Saturday, 12 September 2020

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गीत डीके पुरोहित (1) मंजिल मिली न रास्ता मिला... मंजिल मिली न रास्ता मिला अब कितना चलना बाकी है इस धूप का अंत कहां? सांझ को कितना ढलना बाकी है सोचा था कोई फरिश्ता आकर मुझको राह दिखाएगा सपनों को सच करने को मेरा साथ निभाएगा वक्त के अंगारों को जीवन में कितना सहना बाकी है मंजिल मिली न रास्ता मिला, अब कितना चलना बाकी है... जिस चौराहे से चला था फिर लौट वहीं पर आता हूं चलता ही जाता हूं मैं मगर थाह नहीं ले पाता हूं जीवन के इस अग्नि पथ पर कितना जलना बाकी है मंजिल मिली न रास्ता मिला, अब कितना चलना बाकी है यह कैसी भूलभुलैया है, कोई आकर मुझको समझाए मेरी बांह पकड़कर मुझको मंजिल तक जा पहुंचाए बहारों के इंतजार में पतझड़ से कितना लड़ना बाकी है मंजिल मिली न रास्ता मिला, अब कितना चलना बाकी है...

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