मन की बात वे ही बोले
मन की बात
वे ही बोले
सधे हुए और
नापतोले
भीतर उनके
भरें हैं शोले
भगवा रंग
बम-बम भोले
हमला करते
होले-होले
जनता रोए
रोती रो ले
फर्क नहीं
पोलम-पोलें
मन की बात
वे ही बोले
दर्द सुनामी
खाए हिचखोले
बारूद खरीदे
असला मोले
उनका सोना
असली तोले
बाकी बात
लगे मखोले
मन की बात
वे ही बोले
सत्ता बहके
दागे गोले
दरोगा-जी
चमड़ी छोले
अफसर खाए
रबड़ी-छोले
पिसते रहते
हरिया-भोले
पीके चाय
दारू-सा डोले
मन की बात
वे ही बोले
सिर उठाए
हंटर बोले
मुंह खोलें तो
मुंह की रो ले
चोट करारी
हर जगह फफोले
मन की बात
रहे टटोले
सौदागर वे
मंझे है लोले
मन की बात
वे ही बोले।
वे ही बोले
सधे हुए और
नापतोले
भीतर उनके
भरें हैं शोले
भगवा रंग
बम-बम भोले
हमला करते
होले-होले
जनता रोए
रोती रो ले
फर्क नहीं
पोलम-पोलें
मन की बात
वे ही बोले
दर्द सुनामी
खाए हिचखोले
बारूद खरीदे
असला मोले
उनका सोना
असली तोले
बाकी बात
लगे मखोले
मन की बात
वे ही बोले
सत्ता बहके
दागे गोले
दरोगा-जी
चमड़ी छोले
अफसर खाए
रबड़ी-छोले
पिसते रहते
हरिया-भोले
पीके चाय
दारू-सा डोले
मन की बात
वे ही बोले
सिर उठाए
हंटर बोले
मुंह खोलें तो
मुंह की रो ले
चोट करारी
हर जगह फफोले
मन की बात
रहे टटोले
सौदागर वे
मंझे है लोले
मन की बात
वे ही बोले।
झंडे लहरा रहे हैं…
झंडे लहरा रहे हैं
खतरे मंडरा रहे हैं
दहशतगर्द डरा रहे हैं
कांटे बिखरा रहे हैं
अपने हरा रहे हैं
प्रश्न गहरा रहे हैं
आशंका पसरा रहे हैं
चारों ओर सहरा रहे हैं
नोट चरमरा रहे हैं
बारूद भरा रहे हैं
शासक बहरा रहे हैं
इस दौर में दोस्तो
हमें गलत ठहरा रहे हैं...।
खतरे मंडरा रहे हैं
दहशतगर्द डरा रहे हैं
कांटे बिखरा रहे हैं
अपने हरा रहे हैं
प्रश्न गहरा रहे हैं
आशंका पसरा रहे हैं
चारों ओर सहरा रहे हैं
नोट चरमरा रहे हैं
बारूद भरा रहे हैं
शासक बहरा रहे हैं
इस दौर में दोस्तो
हमें गलत ठहरा रहे हैं...।
………
आज की रात
आज की रात
लगता है कुछ अलग है
रास्ते में
कई रास्ते हो गए हैं
समझ नहीं आ रहा
किधर जाएं
वो झंडा लिए है
आतिशबाजी कर रहे हैं
खूब प्रफुल्लित है
कहा जा रहा है पूंजीवादी ताकतें टूट गई
लेकिन
ताकत तो ताकत है
वाकई कोई टूटा है तो हरिया नाई
उसकी बेटी की शादी में खलल पड़ा
उनके चेहरों पर अभी रंज नहीं है
बस कयास लगाते रहो
जिन्होंने उन्हें बनाया
उन्हें मिटाना इतना आसान कहां है
कल अखबार में कई पंक्तियां होंगी
कई जुमले आएंगे
नई बहस होगी
वे अपनी घोषणाओं पर बोरा रहे होंगे
फिर महीनों बहस चलेगी
कहीं आत्महत्या की खबर आएगी
मगर करेगा तो कोई रमनलाल
या मदनलाल
या बाबूलाल या छगनलाल
जिनके घर माल है
वे तो कोई रास्ता निकाल लेंगे
चलो
हम भी खुश हो लेते हैं
उन्हें बधाई देते हैं
असली बधाई तब होगी
जब सीताराम को मेहनत के
पूरे दाम मिलेंगे
श्रमिकों का शोषण रुकेगा
मेरे सवाल अपनी जगह कायम है
वे भी अपनी जगह कायम है
चलो खुश हो लो आज की रात
कल से फिर उसी रास्ते होकर
मुझे काम पर आना है
बस स्टॉप की भीड़ का हिस्सा बनना है
चलो आज की रात खुश हो लो
कल फिर यूं ही चलेगी दुनिया।
लगता है कुछ अलग है
रास्ते में
कई रास्ते हो गए हैं
समझ नहीं आ रहा
किधर जाएं
वो झंडा लिए है
आतिशबाजी कर रहे हैं
खूब प्रफुल्लित है
कहा जा रहा है पूंजीवादी ताकतें टूट गई
लेकिन
ताकत तो ताकत है
वाकई कोई टूटा है तो हरिया नाई
उसकी बेटी की शादी में खलल पड़ा
उनके चेहरों पर अभी रंज नहीं है
बस कयास लगाते रहो
जिन्होंने उन्हें बनाया
उन्हें मिटाना इतना आसान कहां है
कल अखबार में कई पंक्तियां होंगी
कई जुमले आएंगे
नई बहस होगी
वे अपनी घोषणाओं पर बोरा रहे होंगे
फिर महीनों बहस चलेगी
कहीं आत्महत्या की खबर आएगी
मगर करेगा तो कोई रमनलाल
या मदनलाल
या बाबूलाल या छगनलाल
जिनके घर माल है
वे तो कोई रास्ता निकाल लेंगे
चलो
हम भी खुश हो लेते हैं
उन्हें बधाई देते हैं
असली बधाई तब होगी
जब सीताराम को मेहनत के
पूरे दाम मिलेंगे
श्रमिकों का शोषण रुकेगा
मेरे सवाल अपनी जगह कायम है
वे भी अपनी जगह कायम है
चलो खुश हो लो आज की रात
कल से फिर उसी रास्ते होकर
मुझे काम पर आना है
बस स्टॉप की भीड़ का हिस्सा बनना है
चलो आज की रात खुश हो लो
कल फिर यूं ही चलेगी दुनिया।
………………..
जाग रहा हूं
या मैं जाग रहा हूं
या वो
जिसने ये आग लगाई
चलो वाह-वाही
देश में एक और देश पल रहा है
उनके कदमों पर
नौजवान मचल रहा है
वहां मातम हैं
जहां बज रही थी शहनाई
चलो आपको बधाई
दोस्तों
कदम-कदम जाल है
मौसम गीला
परींदे पर भ्रमजाल है
घर लौटो
कोई इंतजार कर रहा
इसी में है भलाई
राजनीति है छितराई
चलो एक बार फिर बधाई।
या वो
जिसने ये आग लगाई
चलो वाह-वाही
देश में एक और देश पल रहा है
उनके कदमों पर
नौजवान मचल रहा है
वहां मातम हैं
जहां बज रही थी शहनाई
चलो आपको बधाई
दोस्तों
कदम-कदम जाल है
मौसम गीला
परींदे पर भ्रमजाल है
घर लौटो
कोई इंतजार कर रहा
इसी में है भलाई
राजनीति है छितराई
चलो एक बार फिर बधाई।
गजल: डी.के. पुरोहित
चलो फिर कोई नई बात करें
चलो फिर कोई नई बात करें
गैर नही ंतो अपनों पर घात करें
अपराध का कोई समय नहीं होता
इसे हर दिन, हर इक रात करें
सजा कौन दे सकता है हमें
कचहरी में फाइलों से मुलाकात करें
गलती से गर हो गया दुष्कर्म
फिर रुपयों से मामला शांत करें
थाना हमारा, सरकार हमारी
फिर अफसरों से किस बात डरें
अंग्रेज चले गए आजादी देकर
कहां गई आजादी मालूमात करें ।
गजल : डी.के. पुरोहित
आस्तीन में सांप पलते रहे
आस्तीन में सांप पलते रहे
नफरत के सांचों में ढलते रहे
जितना अमृत बांटना चाहा
खुदगर्ज जहर उगलते रहे
हादसे दर हादसे होते रहे
ये नेता पैंतरे बदलते रहे
हमने मांगी थी बस रोटी
वे दवाएं सस्ती करते रहे
जिन्होंने उठाया अपना सिर
वे मुकदमों से कुचलते रहे
यहां अपने हमाम में सब नंगे
रोज तोलिया ही बदलते रहे।
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