Sunday, 25 October 2015

स्वर्ण नगरी में क्रिसमस व नए साल की तैयारियां शुरू


-दीपोत्सव के दौरान गुजराती पर्यटकों का उमड़ेगा हुजूम, शहर की होटलों में अभी से नहीं मिल रही जगह
-डीके पुरोहित-

जैसलमेर। स्वर्ण नगरी जैसलमेर में क्रिसमस व नए साल की तैयारियां चल रही है। अभी से शहर की होटलों में बुकिंग शुरू हो रही है। कई होटलों में तो नो रूम की स्थिति हो गई है। बीते दिनों दुर्गा पूजन पर बंगाली पर्यटकों के आने के बाद अब दीपोत्सव पर गुजराती सैलानी बड़ी संख्या में शहर देखने आएंगे। इसके बाद क्रिसमस और नए साल का जश्न होगा।

जैसलमेर में सितंबर से सैलानियों का हुजूम आना शुरू हो जाता है। इस बार शुरुआत में सैलानी कम आए, मगर सितंबर मध्य में संख्या बढ़ने लगी। इन दिनों शहर के गली-मोहल्लों में सैलानियों की बहार है। सैलानी पटवों की हवेली, नथमल हवेली, सालमसिंह की हवेली, सोनार किला, जैन मंदिर, अमरसागर, बड़ाबाग, लौद्रवा, गजरूप सागर सहित अन्य पर्यटन स्थलों का अवलोकन कर रहे हैं। सम और खुहड़ी में रेत के धोरों पर धमाल बच रहा है। ज्यों-ज्यों सर्दी बढ़ेगी, वैसे ही सम और खुहड़ी में कैंप फायर आयोजन बढ़ने लगेंगे।
 
क्रिसमस पर विशेष पैकेज
शहर में क्रिसमस को लेकर होटलों में विशेष पैकेज दिए जा रहे हैं। सम व खुहड़ी में सूर्यास्त और केमल सफारी के लिए संबंधित एजेंसियां तरह-तरह के ऑफर दे रही हैं। कई होटलों में दो रोज और पांच रोज के भ्रमण पैकेज दिए जा रहे हैं। जितने ज्यादा पैसे, उतनी अधिक सुविधाएं। साधारण सही होटल में एक रूम के 24 घंटे के दो हजार से पांच हजार रुपए लिए जा रहे हैं। बड़ी होटलों में दो दिन के लिए चालीस हजार से लेकर चार लाख रुपए तक के पैकेज दिए जा रहे हैं। विदेशी सैलानियों के लिए इसकी कीमत और अधिक है। होटल संचालक सैलानियों को तरह-तरह के ऑफर दे रहे हैं। सोनार किले में स्थित छोटी होटल में भी बड़े रेट हैं। यहां तक कि लोग अपने घरों में सैलानियों को ठहराते हैं और मनमाना दाम वसूलते हैं।

रेस्टारेंट में रौनक बढ़ी

सैलानियों की आवक बढ़ने के साथ ही रेस्टोरेंट में चहल-पहल बढ़ने लगी है। शहर के चार किलोमीटर दायरे में स्थित रेस्टारेंट के साथ ही फार्म हाउस और पेइंग गेस्ट में भी रौनक रहने लगी है। सर्दी का असर शुरू होने के साथ ही सैलानी रेस्टारेंट में बार और भोजन का लुत्फ उठाने लगे हैं।

सूर्यास्त व ऊंट सवारी का उठा रहे आनंद

सैलानी सम और खुहड़ी में सूर्यास्त और ऊंट सवारी का लुत्फ उठा रहे हैं। शहर में रौनक देखने लायक है। विदेशी सैलानियों को सम के धोरे रास आ रहे हैं। यहां सुबह से लेकर देर शाम तक अठखेलियां करने के बाद रात को लोक संगीत का आनंद उठाते हैं। सैलानियों को लंगा व मांगणियार कलाकारों द्वारा प्रस्तुत संगीत खूब रास आता है।

कठपुतली डांस देखने उमड़ रहे सैलानी

शहर के गड़सीसर चौराहे पर स्थित मरु लोक सांस्कृतिक केंद्र में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक नंदकिशोर शर्मा के म्यूजियम में भीड़ उमड़ने लगी है। यहां म्यूजियम का अवलोकन करने के बाद शाम में दो सत्र में कठपुतली डांस दिखाया जाता है। देसी सैलानियों के साथ विदेशी सैलानी भी इसका आनंद उठाते हैं। कई अन्य राज्यों की कॉलेज और स्कूल टीम यहां कठपुतली डांस देखने आती है।
 
नए साल में होगा धमाल

शहर में नए साल में धमाल होगा। इस दौरान कई सेलिब्रिटी भी आते हैं। फिल्मी अभिनेताओं के साथ-साथ बिजनेसमैन भी स्वर्ण नगरी में नए साल का जश्न मनाते है। इसके लिए शहर की होटलों में तैयारियां चल रही हैं। ट्रेवल एंजेसियों के माध्यम से अभी से बुकिंग हो रही है।  

Wednesday, 21 October 2015

दशानन के जीवन से सीखें दस काम की बातें


-डी.के. पुरोहित-
-रावण का नाम सामने आते ही लोग राक्षस की कल्पना करते हैं और मौजूदा दौर में दशानन के रूप में भ्रष्टाचार, अत्याचार, व्यभिचार आदि का वर्णन करते हुए कहते हैं रावण आज भी जिंदा है। मगर, रावण यानी दशानन के जीवन से काम की बातों की ओर लोगों का ध्यान कम ही जाता है। यहां हम उस दशानन की चर्चा कर रहे हैं, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। काम की वो दस बातें जो दशानन से सीखी जा सकती है, यहां प्रस्तुत है-

1. टेक्नोलॉजी : रावण के शासन में टेक्नोलॉजी गजब की थी। जिन लड़ाकू विमानों को आज हम देख रहे हैं, पुष्पक विमान के रूप में उनके कार्यकाल में मौजूद थे।
2. समृद्धि : रावण की लंका सोने की थी। समृद्धि के रूप में उनका साम्राज्य काफी समृद्ध था। वहां की स्थापत्य व वास्तुकला अद्वितीय थी।
3. भक्ति-अध्यात्म : रावण शिवजी का अटूट भक्त था। वह आध्यात्मिक प्रवृत्ति का था। उसने अपनी भक्ति से देवताओं से कई वरदान प्राप्त कर रखे थे।
4. ताकत : रावण में गजब की ताकत थी। हजार हाथियों के बराबर उनमें बल था। उसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कैलाश पर्वत को उठा लेता था।
5. बुद्धिमान : रावण काे बुद्धिमान बताया गया है। वह गजब का विद्वान था। उसने अपनी बुद्धि से देवताओं को भी वश में कर रखा था।
6. राजनीति : मौजूदा दौर के राजनीतिज्ञों को रावण से मैनेजमेंट के गुर सीखने चाहिए। रावण ने अपनी राजनीतिक दृढ़ता से कुशल शासन स्थापित किया।
7. सामरिक शक्ति : रावण के राज्य में सामरिक शक्ति गजब की थी। उसके भाई, पुत्र, मंत्री और सैनिक गजब की ताकत रखते थे। सामरिक शक्ति में रावण का कोई जवाब नहीं था।
8. पारिवारिक निष्ठा : रावण का अपने परिवार के प्रति विशेष लगाव था। उसकी पारिवारिक निष्ठा को सभी मानते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए वह कुछ भी करने का तैयार था।
9. भरोसा : रावण का भाई कुंभकरण, बेटा मेघनाद और कई वीर वीरगति को प्राप्त हुए। अंत में रावण अकेला बच गया, लेकिन उसमें बिलकुल भी भय नहीं था। उसे अपनी ताकत पर पूरा भरोसा था।
10. राष्ट्रहित : रावण राष्ट्र हित के बारे में हमेशा सोचता था। उसकी लंका सोने की थी और उसने उसके विस्तार के लिए पूरे प्रयास किए। उसने हमेशा अपने राष्ट्र का हित सोचा। 

Wednesday, 7 October 2015

काटजू जी आप गौ मांस खाते हैं, दूध भी तो पीया होगा-उसी दूध की कसम देश में गौहत्या रुकवाएं

-गौ को नेपाल ने राष्ट्रीय पशु घोषित किया है, जिस देश में यह होना था वहां गौ मांस का समर्थन कर रहे हैं, वो भी न्याय के सर्वोच्च आसन पर बैठे न्यायाधीश, धिक्कार है संतों, ऐसे न्यायाधीश को सहन कर रहे हैं, हिंदुस्तान में संतों को जागना ही होगा
-डीके पुरोहित-
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मार्कंडेय काटजू को शायद चर्चा में रहना पसंद है। वे कुछ समय पहले गांधी और बाल गंगाधर तिलक को ब्रिटिश एजेंट कह चुके हैं। अब उन्होंने तीन अक्टूबर को कहा था, ‘गाय किसी की मां नहीं हो सकती। वह सिर्फ एक जानवर है। मैं खुद बीफ खाता हूं। दुनिया में बहुत लोग खाते हैं। यदि मैं बीफ खाना पसंद करता हूं तो मुझे कौन रोक सकता है।’ उनके बयान पर चर्चा करने से पहले इतिहास की तरफ लौटें। 1857 की क्रांति पर गौर करें। सूअर व गाय की चर्बी वाले कारतूस जब ब्रिटिश सेना ने शुरू किए तो मुस्लिम और हिंदू सैनिक खिलाफत पर उतर आए। मंगल पांडे ने प्रतिरोध किया। यह घटना इतिहास में पशुओं के महत्व की ओर ध्यान खींचती है।

 गाय को नेपाल ने अपना राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। भारत में यह सदियों से पूजनीय रही है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है।  भगवान कृष्ण को गोपाल भी कहा जाता है। गायों से उन्हें विशेष प्रेम रहा है। हिंदू शास्त्रों में गौ को माता का दर्ज है। गाय दुधारू पशु है। इसे सभी धर्म के लोग पालते हैं। क्योंकि गौ का दूध दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है। दूध और उससे निर्मित पदार्थ पूरी दुनिया में उपयोग में लिए जाते हैं। लेकिन काटजू ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाला बयान देकर अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति को व्यक्त किया है।

 हमारे यहां बच्चों को जन्म के साथ ही गौ को माता कहना सिखाया जाता है। गाय का दूध ही बच्चों के पोषण का आधार होता है। दुनिया में सौ प्रतिशत लोग दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग करते हैं। शायद ही कोई व्यक्ति दुनिया में हो जो दूध या दूध के प्रॉडक्ट का उपयोग नहीं करता हो लेकिन जस्टिस काटजू ने अपने बयान से फिर लोगों को आहत किया है। खासकर हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है। नेपाल जैसा देश भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर चुका है, जबकि भारत में गाय को अभी राष्ट्रीय पशु का दर्जा नहीं मिल पाया है। प्रधानमंत्री मोदी हिंदुओं के नेता बनना पसंद करते हैं मगर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित नहीं करवा पाए। देश में कत्लखाने चल रहे हैं। गाय का मांस निर्यात किया जा रहा है। कई अतिवादी हिंदू संगठन गाय के संरक्षण के पक्ष में है, मगर इसके पीछे भी कुत्सित राजनीति है जो गाय के वध को रोक नहीं पा रही। हिंदुस्तान में गाय घर-घर में मिल जाती है। गौ पालन में मुस्लिम भी कम नहीं है। लेकिन इसके बावजूद गाय की बात आती है तो राजनेता किनारा कर लेते हैं। अब देश के संतों को आगे आना होगा। गाय के सम्मान, गाय के अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी। काटजू जैसे न्यायाधीश जो हिंसा जैसे शब्दों की शायद अनदेखी कर रहे हैं। गांधी की अहिंसा भी उन्हें दिखाई नहीं देती। बुद्ध और महावीर के देश में प्राणी मात्र की हत्या अपराध माना गया है। लेकिन काटजू को बुद्ध और महावीर से भी शायद कोई सरोकार नहीं है। वे गांधी को ब्रिटिश एजेंट कह सकते हैं तो महावीर व बुद्ध को भी कोई संज्ञा दे सकते हैं।

 जागो देश के संतों। जागो। यह देश के स्वाभिमान का सवाल है। सब एक हो जाओ। आवाज उठाओ। गाय को हिंदुस्तान का राष्ट्रीय पशु घोषित करवाओ। गाै हत्या करने वालों को फांसी की सजा दिलाई जाए। वन विभाग हिरण को मारने वालों को सख्त सजा दिलाने का पक्षधर रहा है, लेकिन गौ हत्या को लेकर कोई कुछ नहीं कर रहा। सनातन संस्कृति को मानने वाले आगे आना होगा। शंकराचार्यों को यह मुद्दा उठाना ही होगा। काटजू जी आप गाय को माता भले ही न समझा हो लेकिन उसका दूध जरूर पिया होगा। जिसका दूध पिया है वह आपकी माता नहीं हुई तो क्या हुई। लेकिन आप तो न्यायाधीश है। न्याय के आसन पर बैठकर न्याय करते रहे हैं। काश आप यह मानते कि गाय जैसा निरीह प्राणी जो हमारी ही नहीं दुनिया की अर्थव्यवस्था का मूल है, उसकी हत्या को कैसे जायज मान सकते हैं। हिंसा को तो कोर्ट भी इज़ाज़त नहीं देता। फिर आपने इसका समर्थन कैसे कर दिया? काटजू जी आपसे विनम्र अनुरोध है-गाय के बारे में लिए शब्द वापस लो। गाय को बचाना हम सबका कर्तव्य है। आपने अगर गाय का दूध पिया है तो उसकी कसम गाय को कत्लखानों से बचाने के लिए आगे आएं।