैं। कभी हिटलर ने दुनिया जीतने का ख्वाब देखा था। पिछले 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत बनकर उभरा है। जर्मनी के पास 35 परमाणु बम है। साथ ही हर तरह के आधुनिक हथियारों की शृंखला है। अगर हथियारों पर नजर डालें तो हर दृष्टि से जर्मनी ने तरक्की की है। उसकी जमीनी, जलीय और हवाई सेना बेजोड़ है। जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है, जिसमें राष्ट्रपति देश का नाममात्र का प्रधान होता है। वहां सरकार का प्रधान चांसलर ही होता है। चांसलर शॉल्त्स का मानना है कि अमेरिका को मात देने के लिए देश की सामरिक ताकत बढ़ानी होगी। इसी कड़ी में पिछले आठ दशक में जर्मनी के प्रधानों ने अपने को मजबूत किया है। हालांकि जर्मनी ताकत है, मगर शॉल्त्स सीधे तौर पर अमेरिका से दुश्मनी नहीं लेना चाहते। भविष्य में युद्ध हुआ तो जर्मनी अपने को साबित करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

 

इतिहास पर नजर डालें तो जर्मनी के एडोल्फ हिटलर 1923 में जर्मन सरकार को उखाड़ने के असफल प्रयास के बाद अंतत: 1933 में जर्मनी के कुलाधिपति बन गए।   

उन्होंने लोकतंत्र को खत्म कर वहां एक कट्‌टरपंथी, नस्लीय प्रेरित आंदोलन का समर्थन किया और उन्होंने जर्मनी को शक्तिशाली सैन्य ताकत बनाने का प्रयास किया। दूसरे विश्वयुद्ध में हार के साथ ही जर्मनी ने समर्पण कर दिया था। हिटलर की वजह से जर्मनी पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। तानाशाह हिटलर हालांकि दुनिया को विजय नहीं कर पाया, मगर इन 76 सालों में जर्मनी फिर से ताकत बनकर उभरा है। जर्मनी ने टैक्नोलॉजी पर विशेष तौर पर फोकस किया है। जापान की ही तरह जर्मनी अपने को मजबूत बनाने में लगा रहा है। पांच शक्तिशाली राष्ट्रों में उसका नंबर नहीं है, लेकिन वह अपने इतिहास को भूलकर नई ताकत के रूप में अपने को स्थापित कर चुका है।

 

इटली : अब और तब : 17 परमाणु बमों की ताकत, कोरोना से जूझ रहा :

 

इटली के प्रधानमंत्री ज्यूसेप कोंटे इन दिनों कोरोना महामारी से देश को बचाने की जुगत में है। कोरोना से जितना नुकसान इटली को हुआ है, उससे और कोई देश होता तो कमर टूट जाती। लेकिन इटली खड़ा है। पिछले 76 साल में इटली ने सामरिक ताकत खूब बढ़ा ली है। वो दुनिया के शक्तिशाली देशों में शुमार हो चुका है। इटली के पास 17 परमाणु बम है। उसकी सेना हर दृष्टि से मजबूत है। हवाई हमलों में उसका कोई सानी नहीं है। यह वही इटली है जिसके मुसोलिनी फासीवादी ताकतों के समर्थक माने जाते हैं। मुसोलिनी ने 1935 में अबीसीनिया पर हमला किया। दूसरे विश्वयुद्ध का आगाज तभी से माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में हिटलर और मुसोलिनी का गठबंधन हो चुका था। जब दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तो हिटलर और मुसोलिनी यूरोप में एक तरफ थे और दूसरी तरफ ब्रिटेन और फ्रांस थे। इसमें और भी शक्तियां आती गईं और पहले हिटलर की विजय हुई, फिर फासिस्टों की पराजय शुरू हुई। पराजयों के कारण 25 जुलाई 1943 को मुसोलिनी को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वे हिरासत में ले लिए गए। सितंबर में ही हिटलर ने उन्हें छुड़ाया और उत्तर इटली में एक कठपुतली राजय के प्रधान के रूप में स्थापित किया। इसके बाद भी फासिस्ट हारते ही चले गए और 26 अप्रैल 1945 को मित्र सेनाएं इटली पहुंच गई। देश के गुप्त प्रतिरोधकारियों ने इनका साथ दिया। उसी दिन मुसोलिनी स्विट्जरलैंड भागने की चेष्टा करते हुए प्रतिरोधकारियों द्वारा पकड़ लिए गए और 26 अप्रैल 1945 को उन्हें मृत्युदंड दिया गया।